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राजा बना लकड़हारा की कहानी | The story of the woodcutter turned king
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चंद्र नगर में तीसरे साल एक बड़ा मेला लगता था । इस मेले में दूर - दूर के व्यापारी आते थे । राजा की एक विचित्र आज्ञा थी - जिसका माल नहीं बिकेगा , उसे राजकोष से धन देकर खरीदा जाएगा । ये खरीदी गई चीजें राज संग्रहालय में रख दी जातीं राजा कृष्णकांत भी इस मेले में आता था । इस बार जिस दिन मेला शुरू हुआ , उसी दिन राजा कृष्णकांत मेला घूमने आ गया । घूमते - घूमते राजा मेले के अंतिम छोर पर जा पहुँचा ।
वहाँ एक महिला चुपचाप उदास बैठी थी । उसे देखकर राजा ठिठक गया । उसकी उदासी का कारण जानने के लिए राजा ने सारथी को इशारा किया । उस महिला ने बताया- " मैं इस राज्य के एक छोटे से प्रदेश की रहने वाली हूँ । कभी मेरे पति वहाँ के नगर सेठ थे । लेकिन अब हमें दाने दाने खाने के भी लाले पड़ गए हैं ।
उसकी पूरी बातो को सुनकर राजा ने पूछा क्या तुम्हारे पास भी बेचने के लिए कुछ है ? उस महिला ने एक कागज का टुकड़ा निकालकर राजा को दे दिया । उसमें सुंदर - सुंदर अक्षरों में तीन बातें लिखी थीं संसार में सबसे सुखी कौन ? सबसे बुद्धिमान कौन ? और सबसे वीर कौन ? राजा ने कागज के टुकड़े को ध्यान से देखा । कहा- “ लेकिन इन प्रश्नों का उत्तर तो लिखा ही नहीं । " महिला ने दूसरा कागज बढ़ाते हुए कहा- " इसमें है । " राजा ने दोनो कागजों को ले लिया ।
महिला को छह सोने की मुहरें दिला दीं । महल में पहुँचकर राजा ने दोनों कागजों को आमने - सामने रखा । संसार में सबसे सुखी कौन ? का उत्तर था जो अपने को जानता है । संसार में सबसे बुद्धिमान कौन ? इसका उत्तर था जो समय को पहचानता था । तीसरे प्रश्न- संसार में सबसे वीर कौन , का उत्तर था जो कभी विवेक न खोए । राजा तीनों बातों को बार - बार पढ़ता रहा । उसने इनको लिखवाकर अपने शयनागार में टांग दिया ।
राजा इस बात को समझ गया । उसने मुखिया से कहा- " तुम्हारी जगह में ही परीक्षा देने जाता हूँ । " मुखिया बात मान गया । दरबार में बैठे राजा ने लकड़हारा बने राजा को बुलाया । बाहर का फाटक छोटा था । बिना सिर झुकाए कोई अंदर नहीं जा सकता था । लकड़हारे राजा ने घोड़े को एक लगाई । घोड़ा दीवार फांदकर सीधे दरबार में पहुँचा ।
वहाँ उसके बैठने के लिए एक छोटी चौकी रखी थी । राजा ने घोड़े से उतरे बिना , अपनी तलवार से उस राजा का अभिवादन किया । इस विचित्र व्यवहार को देख , सभी को देखकर राजा समझ गया कि सामने वाला ... वहीं है । उसने रक्षकों को इशारा करके कुछ रत्न , कंकड़ और कुछ सिक्के राजा के सामने पेश किये ।
राजा ने सिक्के दरबार की ओर , रत्न राजा की ओर उछाल दिए । कंकड़ अपने पास लिए । उस दिन दरबार समाप्त हो गया । अगले दिन राजा ने मुखिया और उसके आदमियों को दरबार में बुलाया । उन्हें सम्मान पूर्वक राज्य में रहने का आदेश दिया । उसकी परीक्षा में लकड़हारा बना राजा सफल हो गया था । राजा को तो लकड़हारे के विचित्र व्यवहार का कारण जानना था ।
उसने उससे पूछा । लकड़हारा बने राजा ने कहा- " जब में दरबार में आया , तो इस छोटे फाटक की वजह से मेरा सिर झुकना निश्चित था । मैं एक स्वतन्त्र मुखिया का प्रतिनिधि था , इसलिए बिना सिर झुकाए ही आया । मैंने पैसे दरबारियों में बाँट दिये , क्योंकि वे उनके वेतन के थे । रत्न कर के रूप में आपको दे दिए ।
कंकड़ अपने पास रखने का मतलब था , आप हमें यहाँ व्यापार करने की आज्ञा दें । उसकी बातें सुन , पूरा दरबार आश्चर्य चकित था । राजा ने लकड़हारा बने राजा का असली परिचय जानने की इच्छा प्रकट की । " तब जाकर राजा ने अपना जीवन परिचय बता दिया । यह सुनकर उस राजा ने लकड़हारा बने राजा का खूब सम्मान किया । उसी दिन वह अपने राज्य को लौट गया ।
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