द्वादशी एक हिन्दू पंचांग में एक मासिक तिथि होती है। इसे हिन्दू कैलेंडर में द्वादशी तिथि के रूप में जाना जाता है। यह तिथि हिन्दू धर्म के मानने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण होती है और इसे धार्मिक और पौराणिक कार्यों के लिए चुना जाता है।
द्वादशी का शब्दिक अर्थ "दो-बारह" होता है, जिसका मतलब होता है कि यह तिथि प्रत्येक मास में द्वितीया तिथि के बाद आती है। यह चंद्रमा के प्रकाश के आधार पर निर्धारित की जाती है। द्वादशी को शुक्ल पक्ष (पूर्णिमा के बाद) और कृष्ण पक्ष (अमावस्या के बाद) में दोनों आते हैं।
द्वादशी को विभिन्न पौराणिक कथाओं और धार्मिक आयोजनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करते हैं। कुछ लोग द्वादशी तिथि पर विशेष रूप से तुलसी की पूजा करते हैं, क्योंकि इस दिन तुलसीदास जी का जन्मदिन मनाया जाता है।
द्वादशी का अर्थ क्या है (What is the meaning of Dwadashi)
धर्म कैलेंडर में द्वादशी:द्वादशी संस्कृत शब्द है जो "दो दस" का अर्थ होता है। यह हिंदू धर्म के कैलेंडर में दो तारीखों को संदर्भित करता है। धर्म शास्त्रों में द्वादशी को अमावस्या और पूर्णिमा के बाद का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है।
द्वादशी के अनेक प्रकार होते हैं, जिनमें से कुछ उन्हें कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में बाँटते हैं। उनमें से कुछ नाम निम्नलिखित हैं: वैष्णव द्वादशी, एकादशी द्वादशी, योगिनी द्वादशी, जाया द्वादशी, अंगारक द्वादशी आदि।
द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और लोग इस दिन उनके नाम का जप करते हैं। इस दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। द्वादशी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत ही ऊंचा होता है और यह धर्म शास्त्रों में अनेक कथाओं और उपदेशों से जुड़ा हुआ है।
द्वादशी के दिन क्या करना चाहिए ( What should be done on the day of Dwadashi)
द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और लोग इस दिन उनके नाम का जप करते हैं। इस दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। अधिकतर लोग अपने घरों में भगवान विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने उनकी पूजा करते हैं। इसके अलावा द्वादशी के दिन कुछ और भी करने योग्य कार्य हो सकते हैं, जैसे:
दान-धर्म: द्वादशी के दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है। आप अन्न या धन दान कर सकते हैं।
श्रद्धा और विश्वास: द्वादशी के दिन श्रद्धा और विश्वास बढ़ाना भी बहुत जरूरी है। इस दिन आप धर्म ग्रंथों से जुड़े पाठ पढ़ सकते हैं या धर्मिक लेखों को पढ़ सकते हैं।
उपवास: द्वादशी के दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। आप भी यदि चाहें तो उपवास रख सकते हैं। उपवास रखते समय शुद्ध भोजन खाना चाहिए और निर्जला उपवास से बचना चाहिए।
जाप: द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के नाम का जप करना बहुत शुभ माना जाता है.
