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दुर्गा पूजा 2023 शारदीय नवरात्रि कब है? जानिए,पूजा विधि,और शुभ मुहूर्त
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शारदीय नवरात्रि भारतीय हिंदू धर्म में एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है जो माँ दुर्गा के पुजन और भक्ति को समर्पित है। यह उत्सव चैत्र नवरात्रि के बाद सितंबर या अक्टूबर महीने में मनाया जाता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसे शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसे शरद ऋतु में मनाया जाता है।
नवरात्रि अनुसंधान के दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूप बघ्वती, स्कंदमाता, कूष्मांडा, चंद्रघंटा, कैतभांदा, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री और स्कंदमाता होते हैं। प्रत्येक रूप का विशेष महत्व है और भक्तों के द्वारा उनकी भक्ति और पूजा की जाती है।
नवरात्रि के दौरान, लोग माँ दुर्गा की पूजा विधि का पालन करते हैं, जिसमें पूजा के अलावा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन, रसगर्बा, रामलीला आदि आयोजित किए जाते हैं। नवरात्रि के अंत में, दशहरा उत्सव का भी आयोजन होता है, जिसमें दशमी तिथि को रावण दहन और श्रीराम और रावण के युद्ध का प्रदर्शन किया जाता है।
यह उत्सव भारत में विभिन्न राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और समृद्धि, सफलता, शक्ति और समरसता की प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान लोग माँ दुर्गा की भक्ति में लीन होते हैं और इस उत्सव के माध्यम से समाज में एकता और सामाजिक सद्भावना का संदेश भी देते हैं।
दुर्गा पूजा पर निबंध (essay on durga puja)
दुर्गा पूजा भारत में हिंदू धर्म का एक प्रमुख उत्सव है जो वर्ष के भिन्न अवसरों पर मनाया जाता है। इस उत्सव को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे बंगाली नाम 'दुर्गा पूजा', असमी नाम 'दुर्गा पूजा', ओडिशा में 'दुर्गा पूजा' या 'दुर्गा पूजा' और बिहार में 'नवरात्रि'।
यह उत्सव हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है जिसे अष्टमी तिथि को शुरू किया जाता है और नवमी तिथि को समाप्त किया जाता है। यह उत्सव अधिकतर हिंदू परिवारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसकी तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है।
दुर्गा पूजा के दौरान, लोग मंदिरों में जाकर दुर्गा की पूजा करते हैं। पूजा में भगवान गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती और कर्त्तिक को भी सम्मिलित किया जाता है। पूजा के दौरान, विभिन्न प्रकार के प्रसाद और भोजन तैयार किए जाते हैं और उन्हें देवी को समर्पित किया जाता है।
दुर्गा पूजा पर निबंध 10 लाइन (essay on durga puja 10 line durga)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख उत्सव है। यह उत्सव मां दुर्गा को समर्पित होता है। दुर्गा पूजा अष्टमी तिथि से शुरू होता है। नवमी तिथि पर इस उत्सव का समापन किया जाता है। इस उत्सव के दौरान मंदिरों में भक्तों द्वारा पूजा की जाती है। इस उत्सव के दौरान भगवान गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती और कर्त्तिक को भी पूजा किया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रसाद और भोजन तैयार किए जाते हैं। इस उत्सव को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। दुर्गा पूजा भारत के सभी हिस्सों में मनाया जाता है। इस उत्सव को महिलाओं का महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है।
दुर्गा पूजा विधि (puja method)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की भक्ति एवं श्रद्धा का प्रतीक है। इस पूजा को नवरात्रि के दौरान सम्पन्न किया जाता है। यहां हम दुर्गा पूजा के विधि के बारे में जानकारी दे रहे हैं:
पूजा के लिए एक साफ सुथरा स्थान चुनें।
स्थान को साफ सुथरा रखें और उसे दुर्गा मूर्ति की ओर मुख करना होगा।
पूजा में उपयोग करने के लिए सामग्री जैसे कि फूल, दीपक, अगरबत्ती, नरियल, आसन, कलश, पंचामृत, फल और प्रसाद इत्यादि को तैयार करें।
माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए पंचोपचार पूजा की जाती है। पंचोपचार पूजा में दीप, धूप, पुष्प, नैवेद्य और आरती का उपयोग किया जाता है।
पूजा के दौरान मंदिर या पूजा स्थल को स्वच्छ रखें और सभी पूजा सामग्री को ध्यान से उपयोग करें।
पूजा के दौरान मंत्र जप और ध्यान धारण करें।
पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें.
