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lolark kund varanasi लोलार्क षष्ठी को संतान प्राप्ति की कामना का पर्व | lolark kund varanasi in hindi
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वाराणसी में लोलार्क षष्ठी भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को काशी में बच्चों की मनोकामनाओं का पर्व सूर्य षष्ठी मनाई जाती है। एक विशेष तिथि को भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में यहां विराजमान लोलार्केश्वर महादेव की पूजा और उपासना के कारण इसे लोलार्क षष्ठी भी कहा जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर क्या है,
लोलार्क कुंड का महत्व (lolaark kund ka mahatv)
मानव इतिहास में, ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, लोलार्क कुंड एक विशेष भूमिगत आकृति होती है जो घर या निर्माण क्षेत्र के उत्तर-पूर्व भाग में स्थित होती है। यह कुंड आकर्षक ऊर्जा को अपने आस-पास एकत्रित करता है और उस ऊर्जा को घर में उपयोग करने में मदद करता है।
लोलार्क कुंड का महत्व यह होता है कि इसे उत्तर-पूर्व भाग में स्थापित करने से उत्तर-पूर्व के देवताओं के आशीर्वाद बना रहता है। इसके अलावा, लोलार्क कुंड अपने आस-पास की ऊर्जा को संतुलित रखने में मदद करता है जिससे कि घर के लोग और उसकी संपत्ति संतुलित रहती है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, लोलार्क कुंड के समीप लगाए गए सम्पदा से घर की संपत्ति और धन संबंधी ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए, लोलार्क कुंड को समृद्धि और आर्थिक सफलता के लिए विशेष महत्व होता है।
लोलार्क का अर्थ (Meaning of Lolark)
मुझे लगता है कि आप "लोलार्क" शब्द के अर्थ को जानना चाहते हैं। यह शब्द हिंदी भाषा में नहीं है, इसलिए इसका कोई स्थानिक अर्थ नहीं होगा।
लेकिन अगर आप "Lolark" शब्द की बात कर रहे हैं, तो यह संस्कृत शब्द है जो "हंसमुख" या "हंसमुखी" का अर्थ होता है। "लोल" शब्द का अर्थ हंसी को दर्शाता है और "अर्क" शब्द का अर्थ है सूर्य का प्रकाश या तेज। इसलिए, "लोलार्क" शब्द का अर्थ होता है "हंसमुखी सूर्य" या "हंसमुख जैसी तेज रवि किरणें"।
लोलार्क कुंड का स्नान कब है 2023 (When is the bath of Lolark Kund)
मान्यता के अनुसार, लोलार्क कुंड स्नान का समय माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को माना जाता है। यह स्नान उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक माना जाता है। इस स्नान को करने से धर्मिक और सामाजिक सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
लोलार्क कुंड का स्नान कब है 2023 (lolaark kund ka snaan kab hai)
लोलार्क कुंड स्नान का समय माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को माना जाता है। 2023 में माघ महीने की पूर्णिमा 8 फरवरी को है। इसलिए, लोलार्क कुंड स्नान 8 फरवरी 2023 को होगा।
लोलार्क कुंड का महत्व (lolaark kund ka mahatv)
लोलार्क कुंड हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में स्थित है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पाप मिटते हैं और वह अगले जन्म में सुखी होता है। लोलार्क कुंड को माघ मेले के दौरान बहुत धार्मिक महत्व है।
