उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय
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ओसियां गांव के चोखाराम नाम का एक "मोची "रहता था । उसके बनाए हुए जूते दूर - दूर तक मशहूर रहते थे । सब लोग उसकी कारीगरी की बहुत प्रशंसा किया करते थे । ओसियां छोटा - सा एक गांव था । मोची जूते नए चप्पल बनाने का काम भी मिलता रहता था ।
1.चोखाराम के कुछ खाश बाते.(मोची चप्पल,मोची शूज)
अधिकतर लोग पुराने जूतों की मरम्मत कराते थे । इस काम से चोखाराम का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता । चोखाराम की पत्नी सांवली बहुत चतुर थी । घर के पीछे थोड़ी सी जमीन थी । उसी पर साग - सब्जियाँ उगा लिया करती थी । गाँव के जमींदार , सेठ , साहूकारों के घर से छाछ ले आती थी । बाजरे की रोटियाँ छाछ में चूरकर खाने से दाल - सब्जी की बचत हो जाती ।
एक बार सांवली के मन में भैंस पालने की इच्छा हिलोरें लेने लगी । वह सोचती कि एक भैंस घर में आ जाए , तो सारे दुःख दूर हो जाएँगे । एक दिन उसने चोखाराम से कहा- " नैना के पिताजी , हमको एक भैंस खरीदना है । उसकी बातो को सुनकर चोखाराम जी हंस पड़े बोला- बावली को दो वक्त की रोटी तो पूरी नहीं होती चला है भैंस खरीदने की बात करने यह हमे सूझी रोटी पूरी करने के लिए ही तो भैंस ला रही हूँ । मैंने सारी जुगत बिठा ली है ।
सांवली विश्वास के साथ बोली । " कैसी जुगत , जरा में भी तो सुनूं । " - चोखाराम ने सांवली का मखौल उड़ाते हुए कहा । " देखो जी , मेरे पैर के कड़ले आधा सेर चाँदी के हैं । गले की हंसली तीन पाव की होगी । में दोनों जेवर बेचने को तैयार हूँ । " सांवली बोली । - " पगली , इतनी चांदी में भैंस तो क्या , भैंस का बच्चा भी नहीं आएगा । बाकी पैसे क्या तेरे पीहर से आयेंगे ? "
सांवली ने कहा- " गाँव का साहूकार फिर किस दिन काम आएगा । उसके लिए सुंदर जूते बनाकर ले जाओगे , तो वह मना नहीं करेगा । ' “ लेकिन साहूकार का उधार कभी कोई चुका पाया है । मैं इस मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता । " - चोखाराम बोला । सांवली ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी । बोली- “ पहले पूरी बात सुन लो । नहीं जंचे तो मत करना । देखो जी , भैंस आएगी तो में दही बिलोया करूँगी । घी तो बेच दिया करेंगे । छाछ से दोनों समय सुख से रोटी खायेंगे । साग - सब्जी के पैसे बचेंगे । "
लेकिन अब भी तो छाछ मुफ्त की मिलती है । पैसे तो बच ही । " -चोखाराम ने कहा । रहे हैं सांवली तुनककर बोली- " मुफ्त में कोई कुछ नहीं देता । सब मुझसे बेगार कराते हैं । और मुझे हमेशा घर - घर जाकर मांगना बिलकुल अच्छा नहीं लगता । है उसकी नाराजगी देखते हुए चोखाराम ने बोला अच्छा अगर भैंस खरीद लें तो दूध बेचने के अलावा तू और क्या क्या करेगे ? भैंस के गोबर से उपले बनाऊँगी तो ईंधन भी बचेगा ।
