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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

जमींदार की हवेली और घर - घर में ताला

पावनपुर गाँव में एक कंजूस जमींदार रहता था । नाम था धीरपाल । उसके पास काफी धन - दौलत थी । गाँव की अधिकतर जमीन पर उसी का कब्जा था । वह छोटे किसानों को जमीन बटाई पर दे देता । फसल पकने पर एक तिहाई हिस्सा किसान को देता तथा दो तिहाई हिस्सा अपने पास रखता था ।

 एक बार वर्षा न होने से फसल नहीं हुई । छोटे किसानों ने मेहनत करके जो बीज बोए थे , सब सूख गए । नई फसल न होने स वे परेशान थे । वे इकट्ठे होकर जमींदार के पास गए । बोले- “ महाशय , हम कई सालों से आपके खेतों में काम करते आए हैं । इस बार वर्षा न होने से फसल नहीं हुई । आपके पास गोदाम में काफी अनाज है । यदि आप हमारी सहायता करें , तो हम खूब मेहनत करके अगली फसल पर आपकी उधारी चुका देंगे । 

" किसानों की बात सुन , जमींदार को गुस्सा आ गया । कहने लगा- " तुम्हारा हिस्सा तुम्हें फसल पकते ही मिल गया था । तुमने अनाज बचाकर क्यों नहीं रखा ? यह तुम्हारी गलती है , तुम्हीं भुगतो । मैं कुछ नहीं कर सकता । " जमींदार का उत्तर सुन , किसानों को बहुत दुःख हुआ । वे चुपचाप अपने घरों को लौट आए । 

भूख से व्याकुल होकर छोटे किसान गाँव छोड़कर दूसरी जगह जाने लगे । एक रात एक साधु उधर से गुजरा । उसने गाँव में ही रात बिताने की सोची । एक घर का दरवाजा खटखटाया । पर यह क्या ! जिस गली में जाता , दरवाजे पर ताला लगा मिलता । साधु हैरान हो गया । तभी उसे जमींदार की हवेली में दीपक की रोशनी दिखाई दी । 

साधु जमींदार के घर पहुँचा । कहा- “ मैं गंगा स्नान को जा रहा था । रात हो गई , इसलिए यहाँ रुकना चाहता हूँ । पर गाँव के अन्य घरों में ताले लगे हुए हैं । सब लोग कहाँ चले गए ? " 1 साधु की बात सुन , जमींदार ने पहले तो छोटे किसानों को जी भरकर कोसा । फिर पूरी कहानी कह सुनाई । धीरपाल की बात सुन , साधु को दुःख हुआ । उसने सलाह दी कि उसे दूसरों की सहायता करनी चाहिए । 

धीरपाल बोला- " गलती छोटे किसानों की है । उन्हें भी तो ऐसी विपदाओं के लिए अनाज बचाकर रखना चाहिए था । साधु ने समझाया- बुझाया उन बेचारों के पास भला इतने अनाज होता ही कहाँ है कि उसमे से कुछ बचा पाए । आखिरकार ऐ सब तुम्हारा अन्न लौटाने की बात भी कर रहे थे । उस साधु की बातो  सुनकर जमींदार सन्न रहा गया । साधु के समझ में आ गया कि इसको समझाने से कोई फायदा नहीं । उसने पूछा क्या तुम मुझे रात भर ठहरने के लिए जगह दे सकते हो वह के जमींदार ने सोचा की यदि ये हवेली में रुकजाएगा तो इसको खाने का भी बन्दों बस्त करना होगा । उसने कहा महाराज आप तो साधु हैं ।

जमींदार के खेत


 गृहस्थियों की इस हवेली में ठहरना आपको अच्छा नहीं लगेगा । सामने एक छप्पर है । आपके लिए यहीं चटाई बिछवा देता हूँ । आप वहीं रात्रि विश्राम साधु बोला- " हाँ - हाँ । वहीं ठीक रहेगा । " जमींदार ने अपने नौकर से कहकर साधु के ठहरने का प्रबंध छप्पर में करा दिया । 