इसके अलावा, लोलार्क कुंड का इतिहास भी बहुत पुराना है। मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण भगवान राम के पुत्र लव और कुश द्वारा किया गया था। इसलिए, लोलार्क कुंड को "लव-कुश कुंड" भी कहा जाता है।
लोलार्क कुंड को माघ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और स्नान करते हैं। इसके अलावा, इस स्थान पर कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
लोलार्क छठ कब है 2023 (lolaark chhath kab hai 2023)
लोहड़ी और मकर संक्रांति जैसे हिंदू त्योहारों के तहत, छठ पूजा एक प्रसिद्ध पर्व है जो भारत में मनाया जाता है। छठ पूजा के अनुसार, छठी माता भागवती, सूर्य की पत्नी थीं और छठ पूजा के दौरान इनकी पूजा की जाती है।
2023 में, लोलार्क छठ पूजा 21 नवंबर को मनाया जाएगा।
लोलार्क कुंड वाराणसी का इतिहास (lolaark yugm vaaraanasee ka itihaas)
लोलार्क कुंड, जो वाराणसी के भोजपुरी क्षेत्र में स्थित है, एक प्रसिद्ध स्थल है जो छठ पूजा के दौरान लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। इस कुंड का इतिहास बहुत पुराना है और इसे मान्यता के साथ जोड़ा गया है।
लोलार्क कुंड के नाम का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। इसे छठ पूजा के अंतर्गत सूर्य की पत्नी छठी माता के लिए पूजा स्थल के रूप में जाना जाता है। लोलार्क कुंड के बनावट का वर्णन महाभारत में भी मिलता है।
लोलार्क कुंड के बनावट का निर्माण महाराज विश्वनाथ सिंह द्वारा कराया गया था। इसे बनवाने की शुरुआत 1805 में हुई थी और इसे बनाने में करीब 20 वर्ष लग गए। लोलार्क कुंड का आकार 30 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा है।
छठ पूजा के दौरान, लोलार्क कुंड एक महत्वपूर्ण स्थल है जहां लोग छठी माता की पूजा करते हैं और सूर्योदय के समय अर्घ्य देते हैं। यह पूजा संध्या के समय भी जारी रहती है। लोलार्क कुंड वाराणसी में बहुत से लोग आते हैं.
लोलार्क कुंड वाराणसी एड्रेस (lolaark kund vaaraanasee edres)
क्षमा करें, लोलार्क कुंड वाराणसी में नहीं है, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) शहर में स्थित माघ मेला के दौरान बनाया जाता है। यह वाराणसी से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर है।
लोलार्क कुंड का पता इलाहाबाद शहर के मध्य यमुना और गंगा नदी के संगम स्थल पर है। यह अखड़ा परंपरा के अंतर्गत बनाया गया है और माघ मेले के दौरान हजारों लोग इसे दर्शन करने आते हैं।
Lolark Kund Varanasi in Hindi
लोलार्क कुंड वाराणसी का इतिहास
वाराणसी में लोलार्क षष्ठी पर स्नान को लेकर असमंजस, 12 सितंबर को है संतान प्राप्ति का पर्व
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लोलार्क का अर्थ
लोलार्क संज्ञा पुं0 [सं0] 1. काशी के एक प्रसिद्ध तीर्थ का नाम जिसे लोलार्क कुण्ड कहते हैं । 2. सूर्य का एक नाम (को0) ।
लोलार्क कुंद श्री लोलार्केश्वर महादेव मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश
लोलार्क कुंड का महत्व