दुर्गा पूजा की शुरुआत कैसे हुई (How did Durga Puja start)
दुर्गा पूजा की शुरुआत पुरातन भारतीय संस्कृति में मान्यता से हुई है। इस पूजा का आरंभ राजा राम के द्वारा नवरात्रि के दौरान किया गया था।
इस पूजा की शुरुआत भारतीय मिथकों से जुड़ी हुई है। अनुसार, दुर्गा पूजा का आरंभ महिषासुर वध के बाद हुआ था। मां दुर्गा ने महिषासुर को वध करने के बाद समस्त देवताओं को उनकी विजय का उत्सव मनाने के लिए उन्हें न्योता दी थी। इस उत्सव को नवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा, जो माँ दुर्गा की पूजा के रूप में अंतिम दिनों में समाप्त होता है।
दुर्गा पूजा का आयोजन हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के शुरुआती दिन से शुरू होता है। नवरात्रि के दौरान, नौ दिनों तक नौ रूपों वाली माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। इन दिनों के दौरान लोग माँ दुर्गा की पूजा करते हैं, उनकी आराधना करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाते हैं। दुर्गा पूजा
दुर्गा की पूजा क्यों की जाती है ( Why is Durga worshipped)
दुर्गा पूजा भारतीय हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहार है जो माँ दुर्गा की उपासना एवं पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पूजा वर्ष के अलग-अलग महीनों में मनाई जाती है, जैसे शरद नवरात्रि, बसंत पंचमी, अष्टमी और नवमी आदि।
इस पूजा को ज्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है और यह माँ दुर्गा की महिषासुरमर्दिनी स्वरूप की उपासना के रूप में जानी जाती है। महिषासुरमर्दिनी का अर्थ होता है "महिषासुर की हत्या करने वाली"। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य माँ दुर्गा की उपासना करना होता है तथा इसके जरिए लोग शक्ति, साहस, वीरता, और संकटों से निपटने की कला का अध्ययन करते हैं।
इस त्योहार को मनाने के लिए लोग माँ दुर्गा की मूर्तियों को रचते हैं, पूजा के समय उन्हें स्थान पर स्थापित करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार के पुष्प, धूप, दीपक, फल आदि से अर्चना करते हैं। पूजा के दौरान भक्तों के द्वारा मंत्रों और स्तुतिय किया जाता है.
दुर्गा पूजा की विधि क्या है (What is the method of Durga Puja)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है। इस पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है जो नौ रूपों में प्रकट होती हैं। इस त्योहार की विधि निम्नलिखित है:
पूजा के लिए स्थान का चयन करें: दुर्गा पूजा के लिए आप एक शुभ स्थान चुनें, जहां आप देवी की मूर्ति रख सकते हैं और पूजा कर सकते हैं।
देवी की मूर्ति लें: आप देवी दुर्गा की मूर्ति खरीद सकते हैं या घर में ही एक बना सकते हैं। आप एक चौड़ा लाल वस्तु पर देवी का अंकित कर सकते हैं जिसे मां दुर्गा की मूर्ति के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
पूजा के लिए सामग्री का अभ्यास करें: पूजा के लिए सामग्री जैसे कि अखंड दिया, दुर्गा माता का माला, कुमकुम, हल्दी, घी, चावल, फूल आदि तैयार करें।
पूजा की शुरुआत करें: शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें। आप देवी के नौ रूपों की पूजा कर सकते है.
