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राजा और नीली परी की कहानी | Pariyon ki duniya
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परीलोक का राजकुमार था किरणमय । एक दिन की बात , जब वह बाग में घूम रहा था । टहलता हुआ वह बाग के उस कोने में चला गया , जहाँ अक्सर नहीं जाता था । वहाँ पर घने पेड़ों के कारण अंधेरा सा था ।
एकाएक किरणमय ने सिसकियों की आवाज सुनी । वह चौंक पड़ा । सोचने लगा - ' परीलोक में कौन दुखी है ? किसे क्या कष्ट है ? 'सिसकियों की आवाज जिधर से आ रही थी , वह उस तरफ बढ़ी । झाड़ियों के बीच लोहे का बंद दरवाजा नजर आया । किरणय ने दरवाजा खटखटा दिया ।
कुछ पल दरवाजा खुलने का इंतजार करता रहा फिर देखा , की दरवाजा बाहर से बंद था । कुंडे में भारी ताला लगा था । ' आखिर कौन कैद है यहाँ ? ' यह सोचते हुए किरणमय ने पुकारा- “ कौन है वहाँ ? ” " मैं हूँ नील परी ? " । नील परी कैद में ! लेकिन क्यों ? किरणमय को बहुत आश्चर्य हुआ ।
नील परी से रानी माँ बहुत स्नेह करती थीं , फिर ऐसा कैसे हो गया । उसने पूछा- “ नील परी , तुम्हें किस अपराध का दंड मिला है ? क्या कसूर किया है तुमने लेकिन थोड़ा बहुत बताने से उसको पता हो गया की नील परी इस वक्त बहुत दुख में है ।
वह नील परी की सहायता करना चाहता था । लेकिन कैसे ? किसकी मजाल थी जो परी रानी से पूछ सके । उसने कहा- " नील परी , तुम चिंता न करो । मैं अभी जाकर माँ से पूछता हूँ । हम उनसे कहेंगे कि तुम्हें कैद से छोड़ दें । " नील परी का जवाब आया- " ऐसा मत करना कुमार । मैंने परीलोक का अनुशासन तोड़ा है । मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है । उसी का दंड भोग रही हूँ । रानी माँ से कुछ कहोगे , तो उनका गुस्सा और भी भड़क उठेगा ।
तुम यहाँ से चले जाओ । " किरणमय समझ गया कि नील परी और कुछ नहीं बताएगी । वह कुछ पल खड़ा - खड़ा सोचता रहा , फिर माँ से मिलने चल दिया । वह माँ से कहने जा रहा था कि नील परी को क्षमा कर दें ।
किरणमय परी रानी के पास पहुँचा तो देखा - वह एक सेविका को डांट रही थीं । माँ के चेहरे पर गुस्सा देखकर किरणमय सहम गया । अपनी बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके । परी रानी ने बेटे को देखा , तो क्रोधित स्वर में कहा - " " किरणमय , कहाँ चले गए थे ? मैं कब से तुम्हें बुला रही हूँ ।
अब भला किरणमय माँ से नील परी के बारे में कैसे कहता । वह सिर्फ इतना कह सका- “ माँ , मैं बाग में था , फूलों से बातें कर रहा था । " बेटे की भोली बात सुनकर परी रानी का गुस्सा ठण्डा हो गया । वह मुसकरा पड़ीं । बात आई - गई हो गई , पर किरणमय जो बात जानना चाहता था , वह पता न चल सका
वह परी महल से बाहर आया तो उसने जूही परी को देखा । वह जानता था कि जूही और नील परी पक्की सहेलियाँ हैं । किरणमय ने कहा- " जूही , क्या तुम नील परी के बारे में कुछ जानती हो ? उसे क्यों कैद किया गया है ?
" जूही ने कहा- " तो तुम्हें कुछ पता नहीं है । नील परी ने गलती की थी - उसी का दंड मिला है उसे । " फिर उसने किरणमय को पूरी घटना सुना दी । परियाँ मिलकर रोज रात को धरती पर जाया करती थीं । वहाँ खेलतीं , गातीं और फूल खिलातीं , दिन निकलने से पहले परीलोक वापस आ जातीं ।
कभी - कभी समुद्र से निकलकर जलपरियाँ भी उनके खेल में शामिल हो जातीं । एक बार नील परी जलपरियों के साथ खेल में इतनी मगन हुई कि सब कुछ भूल गई । उसकी बाकी सखियाँ लौट गईं , लेकिन वह जलपरियों के साथ बैठी बातें करती रही ।
जलपरियाँ उसे सागर में रहने वाले जलचरों के बारे में बता रही थीं । दिन निकल आया , चिड़ियाँ चहचहाने लगीं तो नील परी चौंक उठी । वह घबरा गई । उसने देखा , वह समुद्र के बीच एक ऊँची चट्टान पर जलपरियों से घिरी बैठी है । उसकी सखियाँ परी लोक वापस जा चुकी थीं । यह तो गजब हो गया था ।
नील परी ने अपने पंख उतारकर चट्टान पर रख दिये थे । उसने आकाश की ओर देखा तो परी लोक और धरती के बीच एक सोने की सीढ़ी लटकती दिखाई दी । वह सीढ़ी केवल परियों को ही दिखाई देती थीं ।
बस , नील परी उस सुनहरी सीढ़ी पर चढ़कर परी लोक वापस पहुंच गई । उसके पंख चट्टान पर पड़े रह गए । लौटने की हड़बड़ी में नील परी भी याद न रहा । की परी लोक पहुँचकर नील परी को अपनी गलती पता चली । लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थीं ।