वाराणसी, काशी में भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को संतान प्राप्ति की कामना का पर्व सूर्य षष्ठी मनाई जाती है। एक विशेष तिथि को भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान कर यहां बैठे लोलार्केश्वर महादेव की पूजा-अर्चना के कारण इसे लोलार्क षष्ठी भी कहा जाता है। इस बार षष्ठी तिथि 12 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन स्नान करने के लिए एक धारा निकलती है। पिछली रात से ही कतार लगती है और शाम तक रस्में पूरी हो जाती हैं। भदैनी और असी क्षेत्रों के चारों ओर मेलों का आयोजन किया जाता है। भदैनी से असी चौमुहानी मंजिल तक लंबी कतार है। मनोकामना पूर्ण होने पर कुंड में स्नान करने और बालक का मुंडन कराने के साथ ही लोलार्केश्वर महादेव को पान भी चढ़ाते हैं। हालांकि, कोरोना पाबंदियों के चलते इस बार दूसरे वर्ष भी स्नान पर्व को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसकी अनुमति अभी तक प्रशासन स्तर पर नहीं मिली है।
लोलार्क कुंड वाराणसी
बनारस में सिद्ध कुंड
वजह यह है कि लोलारकेश्वर महादेव मंदिर प्रबंधन ने अब तक इसकी अनुमति के लिए आवेदन भी नहीं किया है और न ही प्रशासन इस ओर ध्यान दे रहा है. महंत संसवान पांडेय का कहना है कि अगर मैं अनुमति मांगता हूं तो सारी जिम्मेदारी प्रशासन की ओर से मुझ पर डाल दी जाएगी। प्रशासन अनुमति देता है तो मेले का आयोजन कोविड गाइड लाइन के अनुसार किया जाएगा। उधर, स्थानीय थाना प्रभारी भेलूपुर रमाकांत दुबे के अनुसार स्नान को लेकर जिला प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं दी गई है. ऐसे में कुछ बोला नहीं जा सकता है ।
लोलार्क कुंड वाराणसी – लोलार्क छठ की 10 जरुरी जानकारियां
लोलार्क कुंड का स्नान कब है
लोलार्क कुंड वाराणसी में असी-गंगा नदी के संगम के पास स्थित एक पवित्र तालाब है। हिंदू धर्म में सूर्य देव, पृथ्वी पर अवतरित हुए और पवित्र तालाब में स्नान किया। लोलार्क कुंड 2022 की तिथि 2 सितंबर है। इस दिन हजारों निःसंतान दंपत्ति तालाब में पवित्र डुबकी लगाते हैं, जिसे लोलार्क छठ के नाम से भी जाना जाता है।
1. वाराणसी में लोलार्क कुंड और लोलार्क छठ के बारे में 09 महत्वपूर्ण जानकारी:
2. तालाब में सबसे महत्वपूर्ण पवित्र डुबकी भाद्रपद शुक्ल पक्ष षष्ठी (भाद्रपद के महीने में चंद्रमा के शुक्ल पक्ष के छठे दिन) पर होती है।
3. तालाब में पवित्र डुबकी भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष के दौरान षष्ठी (या छठ) से शुरू होती है और 16 दिनों तक जारी रहती है।
4. मान्यता है कि तालाब में स्नान करने से बांझपन दूर होता है। इस अनुष्ठान में हर साल हजारों निःसंतान दंपत्ति भाग लेते हैं।
5. लोलार्क कुंड नाम का अर्थ "कांपते सूरज का पांड" है।
6. जब पुत्र-पुत्रियों द्वारा पवित्र स्नान किया जाता है, तो उसका पुण्य मृत पूर्वजों तक पहुँचता है।
7. इस दौरान यहां की पवित्र डुबकी त्वचा रोगों से भी निजात दिलाने में मदद करती है।
8. यहां का पवित्र स्नान कुष्ठ रोग को ठीक करने में मदद करता है।
9. लोकप्रिय धारणा यह है कि एक अघोरी साधु, किना राम ने यहां एक बांझ महिला को बच्चों के साथ आशीर्वाद दिया और उसने अगले तीन वर्षों में तीन स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया।
10. लोलार्क कुंड में स्नान करने के बाद, कुछ भक्त किनराम आश्रम जाते हैं और यहां क्रिमी कुंड में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
लोलार्क कुंड का मेला कब लगता है?