अभी आधी रात भी नहीं बीती थी कि धीरपाल के पेट में अचानक जोर से दर्द उठा । उसकी कराह सुन , घर के सब लोग जाग गए । साधु की भी आँख खुली । वह जमींदार के पास आया । धीरपाल दर्द से छटपटा रहा था । साधु ने नौकर से कहा- " छप्पर में मेरी पोटली रखी है , जाओ उठा लाओ । मैं दवा दूँगा ।  

नौकर पोटली ले आया । उस साधु ने झोरी से तीन फल निकालकर धीरपाल को देते हुए बोला एक फल अभी खा लेना आराम हो जाएगा । अगर आराम न आए , तब थोड़ी देर बाद दूसरा फल भी खा लेना है । यदि फिर भी आराम न आए , तो तीसरे फल का भी सेवन कर लेना । ये बहुत दुर्लभ फल हैं । 

ध्यान रखना , यदि पहला फल खाने से ही आराम आ जाए , तो बाकी फलों का सेवन मत करना । इतना कह लेने के बाद साधु पुनः कुटिया में जाकर लेट जाता है । वही जमींदार की पत्नी ने उसको एक फल काटकर उसको था । समझ की फल खा लेने से ही धीरपाल को बिलकुल चैन हो गया । उसने पत्नी से कहा- " अब तुम लोग सो जाओ । शेष दोनों फल भी मेरे पास रख दो । " सब लोग सो गए । 

जमींदार ने सोचा- " ऐसे दुर्लभ फल फिर नहीं मिलेंगे । क्यों न मैं इन्हें छिपाकर रख लूँ । साधु से कह दूँगा , पहले फल से आराम नहीं आया । दूसरे दोनों फल भी खाने पड़े । फिर उसने ऐसा ही कर डाला । दोनों ने मिलकर उस फल को छिपाकर एक तिजोरी में डाल दिये । उसके अगली सुबह वह साधु जमींदार के पास पहुंचा और स्वास्थ्य का हाल चाल पूछने । तब जमींदार बोला महाराज तीनों फल खाने के बाद ही चैन पड़ा 

धीरपाल की बात सुन , साधु मौन रहा । कुछ देर बाद वह अपनी पोटली उठा , गंगा स्नान के लिए निकल पड़ा । साधु के चले जाने पर जमींदार बहुत खुश हुआ । उसने सोचा ' अब मेरे पास दुर्लभ फल हैं । 

जब कभी किसी को तकलीफ होगी , तो मुँह माँगे पैसे लेकर बेच दूँगा । " दोपहर को दुर्लभ फलों को देखने के लिए जमींदार ने तिजोरी खोली , तो वहाँ उससे अजीब तरह की गंध आ रही थी । उसने देखा , फलों का रंग काला हो गया है । फलों के साथ - साथ तिजोरी में रखे सोने - चाँदी के आभूषण भी काले हो गए थे । जमींदार को काटो तो खून नहीं । जंग लगे लोहे जैसे सोने - चाँदी अब वह कीमत अब क्या रह गई है उसने गुस्से में भर , दोनों फलों को उठाकर आंगन में फेंक दिया । 

पर यह क्या ! फलों की गंध के घर का सब सामान काला होने लगा । बर्तन , कपड़े यहाँ तक कि हवेली की दीवारें भी काली हो गईं । वातावरण में फैली दुर्गन्ध के कारण साँस लेना भी दूभर हो गया था । अब तो धीरपाल दुखी होकर रोने लगा । उसने अपने नौकरों को आदेश दिया- “ घोड़ों पर सवार होकर गंगा जी की ओर जाओ । जहाँ भी तुम्हें वह साधु नजर आए , उसे यहाँ बुला लाना । " रात होने से पहले नौकर साधु को अपने साथ ले , पावनपुर लौट आए । 