द्वादशी को क्या नहीं करना चाहिए (What should not be done on Dwadashi)
द्वादशी के दिन निम्नलिखित कुछ काम नहीं करने चाहिए:
नयी शुरुआत करना: द्वादशी के दिन नयी शुरुआत करना जैसे कि नया काम शुरू करना, यात्रा आदि किसी भी नए कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।
नई वस्तुओं का खरीदारी करना: द्वादशी के दिन नई वस्तुओं की खरीदारी नहीं करनी चाहिए। यह शुभ नहीं माना जाता है।
मांसाहारी भोजन: द्वादशी के दिन मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन उपवास करना या सत्विक भोजन खाना शुभ माना जाता है।
अशुभ काम: द्वादशी के दिन किसी भी प्रकार का अशुभ काम नहीं करना चाहिए। जैसे कि जूते या चप्पल बनाना, बाल कटवाना आदि।
नशीली चीजें खाना: द्वादशी के दिन नशीली चीजें खाना जैसे अल्कोहल, धुम्रपान, चाय या कॉफी नहीं पीना चाहिए।
अशुद्ध शब्दों का प्रयोग: द्वादशी के दिन अशुद्ध शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
द्वादशी कब होती है (When is Dwadashi)
द्वादशी हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की दो दो तिथियों में से एक होती है। शुक्ल पक्ष की द्वादशी को गुरु द्वादशी और कृष्ण पक्ष की द्वादशी को शनि द्वादशी कहा जाता है।
द्वादशी के दिन का समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक होता है। इस दिन के उपवास का पालन सुबह के समय सूर्योदय से उपवास रखने की तिथि तक रहता है।
द्वादशी क्यों मनाई जाती है ( Why is Dwadashi celebrated)
द्वादशी को हिंदू धर्म में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन का महत्व धार्मिक और सामाजिक दोनों ही होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, इस दिन का उपवास करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है जो हमें सभी भौतिक और आध्यात्मिक संकटों से बचाती है। इस दिन को मनाकर मानव जीवन में सुख, शांति, शुभकामनाएं और समृद्धि प्राप्त करने की आशा की जाती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, द्वादशी को सभी धर्मों की एकता का प्रतीक माना जाता है। यह दिन अनेक धर्मीय और सामाजिक आयोजनों के लिए उपयुक्त होता है। इस दिन अनेक लोगों द्वारा दान-धर्म, विवाह, शुभारंभ आदि संस्कार किए जाते हैं जो समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
इसलिए, द्वादशी धर्म, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है।
क्या द्वादशी को जन्म लेना अच्छा है ( Is it good to be born on Dwadashi)
हिंदू धर्म में द्वादशी को जन्म लेना शुभ माना जाता है। इस दिन जन्मे लोगों को धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से शुभ फल मिलते हैं। इस दिन जन्मे लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा और धर्म के ज्ञान का प्राप्त होता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार द्वादशी को जन्म लेने वाले लोगों का विशेष प्रभाव उनके जीवन पर पड़ता है। इन लोगों को स्वस्थ, समृद्ध, सुखी और समाज से सम्मानित जीवन प्राप्त होता है। इसके अलावा, द्वादशी को जन्म लेने वाले लोगों को सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को संभालने की क्षमता मिलती है और वे आर्थिक रूप से भी सफल होते हैं।
इसलिए, हिंदू धर्म में द्वादशी को जन्म लेना शुभ माना जाता है और इस दिन जन्मे लोगों को उनके जीवन में समृद्धि, सुख, सम्मान और सफलता की प्राप्ति होती है।
मुझे अपना एकादशी व्रत कब तोड़ना चाहिए (When should I break my Ekadashi fast)
एकादशी व्रत को तोड़ने का समय व्रत करने के उद्देश्य और व्रत के प्रकार पर निर्भर करता है।
जब आप एकादशी व्रत का उद्देश्य अपनी मनोकामनाओं को पूरा करना होता है, तो व्रत के अंत में अन्न दान करना अति शुभ माना जाता है। अन्न दान के बाद व्रत तोड़ा जा सकता है।
जब आप एकादशी व्रत भावुकता और आध्यात्मिकता के साथ करते हैं, तो व्रत को विशेष विधि के अनुसार तोड़ा जाना चाहिए। इस विधि के अनुसार, व्रत के अंत में पूजा और आरती की जाती है और फिर खीर और फल का भोग चढ़ाया जाता है। अगले दिन सूर्योदय से पहले व्रत तोड़ा जाना चाहिए।
अधिकतर लोग एकादशी व्रत का उद्देश्य आध्यात्मिक सुधार करना रखते हैं, इसलिए उन्हें व्रत को द्वादशी दिन को खत्म करना चाहिए। द्वादशी दिन को अन्न दान करना अति शुभ माना जाता है।
इसलिए, आपको व्रत के उद्देश्य, प्रकार और विधि के आधार पर अपना एकादशी व्रत तोड़ने का समय निर्धारित किया जाता है.