भादो (अगस्त-सितंबर) के महीने में एक लक्खा मेला होता है और फिर लोग काशी में यहा लोलार्क कुंड में डुबकी लगाने के लिए उमड़ पड़ते हैं। अस्सी के भैदानी स्थित प्रसिद्ध लोलार्क कुंड पर हर वर्ष लाखों भक्तों का मेला लगता है।
लोलार्क कुंड वाराणसी की कहानी
प्रसिद्ध ज्योतिषी पं. ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि लोलार्क कुंड में व्रत करने से अनुष्ठान स्नान-दान, फलों का बलिदान और लोलारकेश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद अवश्य भर जाती है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी। यह भी माना जाता है कि पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत भगवान भास्कर की लाल बत्ती की पहली किरण इसी स्थान पर पड़ी थी, इसलिए इसे सूर्य लोल कहा गया। इतना ही नहीं, भगवान सूर्य का चक्र भी इसी कुंड में गिरा और इसे लोलार्क कुंड कहा गया।
एक शास्त्रीय कथा यह भी है कि विद्युन्माली दैत्य शिव के भक्त थे। भगवान सूर्य ने इस राक्षस को परास्त किया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव हाथ में त्रिशूल लेकर सूर्य की ओर दौड़े। दौड़ते समय सूर्य इसी स्थान पर पृथ्वी पर गिरा था। इससे इस स्थान का नाम लोलार्क पड़ा। वह भाद्रपद मास के सप्तमी के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी। किसी विशेष तिथि पर व्रत, स्नान और दान-पुण्य करने से अक्षय फल मिलता है। विशेष रूप से, यदि किसी विशेष तिथि पर सूर्य पूजा, गंगा दर्शन और पंचगव्यप्राशन किया जाता है, तो परिणाम अश्वमेध यज्ञ के समान होता है। साधु-संन्यासी भी मोक्ष प्राप्ति के लिए यहां स्नान करते हैं। फल देने का भी विधान है।
लोलार्क कुंड में स्नान अबकी बार भी संभव संतान प्राप्ति के लिए लोलार्क षष्ठी पर अबकी साल भी हजारों आस्थावान लोलार्क कुंड में स्नान से वंचित रह जायेंगे । अपनी मनोकामना की संकल्प के साथ कुंड में...
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लोलार्क षष्ठी पर इस वर्ष लोलार्क कुंड में संतान प्राप्ति के लिए हजारों श्रद्धालु स्नान से वंचित रहेंगे। श्रद्धालुओं को अपनी मनोकामना के संकल्प के साथ कुंड में स्नान करने के लिए अगले साल तक इंतजार करना होगा। इस बार लोलार्क षष्ठी पर्व 12 सितंबर को है। एसीपी भेलूपुर प्रवीण कुमार सिंह ने कहा कि पिछली बार की तरह इस बार भी कोविड प्रोटोकॉल के तहत लोलार्क कुंड में स्नान व मेले पर रोक रहेगी. इस बारे में महंत परिवार से बातचीत हो चुकी है। वहीं एडीसीपी काशी राजेश पांडेय ने बताया कि सभी आयोजन कोविड गाइड लाइन के अनुसार होंगे. आयोजनों में 50 से अधिक लोगों के एकत्र होने की अनुमति नहीं है।
उल्लेखनीय है कि लोलार्क षष्ठी पर बाबा कीनाराम स्थल स्थित लोलार्क कुंड और कृण-कुंड में स्नान के लिए एक लाख से अधिक लोगों का जमावड़ा होता है. यह दुविधा पिछले साल तक बनी रही। हजारों जोड़ों को बिना नहाए वापस लौटना पड़ा।
लोलार्क पूल की महानता
मान्यता है कि लोलार्क कुंड में व्रत करने से स्नान-दान, फलों का यज्ञ और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद जरूर भर जाती है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी। यह भी माना जाता है कि पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत भगवान भास्कर की पहली किरण इसी स्थान पर पड़ी थी। इसी कुंड में भगवान सूर्य का चक्र भी गिरा था। वहीं दूसरी ओर चर्म रोग से ग्रसित वयस्क कृण-कुंड में स्नान करते हैं। वहीं सुखंडी (सूखा) रोग से पीड़ित बच्चों को भी इसी कुंड में नहलाया जाता है।
बच्चों की कामना के लिए लोलार्क कुंड में डुबकी: काशी में सूर्य षष्ठी पर लोगों ने किया स्नान, वैज्ञानिक बोले- ये है खगोलीय घटना के प्रमाण है
आज काशी में बच्चों की मनोकामना के लिए सूर्य षष्ठी को लोलार्क कुंड में स्नान किया जा रहा है. सर्वे में सामने आया है कि यहां स्नान करने से 60 फीसदी लोगों को संतान सुख की प्राप्ति हुई है. यूनेस्को ने तुलसी घाट पर स्थित लोलार्क कुंड को सांस्कृतिक खगोल विज्ञान स्थल भी घोषित किया है। इस दिन महिलाओं को मिस्र के उल्टे पिरामिड के आकार के 50 फीट गहरे और 15 फीट चौड़े इस कुंड में खाली पेट भरने का वरदान मिलता है.
