सुनामपुर के राजा श्यामभद्र ने सबसे बड़े राजकुमार वीरभद्र का तिलक कर राजगद्दी पर बैठा दिया । वीरभद्र राजा बन गए । राजा बनते ही जहाँ बधाई देने वालों का तांता लग गया , वहीं दूसरी तरफ तरह - तरह की सलाह देने वाले भी आने लगे । इन्हीं सलाह देने वालों में हकीम देवराज भी थे ।
उन्होंने नए राजा साहब को स्वास्थ्य के बारे में ऊँच - नीच समझाई । फिर एक पुस्तक भेंट की , जिसमें राजसी खान - पान के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन था । उन्होंने हिदायत दी कि राजा साहब इसी पुस्तक के अनुसार खान - पान करें । हकीम जी के जाने के बाद राजा वीरभद्र को उत्सुकता हुई कि आखिर पुस्तक में ऐसा क्या लिखा है ? उन्होंने पुस्तक पढ़ना आरम्भ की । शुरुआत में ही पुस्तक में एक हिदायत मिली - ' राजा को खरबूजा खाने के बाद दूध नहीं पीना चाहिए । ' '
आखिर खरबूजा खाकर दूध पीने से क्या होगा ? ' - राजा के मन में तरह - तरह के विचार उठने लगे । राजा इन विचारों में खोए थे । तभी दरवाजे से एक चरवाहा गुजरा । वह भेड़ों को हांकते हुए ले जा रहा था । उसे देख , राजा को लगा - ' क्यों न पुस्तक में लिखी हिदायत को परखा जाए । '
उन्होंने चरवाहे को बुलाया । चरवाहा डर गया । वह आते ही राजा के पैरों में गिर गया । बोला- “ हुजूर , मुझसे क्या गलती हो गई ? ” राजा ने उसे प्यार से बिठाया । पूछा- " खरबूजा खाओगे , ? ” - " खा लूंगा , अन्नदाता । " " इसे खरबूजा खिलाया जाए । " -
राजा ने हुक्म दिया । राजा के सेवक ने खरबूजा लाकर चरवाहे को दिया । जब उसने खरबूजा खा लिया , तब राजा ने पूछा- " दूध पिओगे ? " " मिल जाए तो पी लूंगा सरकार । " “ इसे दूध पिलाओ । ” -राजा ने कहा । सेवकों ने उसे दूध लाकर दिया । दूध पीने के बाद राजा ने उससे कहा - “ अब तुम जा सकते हो । "
चरवाहा चला गया । दूसरे दिन फिर राजा पुस्तक लेकर बैठे । तभी वहाँ से वहीं चरवाहा गुजरा । राजा चौंके - ' अरे , यह तो वही चरवाहा है , जिसे हमने कल खरबूजा और दूध दिया था । ' उन्होंने हुक्म दिया- " चरवाहे को तुरंत हाजिर किया जाए । " सेवक चरवाहे को बुला लाए । चरवाहा डरते - डरते आया ।
बोला- " अन्नदाता की जय हो । " " क्यों , कैसे हो ? कोई परेशानी तो नहीं हुई ? " -
राजा ने पूछा । भोला चरवाहा बोला- “ आपने कल खरबूजा खिलाया , दूध पिलाया , उससे पेट भर गया । रात को अच्छी नींद आई । " " और दूध - खरबूजा खाओगे ? राजा ने कहा । जी महराज । " राजा का हुक्म पाकर सेवा करता ने फिर से दूध पिलाकर और खरबूजा खिला कर राजमहल से विदा किया।
राजा सोच रहे थे - ' आज जरूर कुछ गड़बड़ होगी । ' पर उनका अंदाज गलत निकला । तीसरे दिन निश्चित समय पर फिर वही चरवाहा अपनी भेड़ों को लिए हुए निकला । राजा को बहुत गुस्सा आया । उन्होंने सोचा - ' हकीम ने अपनी पुस्तक में गलत लिखा है । चरवाहा दो दिन खरबूजा खाकर दूध पी चुका है , पर उसे कुछ नहीं हुआ । ' उन्होंने तुरंत हकीम को बुलवाया । हकीम जी दौड़े - दौड़े आए कि कहीं राजा साहब की तबीयत तो खराब नहीं हो गई ।
आकर देखा , तो माजरा कुछ और ही था । राजा बेहद गुस्से में थे । आते ही बोले " आपको झूठ बोलने की क्या सजा दी जाए ? " " मैंने क्या किया है हुजूर ? " - हकीम जी ने बड़ी हिम्मत करके पूछा । " आपने झूठ कहा है । कहा नहीं बल्कि लिखा है कि खरबूजा खाकर दूध नहीं पीना चाहिए । पर मैं दो दिन से खरबूजा - दूध चरवाहे को दे रहा हूँ । उसे कुछ नहीं हुआ , बल्कि वह आराम से सोया । " राजा बोले । "
हुजूर , यही तो गलती हुई । मैंने उस पुस्तक में राजाओं के लिए हिदायतें लिखी हैं , न कि चरवाहे कि लिए । " - हकीम ने कहा । " क्या मतलब ? " " खान - पान का रहन - सहन से गहरा सम्बन्ध है , महाराज । " “ मैं कैसे मान लूँ कि आप सच कह रहे हैं ? " - राजा ने कहा । - "
मैं इसे सिद्ध करूँगा । आप मुझे पंद्रह दिन का समय दीजिए और चरवाहे को महल में राजसी ठाट से रहने की इजाजत । " " ठीक है । " राजा बोले- " पंद्रह दिनों के बाद मिलेंगे । और आप अपने लिए सजा भी सोच लीजिएगा । "
हकीम जी ने चरवाहे को बुलाया । उसे गुलाब जल और इत्र के पानी से स्नान कराया । अच्छे राजसी कपड़े पहनाए । फिर महल के एक कमरे में राजसी ठाट - बाट के साथ ठहरा दिया । चरवाहा महल में पूरे राजसी तौर - तरीके से रहने लगा । चौदहवें दिन हकीम जी चरवाहे के सेवकों को कुछ हिदायत देकर चले गए ।
पंद्रहवें दिन सुबह - सुबह जब हकीम जी आए , तो चरवाहा बहुत नाराज था । पूछने पर बताया कि रात सेक्कों ने उसका बिस्तर ठीक से नहीं लगाया । उसे रात भर नींद नहीं आई । हकीम जी दौड़े - दौड़े राजा के पास गए । बोले- “ महाराज , आज चरवाहे को खरबूजा और दूध देकर देखिए । " "
क्या मतलब है आपका ? " - राजा ने हैरान होकर पूछा । - " मैंने सेवकों को हिदायत दी थी कि बिस्तर में चादर के नीचे एक - दो चने के दाने डाल देना । उन्होंने वैसा ही किया । चरवाहे का कहना है कि बिस्तर ठीक न होने से रात भर सो नहीं सका । मतलब यह है कि अब वह राजसी रहन - सहन का आदी हो गया है । "
उसी समय चरवाहे को बुलाया गया । पहले हकीम जी ने उसे खरबूजा खाने को दिया , फिर दूध पिलाया । दूध पीते ही वह जमीन पर गिरकर तड़पने लगा । राजा ने चिंतित होकर कहा- " हकीम जी , इसका शीघ्र इलाज करिए । ”
हकीम जी ने तुरंत उसका इलाज शुरू किया । कुछ ही देर में उसकी तबीयत सुधरने लगी । हकीम जी बोले- " महाराज , रहन - सहन का खान - पान से खासा सम्बंध है । " राजा भला क्या कहते । उन्हें चुपचाप हकीम की बात माननी पड़ी ।