सांवली ने क्या बताया
सांवली ने कहा- " जंगल से घास काटकर लाऊंगी । भैंस के लिए दाना और खाली एक माह उधार खरीदेंगे । महीने के अंत में जो पैसे बचेंगे , उनसे सारा हिसाब बराबर हो जाएगा । फिर भी नहीं जंचे तो भैंस बेच देना । घाटा होगा तो कड़ले और हंसली गई समझना । में कभी दोबारा मांगूँगी नहीं । ”
चोखाराम के मन में भी भैंस खरीदने की बात बैठ गई । बोला " चल ठीक है । एक अच्छी भैंस देखकर खरीद लेते हैं । मैंने सुना है कि कुम्हार के घर भैंस बिकाऊ है । जाकर देख आना । ' तुरन्त ही सांवली कुम्हार के घर गई । दुधारू भैंस देखकर , उसका मन खिल गया ।
लौटकर चोखाराम से बोली- “ बड़ी बढ़िया भैंस है । सौदा पक्का कर लो । चोखाराम के हाथो में दो कुल्हड़ देखकर बोल पडे इसको क्यों लाई हो तब ने सांवली इतराती हुई बोल पड़ी बड़े कुल्हड़ छाछ और छोटे कुल्हड़ में मलाई अपने पीहर भेजा करूंगी । मेरी माँ को मलाई बहुत अच्छी लगती है । क्या कहा रोज तेरे नैहर में छाछ और मलाई लेकर जाया करेगी । यह भैंस क्या तुम्हरे बाप ने दे रखी है
चोखाराम ने गुस्से से कहा । " देखो जी , मेरे बाप का नाम मत लो । हमारी शादी में मेरी माँ की भैंस बिक गई । अब मेरे घर में भैंस हो और मेरी माँ मलाई को तरसे , यह भी कोई बात हुई । मैं तो अपने पीहर मलाई और छाछ जरूर भेजूंगी । सांवली ने बोला तुम कैसे भेजोगी उसने कहा की पहले साहूकार का उधार चुकायेंगे । फिर हंसली और कड़े बनायेंगे । इसके बाद बच्चे दूध - घी खायेंगे । फिर में दाल बाटी और चूरमा खाऊँगा । इसके बाद तुम्हारी माँ की मलाई के बारे में सोचेंगे । -
चोखाराम बोला । उसकी बात सुनकर सांवली नाराज हो उठी । और हाथो को नचाते हुए बोलने लगी की अपनी माता को मलाई तो हम रोज देकर आऊँगी । मै देखती हूँ कौन मलाई का लाल हमको रोक पाता है । तब बोला मैं माई का लाल तुझे रोकूँगा । यह बोलकर चोखाराम ने दोनों कुल्हड़ फोड़ दिए और सांवली को मारने दौड़ा । संयोग से गाँव का साहूकार वहाँ से गुजर रहा था ।
इन दोनों को लड़ते देखा तो रुक गया । उसने चोखाराम से सारी बात पूछी । इसके बाद आँखें तरेरते हुए चोखाराम बोला- " तुम लोग भैंस का खूब घी - दूध खा रहे हो । और मेरा अभी तक एक पैसा वापस नहीं किया । जल्दी पैसे देते हो या ले जाऊँ भैंस खोलकर । उसकी बात सुनकर चोखाराम घबराकर बोल पड़ा मालिक कौन सी भैंस और कौन से पैसे मैंने आपसे पैसे कब लिए थे और भैंस तो अभी हमारे घर आई भी नहीं है ।
यह सुनकर साहूकार मुसकराने लगा । बोला- " यही तो मैं कह रहा था । पहले भैंस तो घर में आने दो । फिर मलाई का बंटवारा कर लेना । उससे पहले लड़ने से क्या लाभ किन्तु अब चोखाराम जी और सांवली को अपनी भूल का पता चल पाई ।
2.कुछ और खाश बाते
mochee maianing in ainglish - aixacht matchhais
मोची किसका ब्रांड है?