साधु को देखते ही जमींदार हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगा । साधु ने पूछा- " क्या बात है ? " धीरपाल बोला- " महाराज , मैं लुट गया । आपके फलों ने मेरा सब कुछ काला कर दिया । " - " लेकिन तुम तो कहते थे कि तीनों फल खाने के बाद आराम आया । " - " महाराज , मैं लोभ में फँस गया था । 

इसलिए झूठ बोला । " साधु ने कहा- " ये दुर्लभ फल किसी और की बीमारी में काम आते । पर तुमने लालच में आकर दूसरों का हिस्सा हड़पा और झूठ बोला । झूठ का रंग काला होता है , इसलिए तुम्हारी सब चीजें काली हो गईं । लालच का फल कड़वा होता है , इस कारण तिजोरी में रखने से यह फल भी कड़वे हो गए हैं । 

लालची आदमी दुर्गन्धित फलों की तरह दूसरों को हानि पहुँचाता रहता है । " धीरपाल बोला- " महाराज , में आपको आश्वासन देता हूँ कि भविष्य में लालच करके कभी दूसरों का हिस्सा नहीं हड़पूंगा । " साधु ने कहा- " सबसे पहले इन फलों को गड्ढा खोदकर जमीन में दबा दो । " जमींदार ने वैसा ही किया । एक गहरा गड्ढा खोदकर काले हुए दोनों फलों को उसमें दबा दिया । साधु बोला- " दुर्गन्ध मिटाने के लिए अब एक हवन करना होगा , जिसमें गाँव के सभी लोग आहुति डालेंगे । 

 लेकिन गाँव के लोग तो कहीं और जा चुके हैं । " जमींदार ने समस्या बताई । साधु ने कहा- " इस हवन के द्वारा पूरे गाँव का शुद्धिकरण होगा । इसलिए सभी का इसमें शामिल होना जरूरी है । छोटे किसान आसपास के गाँवों में मेहनत - मजदूरी कर रहे होंगे । तुम उन्हें सहायता का आश्वासन दोगे , तो वे जरूर लौट आयेंगे । 

जमींदार को बहुत बेचैनी हो रही थी । उसने अपने नौकरों को आदेश दिया- " पास के गाँवों में जाओ और किसानों को वापस बुला लाओ । उनसे कह देना जितना अनाज चाहें , गोदाम से ले लें । " ने सुना , नौकरों ने पास के सभी गाँवों में जाकर घोषणा कर दी । किसानों तो सब खुशी - खुशी वापस अपने गाँव लौट आए । जब सब लोग आ गए , तो साधु ने हवन प्रारम्भ किया ।

 हवन के शुद्ध धुएँ से वातावरण महक उठा । धीरे - धीरे सब वस्तुओं से कालिख समाप्त होने लगी । हवन की समाप्ति तक सोने - चाँदी के सभी आभूषण पुनः चमक उठे । उन्हें चमकते देख , जमींदार ने चैन की साँस ली । उसने गोदाम का अनाज छोटे किसानों में बाँट दिया । हवन से एक और करामात हुई । अगले दिन बादल घिर आए और शाम तक वर्षा शुरू हो गई । किसान खुश थे । अकाल खत्म हो गया । साधु महाराज भी अगली यात्रा के लिए चल पड़े ।

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जमीदार का अर्थ क्या है (What is the meaning of landlord)

जमींदार का अर्थ:जमींदार शब्द भारत के उत्तर और पूर्वी भागों में प्रचलित है और यह एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो अपने पास जमीनों की बड़ी मात्रा रखता होता है और उन्हें अपने नियंत्रण में रखता है। जमींदार शब्द का उपयोग भूमि के स्वामित्व और नियंत्रण को दर्शाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, इस शब्द का उपयोग भारत के इतिहास में उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ इलाकों में जाति विशेष के लोगों को दर्शाने के लिए भी किया जाता है।

जमींदार कौन थे और उनकी भूमिका क्या थी (Who were the landlords and what was their role)