दुर्गा पूजा कब से मनाया जाता है और क्यों मनाया जाता है (When is Durga Puja celebrated and why is it celebrated)
दुर्गा पूजा के बारे में:दुर्गा पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाई जाती है और इसे वर्ष के अलग-अलग महीनों में मनाया जाता है। अक्टूबर और नवंबर महीने को दुर्गा पूजा का महीना माना जाता है और यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
दुर्गा पूजा का उद्देश्य मां दुर्गा की पूजा करना है, जो हिंदू धर्म के अनुसार शक्ति की देवी हैं। इस पूजा के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है जो अलग-अलग दिनों में मनाए जाते हैं। इस पूजा का महत्व अधिक है, क्योंकि यह धर्म के साथ-साथ समाज में भी महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा त्योहार है जो लोगों को सामूहिक रूप से जोड़ता है और एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर खुशी मनाने का मौका देता है।
मां दुर्गा किसकी बेटी थी ( Whose daughter was Maa Durga)
मां दुर्गा हिंदू धर्म के अनुसार देवी दुर्गा या शक्ति की रूप में पूजी जाती हैं। उनकी जन्म कथा के अनुसार, मां दुर्गा का जन्म महिषासुर नाम के दानव से लड़ने के लिए देवी पार्वती और प्रभु शिव के विवाह के बाद हुआ था। उनकी पौराणिक कथाओं में बेटियों के नाम उल्लेख नहीं किये गए हैं, लेकिन वे देवी पार्वती और प्रभु शिव के बेटी मानी जाती हैं।
धर्म के अनुसार, मां दुर्गा ने देवताओं की सहायता से महिषासुर नामक दानव को मार डाला था। उस लड़ाई में उन्होंने नवरात्रि के दौरान नौ अलग-अलग रूपों का धारण किया था। इसलिए, मां दुर्गा को नौ देवियों में से एक के रूप में माना जाता है।
मां दुर्गा को बुलाने का मंत्र क्या है ( What is the mantra to call Maa Durga)
मां दुर्गा को बुलाने के लिए कुछ मंत्र हैं जो उपयोगी होते हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध मंत्र हैं:
"ॐ दुं दुर्गायै नमः" (Om Dyum Durgayei Namah)
"या देवी सर्वभूतेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥" (Ya Devi Sarva Bhuteshu, Maa Durga Rupena Samsthita, Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah)
ये मंत्र ध्यान और भक्ति के साथ जप किए जाते हैं। इन मंत्रों का जाप मां दुर्गा को बुलाने और उनकी कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
माँ दुर्गा के पति का नाम क्या है (What is the name of Maa Durga's husband)
मां दुर्गा के पति का नाम हैं भगवान शिव (Lord Shiva)। मां दुर्गा की विवाह कथा के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। उस विवाह के बाद ही मां दुर्गा ने दुनिया में अपने शक्ति का प्रदर्शन करना शुरू किया था। इसलिए भी मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में जाना जाता है।
मां दुर्गा का असली नाम क्या है ( What is the real name of Maa Durga)
मां दुर्गा का असली नाम "पार्वती" (Parvati) है। पार्वती भगवान शिव की पत्नी हैं और मां दुर्गा का रूप भी हैं। वे संसार की माता के रूप में जानी जाती हैं, जो सभी प्राणियों की रक्षा करती हैं।
मां दुर्गा के कितने पुत्र थे (How many sons did Maa Durga have)
मां दुर्गा के चार पुत्र थे, जिनके नाम हैं -
गणेश (Ganesha) - जो सभी देवताओं के प्रथम पूज्य होते हैं।
कार्तिकेय (Kartikeya) - जो सेनापति और वीर योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
सरस्वती (Saraswati) - जो विद्या, कला और संगीत की देवी हैं।
लक्ष्मी (Lakshmi) - जो समृद्धि, सौभाग्य और धन की देवी हैं।
इन चारों पुत्रों के अलावा, मां दुर्गा के कुछ रूप भी हैं जिन्होंने उन्हें बचपन से पाला था।