बच्चे की तलाश में लोलार्क पूल में डुबकी लगाते है श्रद्धालु।
आज सुबह से लेकर 4 बजे तक 12 हजार से भी ज्यादा लोगो ने स्नान कर लिए हैं. इस समय अस्सी घाट से सोनारपुरा तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। संतान की कामना लेकर पति-पत्नी यहां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर स्नान कर रहे हैं। मान्यता के अनुसार स्नान के बाद लोग वहां पहने हुए कपड़े छोड़कर नए कपड़े बदलते हैं और लोलकेश्वर महादेव के दर्शन करने जाते हैं।
लोलार्क पूल के उत्तरी किनारे पर मौजूद एक लंबी संरचना की मदद से सूर्य की किरणें कुंड के पानी पर पड़ती हैं।
डॉक्टर, दवाई और हकीम के नुस्खे से तंग आकर लोग संतान की चाहत पूरी करने के लिए यहां आते हैं। वहीं जिन लोगों को यहां स्नान करने के बाद संतान होती है तो वे परिवार यहां बाल मुंडवाते हैं।
लोलार्क कुंड में स्नान।
सर्वे में सामने आया कि 60% महिलाओं को मिला संतान सुख
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यहां स्नान करने के कारण 60% महिलाओं के गर्भ खाली हैं। धार्मिक दृष्टि से भी इस बार 28 वर्ष बाद संतान सप्तमी और लोलार्क षष्ठी का बड़ा संयोग बना है। आज षष्ठी तिथि प्रातः 11:16 बजे तक है। इसके बाद सप्तमी तिथि होगी। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी आज लोलार्क कुंड में एक विशेष खगोलीय घटना हो रही है।
लोलार्क कुंड में स्नान।
खगोलीय घटना जानने से पहले आइए जानते हैं कुण्ड पर किए गए एक अध्ययन के बारे में...
