उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBG37t7zaQQ2Btg3XMfRqmekoHQ64thorOnY0wAKCsntRjhAzq3WPh62peEVzEMuWnnfk9R1BjVYvE5Az7qxJmNUGAwHJNJLSOHwZlt2848ACmbCjAZKlNdtZ9iyDOVR9WuZwkfAM8a9lGGWnyjq6Pcb4TnUVrAHgS52Ku7QlFlBLa2MNvohRRCVXVSCg/w320-h213/Screenshot_2023-12-16-13-39-14-23-min.jpg)
साथिओ, हमारे देश में अनेको प्रकार के पर्व मनाया जाया करता है इन्ही पर्व में शामिल है एक ख़ास पर्व जिसे हम छठ पूजा के नाम से जानते है. यह छठ पर्व मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और विहार के लोग बड़े उत्शहित होकर मनाते है. इस पूजा को करने से पहले अपने घरो की साफ - सफाई की जाती है.
छठ पूजा पर पति के काम काज में सफलता के लिए भी छठ का व्रत रखा जाता है इसलिए महिलायें छठी मैया का व्रत रखती हैं एवं पति की लंबी आयु की कामना किया करती है.
आइये चले इस 10 लाइनों की लेख के माध्यम से हम जानेंगे छठ पूजा क्या है
chhathi maiya
jai chhathi maiya
chhathi maiya bulaye
ashirwad chhatti maiyaa ke
he chhathi maiya
chhath poojan
hey chhathi maiya
top chhath
1. छठ पूजा लोक आस्था का बहुत ख़ास और प्रसिद्ध पर्व होता है.
2. छठ पर्व पर छठ मैया जी की पूजा अर्चना की जाती है.
3. छठ पर्व लगातार चार दिन तक मनाया जाता है.
4. छठ पर्व एक साल में 2 बार मनाये जाते है.
5. छठ मैया की पूजा पहली बार चैत्र के महीने में और दूसरी बार कार्तिक में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाये जाने की परम्परा चलती आ रही है
6. छठ पर्व में सूर्य देव को कच्चे दूध एवं जल से अर्घ किया जाता है.
7. छठ पूजा के तीसरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखा करती है.
8. सभी औरते इस पर्व के अवसर पर पति और औलाद की लम्बी आयु के लिए उपवास रखा करती है.
9. छठ पूजा का मुख्य प्रसाद गेहूं का आटा और गुड़ से बना ठेकुआ माना जाता है.
10. इस छठ पर्व का उत्सव बिहार और UP के अलावा नेपाल, मॉरिशस एवं असम में भी बड़े ही हर्शो उल्लाश से लोग मनाने लगे है.
पौराणिक kathaon के अनुसार लंका पर विजय हाशिल करने के बाद भगवन श्री राम (Ram Raj) की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को परमेश्वेर श्री राम और सीता मैया ने उसी दिन निर्जल उपवास करके सूर्यदेव से अर्चना किया था. जिसके बाद से सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय अनुष्ठान करके सूर्यदेव से आर्शीवाद प्राप्त किया था तब से लेकर यह परम्परा चती आ रही है
महाभारत से जुडी एक और अन्य मान्यताओ के अनुसार छठ पर्व की उत्सव की शुरुआत महाभारत काल में हो गयी थी। सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा अर्चना शुरू की। औरते घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर कही कही ठेहुन भर पानी में सूर्यदेव को आराधना किया करते है। सूर्यदेव की कृपा से ही संसार चल रहा है
छठ पूजा धार्मिक एवं सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व माना जाता है। यही मात्र एक ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देवता का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाया करता है। हिन्दू धार्मिक में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देवता और छठी माता के पूजा अर्चना से व्यक्ति को संतान, प्राप्ति होती है और मनोवांछित फल की मिल जाती है।
सूर्य की शक्ति हैं छठी माता
वेदपुराणों में कहीं पर सूर्य की पत्नी संज्ञा को, कहीं कार्तिकेय की पत्नी को षष्ठी देवी या छठी माता माना जाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण की माने तो, प्रकृति के छठे अंश से उतपन्न हुई सोलह मातृकाओं अर्थात माताओं में प्रसिद्ध षष्ठी देवी (Chhatthi Mata) ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कही जाती हैं।
एक मान्यता ऐसा भी है कि Chhatth Puja के वक्त में गरीब या आशहय और जरूरतमंद लोगों की सहायता या फिर मद्द्त करने से छठी Mata प्रसन्न हो जाती हैं। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति की मद्द्त करते हैं जोकि छठ का सामान खरीदने में असर्मथ हो। इससे आपको ख़ास शुभ फल की प्राप्ति होने की मान्यता अभी तक जानी जाती है।
सूर्यदेव की बहन हैं छठ माता:
षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी बताया जाता है, जोकि निसंतानों को संतान प्रदान किया करती हैं। संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं। इसके लिए छठ पर्व को लेकर बिहार की मान्यता है कि रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान श्रीराम और माता सीता ने निराजल उपवास रखकर सूर्यदेव की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना की थी।
श्रद्धालु नदी के घाट पर जाने से पहले बांस की टोकरी में पूजा की सामग्री, "जैसे मौसमी फल, ठेकुआ, कसर, गन्ना आदि सामान को सजाकर रख लेते हैं और फिर घर से नंगे पैर पैदल घाट तक जाते हैं वहा पर स्नान करने के बाद डूबते हुए सूर्य देवता को अर्ध्य देने की प्रक्रिया सुरु होती हैं. छठ पूजा (Chhath Puja) ऐसा पर्व है जिसे डूबते सूर्य की पूजा पाठ की जाती है और उनको अर्घ्य दिया करते है
छठ महारानी की कहानी |
मान्यता यह भी है छठ पर्व पर महिलाएं उपवास किया करती हैं और कमर तक गहरे पानी में खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं। नहाय-खाय के दिन में कद्दू-भात का प्रसाद बनता है और व्रती इसे ग्रहण किया करती हैं। अब से घर में सात्विक भोजन बनने की तैयारी हो जाती है। इसके दौरान व्रती लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया करते है।