दुर्गा के पीछे की कहानी क्या है (What is the story behind Durga)
दुर्गा माता हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण देवी हैं जिन्हें शक्ति का प्रतीक माना जाता है। दुर्गा पौराणिक कथाओं और धर्मशास्त्रों में विभिन्न रूपों में प्रस्तुत हुई हैं।
दुर्गा के पीछे की कहानी दस महाविद्याओं के महात्म्य के रूप में जानी जाती है। महाविद्याएं दुर्गा के दस रूप होते हैं जो शक्ति के दस रूप होते हैं।
दुर्गा के पीछे की कहानी में उनके एक अन्य रूप महागौरी का वर्णन किया गया है। महागौरी दुर्गा के नौ रूपों में से एक है और इसे चंद्रमा और कमल के साथ दिखाया जाता है।
महागौरी की कहानी विभिन्न है, लेकिन सबसे लोकप्रिय कथाओं में से एक है कि एक बार जब दुर्गा महिषासुर के विनाश के बाद अपने स्वरूप को विकसित कर रही थीं, तो उन्होंने अपने स्वरूप को इस प्रकार विकसित किया कि उन्होंने अपने तपस्या से उनके शरीर को सफेद और चमकदार बनाया।
इसलिए महागौरी के रूप में दुर्गा को देवी का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है।
दुर्गा पूजा मंत्र (Durga Puja Mantra)
या देवी सर्वभूतेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः। स्वस्तैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥
जय जगदम्बे माता जय जगदम्बे। भक्तजनों के संकट कटवे जय जगदम्बे॥
ब्रह्मा सनातन हरि हर हरि हर। शङ्कर भवानी सदा विराजत अर्धनारीश्वर॥
जय जगदम्बे माता जय जगदम्बे। भक्तजनों के संकट कटवे जय जगदम्बे॥
दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है (Durga Puja kyu manaya jata hai.)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भारत और नेपाल में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। यह नौ दिनों तक चलने वाला पर्व होता है, जो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के शुक्ल षष्ठी से दशमी तक चलता है।
दुर्गा पूजा का मुख्य उद्देश्य माँ दुर्गा की पूजा एवं आराधना करना होता है, जिन्हें दुर्गा माता भी कहते हैं। इस पूजा का महत्व उन अवसरों को याद दिलाना है जब माँ दुर्गा ने रक्षाबंधन के लिए अपने भाईयों की मदद की थी और राक्षस महिषासुर का वध किया था।
इस पर्व में माँ दुर्गा के अलावा देवी के अन्य स्वरूपों जैसे माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी और माँ काली की पूजा भी की जाती है। इसके साथ ही इस पर्व में भोजन, दान-दक्षिणा और समाज सेवा भी की जाती है। इस पूजा का महत्व असल में दुर्गा माता की शक्ति, साहस, संयम, त्याग और करुणा का संदेश देना होता है।
दुर्गा पूजा का इतिहास (History of Durga Puja)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार प्रति वर्ष शरद नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। इस त्योहार को दुर्गा महोत्सव, दुर्गा पूजा या दुर्गा उत्सव भी कहते हैं।
इस त्योहार के इतिहास के बारे में कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन इसका माना जाता है कि यह पूर्व से ही मौखिक रूप से मनाया जाता आ रहा है। विभिन्न कारणों से इस त्योहार को अलग-अलग रूपों में मनाया जाता रहा है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य दुर्गा की पूजा करना और महाशक्ति का उत्सव मनाना होता है।
इस त्योहार को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में यह त्योहार सबसे अधिक मनाया जाता है। यहां दुर्गा पूजा को पांच दिनों तक मनाया जाता है। इस अवधि में लोग दुर्गा की मूर्ति की पूजा करते हैं और उसे सजाकर उसके साथ भोजन और प्रसाद भी भोगते हैं।
दुर्गा पूजा तारीख (Durga Puja Date)