जमींदार भारत के इतिहास में ब्रिटिश शासन के दौरान भूमि के स्वामित्व को दर्शाने वाले व्यक्तियों को कहते थे। ये लोग आम तौर पर धनवंत व्यक्ति होते थे जो अपने पास बड़ी मात्रा में भूमि रखते थे और उन्हें अपने नियंत्रण में रखते थे। जमींदारों का नियंत्रण उनकी भूमि पर काम करने वाले किसानों पर भी होता था। इन जमींदारों के पास बड़ी संपत्ति होती थी और वे अक्सर अपनी संपत्ति का उपयोग सत्ता और अधिकार को बनाए रखने के लिए करते थे।


जमींदारों की भूमिका ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण थी। इनका नियंत्रण भूमि के उत्पादन और खेती पर पड़ता था और उन्हें अपने कर्मचारियों, किसानों और अन्य लोगों की मदद से अधिक उत्पादन करना होता था। जमींदारों का उद्देश्य था कि वे अधिक से अधिक उत्पादन करके अपनी संपत्ति को बढ़ावा दे सकें।


जमींदारों का प्रभाव भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौर में बहुत था लेकिन अभी ख़त्म हो चुका हैं.

पहले जमींदार कौन थे (Who were the first landlords)

जमींदार शब्द का प्रयोग ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में हुआ था। इससे पहले भारत के इतिहास में कुछ अन्य शब्दों का प्रयोग भूमि के स्वामित्व को दर्शाने के लिए होता था।

भारत के पूर्व में जमींदार के समान व्यक्तियों को जगीरदार, जमींदार, मालिक, ज़मींदार, ठाकुर, राजा, महाराजा आदि नामों से जाना जाता था। इन व्यक्तियों के पास भूमि का स्वामित्व होता था और वे अपने भूमि पर कृषि और अन्य उद्योगों के लिए किसानों और अन्य लोगों को भूमि का उपयोग करने की अनुमति देते थे।

जमींदार शब्द का प्रयोग ब्रिटिश में भी बहुत हुआ करता था.

जमींदार और जागीरदार में क्या अंतर है (What is the difference between Zamindar and Jagirdar)

जमींदार और जागीरदार दोनों भूमि मालिक होते हैं, लेकिन दोनों में कुछ अंतर होते हैं।


जमींदार एक व्यक्ति होता है जो अपने खुद के पैरों पर खड़ा होता है और अपनी जमीन का स्वामित्व रखता है। वह जमीन पर खेती या किसी अन्य व्यवसाय को शुरू कर सकता है या फिर उसे किराए पर दे सकता है।


जबकि जागीरदार एक व्यक्ति होता है जो राजा या सामंत की सेवा में काम करता है और उसे जमीन का मालिक बनाया जाता है। जागीरदार की जमीन उस राजा या सामंत की स्वामित्व रखी जाती है जिसने उसे दिया गया है। जागीरदार के पास अपनी जमीन पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होता है और उसे जमीन से संबंधित कुछ नियमों और मानदंडों का पालन करने होते हैं.

क्या जमींदार अभी भी मौजूद हैं (Do landlords still exist)

कृपया अपना प्रश्न स्पष्ट करें। "जमींदार" शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त होता है जैसे कि किसानों के मालिक, जमींदारी उत्पादन का नाम, आदि। तो अगर आप इस संदर्भ में अपना प्रश्न स्पष्ट कर सकते हैं तो मैं आपकी सहायता करने में सक्षम होऊंगा।

जमींदारी अधिकार क्या हैं (What are Zamindari rights)

जमींदारी अधिकार का मतलब होता है कि किसी व्यक्ति या संगठन के पास किसी भूमि का मालिकाना हक होता है। यह हक भूमि के उत्पादन, वित्तीय और कानूनी नियंत्रण, बेचने और खरीदने, लीज और किराए पर देने, या उसे किसी दूसरे के उपयोग के लिए देने के साथ-साथ अन्य संबंधित अधिकारों को भी सम्मिलित करता है।