लोलार्क कुंड की मान्यता और इसके वैज्ञानिक संबंध पर 40 वर्षों से अध्ययन कर रहे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व भू वैज्ञानिक प्रोफेसर राणा पीबी सिंह से बात की। उन्होंने कहा, “इस कुंड का आकार, सूर्य की किरणें और गंगा जल सभी एक विशेष संयोजन बनाते हैं। 1995 में किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया है कि इस कुंड में नहाने के बाद 60% लोगों की गोद भर जाती है। वे अगले साल यहां अपनी मन्नतें पूरी करने आते हैं।
तुलसी घाट स्थित लोलार्क कुंड में पति-पत्नी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर स्नान करते हैं।
प्रोफेसर राणा पीबी सिंह ने बताया कि साल 2020 में किए गए सर्वे के बाद यह घटकर 35 फीसदी पर आ गया है. करीब 22 हजार स्नानार्थियों पर सर्वे किया गया। सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि उनकी शादी को 5-7 साल हो चुके हैं। लेकिन बच्चा नहीं हुआ। लोलार्क कुंड में नहाने के 1-2 साल के भीतर ही खाली पेट भर गया।
लोलार्क कुंड में स्नान करने के बाद तीर्थयात्री खड़ी सीढ़ियां चढ़कर वापस आते हैं। इस दौरान कुंड की ओर मुड़कर नहीं देखा जाता।
19वीं सदी से पहले काशीवासियों को कोई बीमारी नहीं थी
समर्थक। सिंह कहते हैं कि 19वीं सदी से पहले वाराणसी में किसी को भी हैजा, हैजा, बांझपन या त्वचा रोग नहीं थे। यहां के तालाबों और तालाबों में जो गंगा जल पहुंचता था वह वास्तव में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का काम करता था। 1822 में जेम्स प्रिंसेप ने यह भी लिखा कि काशी का लोलार्क कुंड गर्भाधान में मदद करता है। इसके बाद डायना एक और खुद प्रो. सिंह ने अपनी किताब में इस जगह को फर्टिलिटी कल्ट के नाम से संबोधित किया है।
लोलार्क महादेव मंदिर।
मनोकामना पूर्ति का कारण है कुंड की ज्यामिति
समर्थक। सिंह ने कुंड पर खगोलीय घटना का अध्ययन करने के बाद कहा, "कुंड की ज्यामिति ऐसी है कि लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह भारत का एकमात्र कुंड है, जिसकी चारों दिशाएं पूरी तरह से खगोलीय मानकों पर आधारित हैं। ध्रुव इसके उत्तर में कॉस्मिक नॉर्थ है। यानी खगोल विज्ञान के मानकों के अनुसार, इजेक्ट उत्तर की दिशा है। इस दिन सूर्य की किरणें इसके उत्तरी ध्रुव से होकर गुजरती हैं। जैसे-जैसे किरणें उल्टे पिरामिड की सीढ़ियों और ध्रुवों से नीचे जाती हैं, इसकी तीव्रता बढ़ जाती है।गंगा के जल से शरीर को जो ऊर्जा मिलती है और किरणों के रिसने से गर्भधारण में सबसे अधिक लाभ होता है।
समर्थक। सिंह ने बताया कि यह सिद्ध हो चुका है कि इस स्नान के पीछे विज्ञान है। 90 के दशक में जब लोगों के खून की जांच की जा रही थी तो काफी विरोध हुआ और शोध कार्य को रोकना पड़ा।
लोलार्क पूल -
लोलार्क कुंड का इतिहास गुप्त काल से संबंधित है
ऐसा लगता है कि लोलार्क कुंड चौथी शताब्दी ईस्वी के दौरान गुप्त काल के दौरान बनाया गया था। यह भोपाल के संग्रहालय में रखी एक प्लेट से संकेत मिलता है। इस प्लेट पर लोलार्क पूल जैसी आकृति बनाई गई है। पत्थर पर सूर्य और गोले का चित्र उकेरा गया है। शतपथ ब्राह्मण और काशी खंड में भी वंश वृद्धि के लिए एक पवित्र स्थान के रूप में इसका उल्लेख है। हालांकि, 10 वीं शताब्दी में, गढ़वाल वंश के राजा गोविंद चंद ने कुंड के चारों ओर पुनर्निर्माण किया। तब से देश भर के लोगों को इस पूल के फायदों के बारे में जानकारी मिली। उनके बाद इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस कुंड को कीमती पत्थरों से सजाया था।
तस्वीरों में देखिए लोलार्क कुंड का स्नान...
लोलार्क कुंड में स्नान के दौरान प्रसाद के रूप में फल और फूल पानी में फेंके जाते हैं।
लोलार्क कुंड में स्नान करने यूपी-बिहार समेत कई राज्यों से श्रद्धालु पहुंचे हैं.
लोलार्क कुंड में अब तक 12 हजार से ज्यादा लोग स्नान कर चुके हैं.
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