दुर्गा पूजा हर साल भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाई जाती है। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो माँ दुर्गा की पूजा और उनके विजय के अवसर पर मनाया जाता है। दुर्गा पूजा की तारीख हर साल बदलती है, लेकिन इसे शरद नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। इसे अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है।
2023 में, दुर्गा पूजा की तारीख 10 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक होगी।
दुर्गा पूजा का महत्व (Durga Puja Mhtav)
दुर्गा पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो माँ दुर्गा के जन्म और उनकी विजय के अवसर पर मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व विभिन्न कारणों से होता है:
माँ दुर्गा की पूजा: दुर्गा पूजा में माँ दुर्गा की पूजा की जाती है जो शक्ति की देवी हैं। इस पूजा के दौरान माँ दुर्गा की प्रतिमा के सामने पूजा की जाती है और उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां कालरात्रि, मां सिंहवाहिनी, मां कात्यायनी, और मां स्कंदमाता इत्यादि।
शक्ति का महत्व: दुर्गा पूजा शक्ति की महत्ता को दर्शाता है। इस पूजा के दौरान माँ दुर्गा की पूजा के साथ-साथ नवरात्रि भी मनाई जाती है, जो शक्ति की नौ रूपों का उत्सव होता है। यह उत्सव शक्ति की महत्ता को दर्शाता है जो हमें सफलता की ओर ले जाती है।
सामाजिक एवं कला का महत्व: दुर्गा पूजा एक सामाजिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
दुर्गा पूजा का कितना दिन बाकी है (How many days left for Durga Puja)
मुझे वर्तमान में यह बतलाना मुश्किल है कि दुर्गा पूजा कितने दिन बाकी है क्योंकि यह त्योहार हर साल बदलती तिथि पर मनाया जाता है।
हालांकि, अधिकांश वर्षों में दुर्गा पूजा शरद नवरात्रि के दौरान मनाई जाती है, जो नौ दिनों तक चलता है। नवरात्रि के आखिरी दिन विजयदशमी को दशहरा के नाम से जाना जाता है जो दुर्गा पूजा के अंतिम दिन होता है।
अगली दुर्गा पूजा की तिथि अक्टूबर 2023 के महीने में होने की संभावना है, इसलिए आप अक्टूबर के महीने में इस त्योहार की तारीख की जांच कर सकते हैं।
Shardiya navratri 2023 date: शारदीय नवरात्रि का महा त्यौहार आने वाला है. इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्तूबर से मंगलवार 24 अक्तूबर तक मनाई जाएगी। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार चैत्र और शारदीय नवरात्रि की अधिक मान्यता है।
दुर्गा पूजा का कितना दिन है?
आइए जानते हैं पूरे नौ दिनों की पूजा और मां के घोड़े पर सवार होने के फल के बारे में... घटस्थापना चैत्र प्रतिपदा तिथि को की जाती है और अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन के बाद व्रत तोड़ा जाता है. इस वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 2 अप्रैल 2022 दिन शनिवार को पड़ रही है।
सितंबर के आखिरी में आएगी शारदीय नवरात्रि, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा का तरीका
शारदीय नवरात्रि का महत्व (शारदीय नवरात्रि 2022 महत्व)
2022 नवरात्रि दशहरा कब है?शारदीय नवरात्रि पूजा विधि (शारदीय नवरात्रि 2022 पूजन विधि) नवरात्रि के सभी दिनों में सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की प्रक्रिया पूरी करें। कलश में गंगाजल भरकर उसके मुख पर आम के पत्ते रख दें। कलश की गर्दन को पवित्र लाल धागे या मोली से लपेटें और नारियल को लाल चुनरी से लपेटें। आम के पत्तों के ऊपर नारियल रखें। कलश को पास या मिट्टी के बर्तन में रखें। जौ के बीज मिट्टी के बर्तन में बोयें और नवमी तक प्रतिदिन थोड़ा पानी छिड़कें। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। माँ को अपने घर बुलाओ। देवताओं की भी पूजा करें, जिसमें उनकी पूजा फूल, कपूर, अगरबत्ती, सुगंध और पके हुए व्यंजनों से करनी चाहिए। आठवें और नौवें दिन वही पूजा करें और नौ कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करें। ये नौ लड़कियां देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए उन्हें साफ और आरामदायक जगह पर बिठाएं और उनके पैर धोएं। उनकी पूजा करें, उनके माथे पर तिलक लगाएं और उन्हें स्वादिष्ट भोजन दें। दुर्गा पूजा के बाद अंतिम दिन घाट विसर्जन करें। दुर्गा पूजा 2022 तिथि: सितंबर में इस दिन से शुरू होगी शारदीय नवरात्रि? जानिए इस बार किस पर आएगी मां दुर्गा पूजा 2022 तिथि: माता जगदम्बा का पर्व नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाया जाता है। जानिए कब शुरू हो रही है शरद नवरात्रि और इस बार किस पर सवार होकर आएगी मां। दुर्गा पूजा 2022 तिथि: माता जगदम्बा का पर्व नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा, हवन, यज्ञ, जगराते, गरबे का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में हर जगह लोग शक्ति की भक्ति में लीन हैं। अगर नौ दिनों तक मां की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं शरद नवरात्रि कब से शुरू हो रहे हैं और इस बार किसकी सवारी करेंगे मां। शरद नवरात्रि 2022 कब है? (शरद नवरात्रि 2022 मुहूर्त) शरद नवरात्रि 26 सितंबर 2022, सोमवार से शुरू हो रहे हैं। नवरात्रि 5 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 26 सितंबर 2022 को प्रातः 3.24 बजे से प्रारंभ होगी. प्रतिपदा तिथि 27 सितंबर 2022 को प्रातः 03.08 बजे समाप्त होगी. इस बार शरद नवरात्रि पर घटस्थापना का मुहूर्त 26 सितंबर 2022 को सुबह 06.20 बजे से 10.19 बजे तक रहेगा. शरद नवरात्रि 2022 में मां की सवारी (मां दुर्गा की सवारी क्या है?) देवी भागवत पुराण में नवरात्रि पर माता रानी की सवारी का विशेष महत्व बताया गया है। हर साल मां अलग-अलग वाहनों में सवार होकर आती हैं। मां का हर वाहन एक खास संदेश देता है। पुराणों के अनुसार रविवार या सोमवार से जब नवरात्र शुरू होते हैं तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। यानी इस बार मां दुर्गा का आगमन हाथी की सवारी पर होगा. यह शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इस बार शरद नवरात्रि माता रानी हाथी पर सवार होकर आएंगी और सभी के जीवन को खुशियों से भर देंगी। शारदीय नवरात्रि तिथि (शारदीय नवरात्रि 2022 तिथि) प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 26 सितंबर 2022 द्वितीया (माँ ब्रह्मचारिणी): 27 सितंबर 2022 तृतीया (मां चंद्रघंटा): 28 सितंबर 2022 चतुर्थी (माँ कुष्मांडा): 29 सितंबर 2022 पंचमी (मां स्कंदमाता): 30 सितंबर 2022 षष्ठी (माँ कात्यायनी): 01 अक्टूबर 2022 सप्तमी (माँ कालरात्रि): 02 अक्टूबर 2022 अष्टमी (मां महागौरी): 03 अक्टूबर 2022 नवमी (मां सिद्धिदात्री): 04 अक्टूबर 2022 दशमी (माँ दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन): 5 अक्टूबर 2022 माँ दुर्गा की कहानी | माता शेरावाली से जुड़े ख़ास रहस्य | Story of Maa Durgaकैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी माता सती ही पुनः जन्में पार्वती के रूप में विख्यात हुई उन्हें ही कात्यायिनी,चंद्रघंटा,शैलपुत्री,महागौरी, ब्रह्मचारिणी, कूष्मांडा,स्कंदमाता,कालरात्रि,सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता रहा है। जिन्हें अब हम सभी माँ शेरांवाली दुर्गा माता,अम्बे, जगदम्बा आदि के नाम से जानी जाती है वे सदाशिव की अर्धांगिनी रही है। |