जमींदारी प्रथा किसकी देन है (Whose contribution is the Zamindari system)

जमींदारी प्रथा भारत में मुगलकाल से आरंभ हुई थी। इस प्रथा के अनुसार, भूमि के मालिक (जमींदार) को उसका उपज उत्पादन करने की अनुमति मिलती थी जबकि किसानों को उस भूमि का किराया देना पड़ता था। इस प्रथा के अंतर्गत, जमींदार को भूमि के उत्पादन के लाभ का एक बड़ा हिस्सा मिलता था जबकि किसानों को केवल किराया मिलता था।

इस प्रथा का उदभव मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में हुआ था जब उन्होंने कृषि विकाश हुआ था.

जमींदार को इंग्लिश में क्या कहते हैं (What is zamindar called in English)

"जमींदार" को अंग्रेजी में "landlord" कहा जाता है।

जमींदार प्रथा को कब समाप्त किया गया (When was the landlord system abolished)

जमींदार प्रथा भारत के इतिहास में एक लंबे समय तक चली आई थी। इस प्रथा के अंत का समय भारत के इतिहास के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग था। उत्तर भारत में, ब्रिटिश शासन के आने से पहले, जमींदार प्रथा अधिक प्रभावी थी। इस प्रथा के अंत का समय उत्तर भारत में ब्रिटिश शासन के आने के बाद से शुरू हुआ था। ब्रिटिश शासन के द्वारा कई सुधार किए गए और जमींदार प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाए गए। जमींदार प्रथा को समाप्त करने के प्रमुख कदमों में से एक होता हैं.

 छोटे जमींदार कौन होते हैं (Who are small landlords)

"छोटे जमींदार" शब्द का उपयोग भारत में किसी क्षेत्र में अपने जमीन का धारक या मालिक को बताने के लिए किया जाता है। इस शब्द का उपयोग उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में भी किया जाता है। इसे अन्य शब्दों में "जमींदार", "खेत मालिक", "भूमि धारक" आदि के नाम से भी जाना जाता है।

छोटे जमींदार अक्सर किसानों और उनके परिवारों से संबंधित होते हैं और आमतौर पर वे अपनी जमीनों पर फसल उगाते हैं और उससे अपनी आमदनी कमाते हैं। इन लोगों की जमीन आमतौर पर अधिकतर छोटी होती है, जो एक किसान या कुछ किसानों के परिवार के लिए पर्याप्त होती है।

छोटे जमींदारों के पास अक्सर अपना चारा या पशु पालन भी होता है, जो उन्हें अपनी आमदनी में सहायता करता है। इन लोगों का जीवन प्रायः गांवों में होता है और वे आमतौर पर अपने परिवारों के साथ रहते हैं।

जमींदार का वाक्य क्या है (what is the sentence of the landlord)

"जमींदार" शब्द का उपयोग भारत में किसी क्षेत्र में अपने जमीन का धारक या मालिक को बताने के लिए किया जाता है। जमींदार का एक वाक्य उदाहरण निम्नलिखित हो सकता है:

"उस इलाके के जमींदार ने अपनी जमीन में एक बड़ा स्टोर खोला हुआ है।"

इस वाक्य में "जमींदार" शब्द उस व्यक्ति को बताता है जो उस इलाके की जमीन के मालिक होता है।

जमींदारी प्रथा कब शुरू हुआ (when did the zamindari system start)

जमींदारी प्रथा भारत के इतिहास में बहुत पुरानी है और इसका उल्लेख मुगल सम्राटों के शासनकाल से मिलता है। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में जमींदारी प्रथा को आरंभ किया गया था। इसके बाद, इस प्रथा को अपनाकर नवाबों, राजाओं और ब्रिटिश शासकों ने अपनाया।

जमींदारी प्रथा के अंतर्गत भूमि के मालिकों को विशेष अधिकार होते थे और वे अपनी जमीनों के उत्पादों में काफी होते थे.