द्वादशी के बाद क्या आता है (What comes after Dwadashi)
द्वादशी के बाद, जो दिन द्वादशी का होता है, उसे त्रयोदशी दिवस कहा जाता है। त्रयोदशी दिवस भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन का महत्व भी एकादशी के बराबर होता है।
त्रयोदशी दिवस को विष्णुपुष्करिणी योग के दिन माना जाता है। इस दिन स्नान करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से अत्यंत पुण्य प्राप्ति होती है। इस दिन किसी भी प्रकार का विशेष अभिषेक, व्रत या दान करने से अधिक पुण्य मिलता है।
इसके अलावा, त्रयोदशी का दिन अमावस्या, पूर्णिमा और दशमी जैसे पवित्र तिथियों के साथ भी आने पर उनसे भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। इन तिथियों को भी विशेष पूजा, दान और व्रत करके मनाया जाता है।
द्वादशी के दिन मृत्यु होने से क्या होता है (What happens if death occurs on the day of Dwadashi)
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो, द्वादशी के दिन मृत्यु होने से जीवात्मा की मुक्ति होती है और वह परमात्मा के साथ एकीभाव में लीन हो जाती है। यह एक मान्यता है कि द्वादशी व्रत अवश्य ही मनाना चाहिए, क्योंकि यह व्रत उत्तम पुण्य का स्रोत है और जीवात्मा को अनंत काल के लिए शांति और सुख देता है।
हालांकि, जीवात्मा का निर्माण शरीर से होता है और शरीर की मृत्यु का उपचार भी आध्यात्मिक से ज्यादा वैद्यकीय होता है। इसलिए, यदि किसी व्यक्ति की द्वादशी के दिन मृत्यु होती है तो उसे शांति देने के लिए उसके परिजनों को संबंधित धर्माचार्यों या पंडितों से संपर्क करना चाहिए।
क्या कृष्ण द्वादशी शुभ है (Is Krishna Dwadashi auspicious)
हां, कृष्ण द्वादशी बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है, जो पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण जी द्वारा गीता का उपदेश भी इस दिन हुआ था।
इस दिन के अलावा कृष्ण द्वादशी को 'प्रदोष व्रत' के रूप में भी मनाया जाता है, जो शिव भक्तों द्वारा उपासना का एक विशेष त्योहार होता है। इस दिन करवा चौथ व्रत भी मनाया जाता है, जो दक्षिण भारत में विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है।
इसलिए, कृष्ण द्वादशी को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है और इस दिन विभिन्न प्रकार के पूजा-अर्चना और धर्मिक कार्य किए जाते हैं।
द्वादशी को क्या खाना चाहिए (What should be eaten on Dwadashi)
द्वादशी व्रत के दिन लोगों को सात्विक भोजन करना चाहिए। इस दिन आप अन्न, दूध, दही, घी, शक्कर, फल, सब्जियां, दाल, चावल, संतुलित खाद्य पदार्थ खा सकते हैं।
विशेष रूप से दूध, दही और घी का सेवन करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन केले खाने से भी लाभ होता है।
धन्य होता है अगर आप इस दिन किसी गरीब व्यक्ति को खाने-पीने का भी भंडार कर देते हैं।
व्रत के दौरान तेल, मांस, मछली, अंडे, प्याज, लहसुन, अल्कोहल और जंक फूड न खाएं। इन चीजों से बचने से आपके व्रत का फल दोगुना हो सकता है।
क्या हम द्वादशी के दिन चावल खा सकते हैं (Can we eat rice on Dwadashi)
द्वादशी व्रत में चावल खाना सम्भव है। आप संतुलित खाद्य पदार्थों के साथ चावल भी खा सकते हैं। हालांकि, यदि आप चाहें तो भागवत पुराण के अनुसार अन्न को सोमवार और शनिवार के दिन नहीं खाना चाहिए।
यदि आप चावल नहीं खाना चाहते हैं तो आप अन्य खाद्य पदार्थ जैसे दाल, सब्जियां, फल, खीर आदि खा सकते हैं जो द्वादशी व्रत के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
दोस्तों आज हम इस लेख के जरिए जानेंगे कि ( Padmanabha Dwadashi kya hota hai ) इसके क्या-क्या मायने हैं क्यों,किया जाता है पद्मनाभ द्वादशी व्रत नीचे लिखे गए इसमें "पद्मनाभ द्वादशी व्रत क्या होता है?, के बारे में सब कुछ बताया गया है आइए जानते हैं
अश्विन मास की द्वादशी को पद्मनाभ द्वादशी कहते हैं। इस द्वादशी को भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में इस द्वादशी का विशेष महत्व है, तो आइए हम आपको पद्मनाभ द्वादशी के बारे में बताते हैं।
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पद्मनाभ द्वादशी
पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। इस दिन, भगवान जागृत अवस्था को प्राप्त करने के लिए अंगदई लेते हैं और पद्मसीन ब्रह्या "ओंकार" की आवाज निकालते हैं। एक बर्तन स्थापित करें और उसमें पद्मनाभ (विष्णु) की एक सोने की मूर्ति रखें। भगवान की मूर्ति की पूजा चंदन के लेप, फूल आदि से करें। इससे भक्त को लाभ होगा।