मोची - मेट्रो ब्रांड्स लिमिटेड | 1947 से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए अभिनव और गुणवत्ता वाले जूते और सहायक उपकरण।
भारत में एक मोची का औसत सकल वेतन ₹3,81,296 या इसके बराबर प्रति घंटा की दर ₹183 है। इसके अलावा, वे ₹5,414 का औसत बोनस अर्जित करते हैं।
वे सिलाई, बफिंग और अन्य जूता मरम्मत मशीनों, सामग्रियों और औजारों का उपयोग करके तलवों, ऊँची एड़ी के जूते और जूते के अन्य हिस्सों की मरम्मत या उन्हें बदलते हैं। वे तलवों और एड़ी को जूते में सिलते हैं, कील लगाते हैं या सिलाई करते हैं, और जूते की एड़ी को चाकुओं से आकार देते हैं, उन्हें बफिंग व्हील पर चिकना करने के लिए सैंड करते हैं।
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एक बार बहुत पुराने समय की बात है, जब दुनिया में जीवन बहुत सरल था और लोग अपने रोजमर्रा के काम के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करते थे। इस समय में एक मोची और बौना दोस्त रहते थे। मोची चमड़े से जूते बनाता था जबकि बौना उसका सहायक था जो जूतों को सीधा करता था।
एक दिन, मोची और बौना बातें करते हुए गुमनाम रस्सी वाले के घर पहुंचे। रस्सी वाला उन्हें रस्सी बांधने का काम दे दिया। मोची ने रस्सी को अपने हाथों से बाँधा और बौना ने उसे सही ढंग से टांगा। लेकिन रस्सी कमजोर थी और थोड़ी देर बाद ही वह फट गई।
रस्सी फट जाने के बाद, मोची ने एक नयी रस्सी मांगी जो की उससे भी कमजोर थी। बौना ने मोची को बताया कि यह रस्सी फिर से फट जाएगी। इसके बाद मोची ने अपने दोस्त की बात सुनी और उसने एक मजबूत रस्सी लाई। अब रस्सी नहीं फटी और काम भी ठीक से हो गया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करनी चाहिए.
हाँ, मोची जूते बनाता है। मोची एक पेशेवर व्यक्ति होता है जो चमड़े और अन्य संवेदनशील पदार्थों से जूते बनाता है। मोची चमड़े को काटता है, उसे साफ करता है और फिर उसे जूते के रूप में बनाने के लिए सीधा करता है। उसके बाद, जूते की अंतिम स्थिति में वह उसे ढालता है ताकि उसे उसकी असली आकृति में रखा जा सके।
मोची जूते बनाने का काम पुराने समय से होता आ रहा है। आज भी, बहुत सारे लोग मोची के जूते पसंद करते हैं और उन्हें अपनी शैली और आकार के अनुसार बनवाते हैं।
एक समय की बात है, एक बौना व्यक्ति अपने दोस्त मोची के पास जा रहा था। उसे अपनी जेब में थोड़ा सा पैसा था, जिसका उसे जूते खरीदने का विचार था।
मोची ने उसे अपनी दुकान में ले जाकर कुछ जूते दिखाएं। बौना व्यक्ति ने जो जूते देखे, उनमें से एक जो थोड़ी सी महंगी थी, उसे पसंद किया। उसने मोची से पूछा, "यह जूता थोड़ा महंगा है। क्या आप मुझे इसे सस्ते में नहीं दे सकते?"
मोची ने उसे एक दस्ताने में थोड़ा सा धूल दिया और उसने उसे कहा, "यह धूल अगले घंटे तक मेरे दुकान के सामने की गली में बिक जाएगी। जितना पैसा आपकी जेब में होगा, उससे ठीक उतना ही मैं आपको उस जूते में सस्ता दूंगा।"
बौना व्यक्ति ने सोचा और उसने मोची से पूछा, "लेकिन अगर कोई अन्य उस जूते को खरीद लेता है तो?"
मोची ने उससे कहा, "अगर कोई दूसरा उस जूते को खरीद लेता है, तो वह आपसे बेहतर और ज्यादा धनवान होगा।