जमींदारी प्रथा कब आई (when did the zamindari system come)

जमींदारी प्रथा भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे ब्रिटिश शासन काल में लागू किया गया था। इस प्रथा का आरंभ 1793 में वर्णनात्मक जमाबंदी के बाद हुआ, जिसमें जमींदारों को जमीन का स्वामित्व प्रदान किया गया था।

जमींदारी प्रथा का मुख्य उद्देश्य था कि ब्रिटिश शासन के अधीनस्थ जमींदारों को अधिक उत्पादक बनाया जाए ताकि वे अधिक कर दे सकें। इस प्रथा के तहत, जमींदारों को जमींदारी के लिए भूमि किराये पर दे देते थें.

जमींदार कौन थे (who were the landlords)

जमींदार भारतीय इतिहास में अहम व्यक्तित्वों में से एक थे। जमींदार एक भूमि मालिक था जो अपने क्षेत्र में भूमि का संचालन करता था और खेती तथा अन्य बुनियादी कामों के लिए किसानों को भूमि किराए पर देता था। उनका मुख्य धंधा था खेती और अन्य कृषि संबंधित गतिविधियों का प्रबंधन करना।

जमींदार ब्रिटिश शासन के समय में भारत में प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक होते थें.

जमींदारी प्रथा क्या है (what is zamindari system)

जमींदारी प्रथा एक पुरानी भूमि-दार समाज की प्रथा है जिसमें एक श्रेणी के लोगों को भूमि और उसके उपज तक का अधिकार होता है। इस प्रथा के अनुसार, जमींदार अपनी भूमि को दूसरों को किराये पर देते हैं जिससे वे उस पर काम करने वालों से उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले अंतर को नजरअंदाज करके धन कमाते हैं। इस प्रथा में भूमि का मालिक एक श्रेणी के लोग होते हैं जो शक्तिशाली होते हैं और दलित, गरीब और असमानता से ग्रस्त लोगों के लिए संघर्षपूर्ण थी।

यह प्रथा भारत के इतिहास में बहुत पुरानी है 

जमींदार का अर्थ (Meaning of landlord)

"जमींदार" शब्द हिंदी भाषा में उपयोग होने वाला एक शब्द है जो कि भूमि या जमीन के मालिक को दर्शाता है। यह शब्द भारतीय कृषि व्यवस्था में प्रचलित है जहां जमींदार खेतों के मालिक या किरायेदार होते हैं जो उन्हें खेती करने का अधिकार देते हैं। इसके अलावा, यह शब्द अक्सर अर्थव्यवस्था में भूमि के मालिक को दर्शाता है जो अपनी भूमि पर अन्य लोगो

जमींदार कौन थे मुगल काल में उनकी क्या भूमिका थी (Who were the landlords, what was their role in the Mughal period)

मुगल काल में जमींदार भूमिका के लिए विभिन्न परिभाषाएं थीं, लेकिन सामान्यतया जमींदार एक भूमिधर के रूप में जाना जाता था जो उस क्षेत्र में अपनी जमीनों को संभालता था और उन्हें कृषि एवं अन्य गतिविधियों के लिए विकसित करता था। वे उन क्षेत्रों के अधिकारी भी हो सकते थे जहाँ उनकी जमीनें थीं।

जमींदार एक उच्च वर्ग का व्यक्ति था जिसके पास काफी अधिक जमींन रहता है.

जमींदार का नाम (Today's landlords names)

यहाँ कुछ भारतीय जमींदारों के नाम हैं:


मुकेश अंबानी - रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन


अजीम प्रेजाद - दालमिया ग्रुप के संस्थापक


गौरी खानना - खानना ग्रुप के संस्थापक


अनिल अंबानी - रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष


लक्ष्मी मित्तल - अर्सेलोरमिट्तल के संस्थापक


अदानी ग्रुप - अदानी ग्रुप के संस्थापकों में शामिल है


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