इस पद्मनाभ द्वादशी का है विशेष महत्व
इस साल पद्मनाभ द्वादशी शुक्रवार को पड़ रही है। गुरुवार को पद्मनाभ द्वादशी का व्रत करने से इसका प्रभाव और बढ़ जाता है। भगवान विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा करने से भी देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखने से न केवल सफलता और धन की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
पद्मनाभ द्वादशी तिथि: शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022
पद्मनाभ द्वादशी का महत्व
पापंकुशा एकादशी के अगले दिन पद्मनाभ द्वादशी मनाई जाती है। यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पद्मनाभ द्वादशी व्रत का पालन करते हैं उन्हें जीवन भर समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही एकादशी और पद्मनाभ द्वादशी का व्रत करने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर इस संसार से मुक्त हो जाता है।
पद्मनाभ द्वादशी शुभ कार्य प्रारंभ करने के लिए उत्तम है
पद्मनाभ द्वादशी को बहुत शुभ माना जाता है। अगर आप अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं। इसलिए यह दिन बेहद खास होगा। पद्मनाभ द्वादशी के दिन किया गया कोई भी कार्य शुभ फल देता है। इसके अलावा किसी भी यात्रा की शुरुआत करने के लिए भी इस दिन का विशेष महत्व है।
इतना ही नहीं, जो भक्त आध्यात्मिक ज्ञान और सांसारिक सुख चाहते हैं, वे इस दिन विशेष पूजा कर सकते हैं। भगवान विष्णु के भक्त इस संसार को व्यर्थ नहीं मानते बल्कि यहां सुखी प्राणी चाहते हैं। इस तरह भगवान पद्मनाभ की पूजा से न केवल सांसारिक सुख में वृद्धि होगी बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होगी।
कैसे मनाएं पद्मनाभ द्वादशी
द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर पवित्र स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर मन से व्रत का व्रत लें। उसके बाद भगवान पद्मनाभ को क्षीर से स्नान कराकर एक भाग अर्पित करें। इसके बाद धूप, दीप, चंदन और नैवेद्य से आरती करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इस प्रकार पद्मनाभ द्वादशी का व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ध्यान रहे कि पद्मनाभ द्वादशी के दिन शेष नाग पर विराजमान भगवान की पूजा करें।
इसके अलावा धूप, दीप, नैवेद्य के साथ-साथ भगवान को गुड़ का भोग अवश्य लगाएं। भगवान विष्णु को गुड़ बहुत प्रिय है इसलिए पूजा सामग्री में गुड़ जरूर रखें। साथ ही इस केले के पेड़ की पूजा करें और धूप और दीप से इसकी आरती करें। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा और पूजा विधि
( Padmanabha Dwadashi Vrat Story and Worship Method )
पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा और पूजा विधि, पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा और पूजा विधि:- यह व्रत अश्विन शुक्ल पक्ष को किया जाता है. इस दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान जागरण की स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने अंगों को भरते हैं और पद्मसीन ब्रह्मा 'ओम कार' की आवाज निकालते हैं।
पद्मनाभ द्वादशी पूजा विधि :-
इस दिन प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। इस दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। सबसे पहले भगवान की मूर्ति को दूध से स्नान कराकर भोग लगाएं और धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन से आरती करें। जितना हो सके ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें।
पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा ( Padmanabh Dwadashi Vrat Katha )
पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा :-
भगवान श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर के अधिपति महाराज युधिष्ठिर को पद्मनाभ द्वादशी की कथा सुनाई। श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि - हे महाराज युधिष्ठिर, जो भक्त आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ के नाम से मेरा व्रत और पूजा करता है, उसे एक हजार गायों के बराबर फल मिलता है। पद्मनाभ द्वादशी का व्रत और विधि विधान से पूजा करने से मनुष्य की इच्छाएं इस लोक में पूरी होती हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।