माता की कथा :
सतयुग के महाराजा दक्ष की पुत्री सती माता को शक्ति कहा जाता है। शिव के कारण उनका नाम शक्ति हो गया। परन्तु उनका असली नाम दाक्षायनी हुआ करता था। अपने पिता के मुँह से पति का अपमान सहन ना कर पाने के कारण वस यज्ञ कुंड में कुदकर आत्मदाह करने के कारण उन्हें सती माता भी कहा जाता है।
बाद में उन्होंने माता पार्वती के रूप में जन्म लिया। उनका पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वे पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के महाराजा की राजकुमारी थी। पिता की गैर इच्छा से उन्होंने हिमालय में ही रहने वाले योगी भोले शिव से विवाह कर लिया। एक यज्ञ करने करने के वक्त में जब दक्ष ने सती और शिव को न्यौता नहीं भेजा, उसके बाद भी माँ सती शिव के मना करने के बाद भी अपने पिता के यज्ञ में पहुंच जाती है,
लेकिन राजा दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें बोल डाली। यह सब सुनकर सती को बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण को त्याग दिया। यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने राजा दक्ष का सिर काट डाला। और इसके बाद दुखी होकर सती के जले हुए शरीर को शिव अपने सिर पर धारण कर क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे।
उस वक्त जहां-जहां सती के शरीर के अंग या फिर आभूषण गिरे वहां वहा पर बाद में शक्तिपीठ निर्माण किए गए है। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा ठीक स्थान पर शक्तिपीठ का नाम वहा पड़ा और धाम भी हो गया। इसका यह मतलब होता है कि माता एक रूप अनेक हो गई।
माता पर्वती ने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।
माता का रूप :
माँ दुर्गा के एक हाथ में सुहेलमानी तलवार और दूसरे हाथो में कमल का फूल खूब मनलुभावन लगता है। माता पितांबर वस्त्रो से सुशोभित उनके सिर पर राज मुकुट, माथे पर श्वेत रंग में अर्थचंद्र तिलक एवं गले में मोतिओं मणियों का हार अधिक सुहावन लगता हैं। और माता शेरावाली शेर की सवारी करती है।
माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकारता है माता उसकी प्रार्थना। सुन लेती है न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य पूजा है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों के अनेको श्लोक बताये गए है।
माता का तीर्थ :
शिव का धाम कैलाश पर्वत माना जाता है वहीं से कुछ दुरी पर मानसरोवर के करीब ही माता का धाम है। जहां पर दक्षायनी माँ का मंदिर बिराजमान है। माँ वहीं पर साक्षात मानो की रहती है।
आरती श्री दुर्गा जी की
दुर्गा माँ बहुत सारे रहस्य की जानकारी
दुर्गा माता कौन थी?
नवरात्रि कैसे शुरू हुई?
नवरात्रि की कहानी क्या है?
मां दुर्गा का जन्म कैसे हुआ?
दुर्गा मां किसकी बेटी थी?
माँ शेरावाली के पति का नाम क्या है?
सती ने आत्मदाह क्यों किया?
बताया यह भी जाता है कि ब्रह्म पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से वहा पर शत कुंडी यज्ञ करवाया था। जिसमे बिना निमंत्रण पहुंची सती ने अपने पति के अपमान से विक्षुब्ध होकर यज्ञशाला में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दिया था ।
सती के अंग कहाँ कहाँ गिरे?
प्रभास जूनागढ़ जिला गुजरात में देवी सती का आमाशय गिरा हुआ था और वहा पर चंद्रभागा के नामो से पूजी जाती हैं. भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी मध्य प्रदेश में देवी के ऊपरी होंठ गिरे हुए थे यहां वे अवंति नामो से मानी जाती हैं. जनस्थान नासिक महाराष्ट्र में देवी की ठोड़ी गिरी हुई थी जहा पर देवी भ्रामरी रूप में स्थापित हुईं है .
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