सब परियों को परी रानी के महल में बुलाया गया था । वहाँ नील परी को न देख , परी रानी ने उसके बारे में पूछा तो परियाँ चुप खड़ी रह गई । परी रानी को पता चल गया कि क्या बात थी । कुछ देर बाद घबराई हुई नील परी , महल में पहुँची । परी रानी ने देर से आने का कारण पूछा- " तुम्हारे पंख कहाँ हैं ? " उस वक्त नील परी का सिर ऊपर नहीं उठ रही थी वह सर झुकाए खड़ी के खड़ी रह गई ।
यह बहुत बड़ा अपराध था । किसी परी ने ऐसी गलती कभी नहीं की थी । बस ! परी रानी ने उसे कैद में डालने का आदेश दे दिया । तभी से नील परी कैद भुगत रही थी । जूही परी से पूरी घटना सुनकर किरणमय परेशान हो उठा ।
वह समझ गया कि नील परी ने सचमुच बड़ा गंभीर अपराध किया था । लेकिन फिर भी किरणमय नील परी की सहायता करना चाहता था । परी रानी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी । उसने कुछ सोचा फिर स्वयं धरती पर जाने का निश्चय किया । - कुछ देर बाद किरणमय जूही परी के साथ उस चट्टान पर जा उतरा जहाँ नील परी अपने पंख भूल आई थी ।
उसने देखा कुछ जलपरियाँ चट्टान पर बैठी हैं और उन्हीं के बीच पड़े हैं नील परी के पंख । किरणमय ने कहा- " मैं नील परी के पंख लेने आया हूँ । " एक जलपरी बोली- " हम कब से यहाँ बैठी हुई इन पंखों की रखवाली कर रही हैं । ये पंख केवल नील परी को ही मिल सकते हैं । हम तुम्हें नहीं जानते ।
अब तो किरणमय को कहना पड़ा कि नील परी नहीं आ सकती । उसे पूरी घटना बतानी पड़ी । यह सुनकर जलपरियाँ क्रोध से भर उठीं- " तुम्हारी माँ बहुत कठोर हैं । हमारे जल देवता कभी किसी जलचर को दंड नहीं देते । पंख छोड़कर चली गई तो उसे कैद में डाल दिया । " -
जलपरी ने कहा । जूही परी और किरणमय ने बहुत कहा पर जलपरियाँ पंख लौटाने को तैयार न हुई । उन्होंने साफ कह दिया- " जब तक नील परी स्वयं नहीं आयेंगी , पंख नहीं मिलेंगे । " नील परी और किरणमय परी लोक वापस चले आए । किरणमय को इस समस्या का हल नहीं सूझ रहा था ।
जब तक पंख वापस न मिलते , नील परी की शक्तियाँ लौट नहीं सकती थीं । उधर जलपरियाँ जिद ठाने बैठी थीं । किरणमय बहुत देर तक सोचता रहा । आखिर उसने परी रानी को पूरी बात बताने का निश्चय किया ।
इस बार वह परी महल में गया तो परी रानी ने कहा " किरणमय , तुम फिर कहीं चले गए । । क्या बात है ? " किरणमय ने कहा- " माँ , मैं आपसे एक अपराध की क्षमा माँगने आया हूँ । ” - " क्या अपराध हो गया तुमसे ? " " मेरा नहीं , नील परी का अपराध । आपने अनुशासन तोड़ने के कारण उसे कैद में डाल दिया है । उसे मुक्त कर दीजिए । "
परी रानी ने ध्यान लगाया तो उन्हें पता चल गया कि जलपरियों और किरणमय के बीच क्या हुआ था । उन्होंने कहा- " किरणमय , तुम भी अपराधियों का साथ देने लगे । जानते हो , अपराध है । " यह भी एक " माँ , क्षमा माँगना अपराध नहीं है । अगर है तो आप मुझे दंड दें , नील परी को मुक्त कर दें ।
उसने गलती की थी , तो वह इतने दिनों में कैद भुगत रही है । उसने अपनी गलती मान ली है । क्या परी लोक में भी धरती के नियम चलेंगे ? अगर धरती वासियों को यह पता चला तो वे आपको कितना बुरा समझेंगे । " -किरणमय के विचार से । परी रानी का क्रोध ठंडा हो गया। उन्होंने बोला " किरणमय हमको यह जानकर बहुत ठीक लगा कि तुम्हारे सोच ऐसे हैं ।
लेकिन एक बात ध्यान रखना , अगर तुमने परी लोक का अनुशासन तोड़ा तो तुम्हें भी सजा मिलेगी । यह न समझना मेरे बेटे होने के कारण तुम बच जाओगे । " मैं इस बात का ध्यान रखूँगा माँ । " किरणमय ने सिर झुकाकर कहा । नील परी को कैद से मुक्ति मिल गई ।
वह किरणमय और जूही परी के साथ जलपरियों के बीच जा उतरी । अपनी सखी को सकुशल देखकर जलपरियाँ प्रसन्न हो उठीं । उन्होंने नील परी के पंख लौटा दिए । नील परी ने उन्हें बताया कि किरणमय ने कितना बड़ा काम किया है । "
अगर किरणमय ने सहायता न की होती तो न जाने मैं कब तक कैद में रहती । " - नील परी ने कहा । जलपरियों ने किरणमय से कहा- " परी कुमार , हमें क्षमा करना । गुस्से में हमने न जाने क्या कुछ कह दिया तुम्हें । " नील परी , जूही परी और किरणमय लौटने लगे , तो जलपरियों ने बहुमूल्य मोतियों की एक माला परी रानी के लिए उपहार में दी । कहा- " यह जल देवता की ओर से भेंट है परी रानी के लिए । " -सुनकर किरणमय मुसकरा उठा ।
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