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फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

लालची कुत्ता की कहानी, लोभ करने का अंजाम | Roti ki Kahani

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एक कुत्ता किसी घर में घुसा और वहां आधी रोटी पा गया । बस वह उसे मुंह में दबाकर घर से बाहर निकला और तेजी से नदी की ओर भागा । इस विचार से कि नदी के उस पार पहुंचूँगा तो आराम से किसी झाड़ी में बैठूंगा और स्वाद ले - लेकर यह आधी रोटी खाऊंगा । कुत्ता भागते - भागते नदी के किनारे पहुँचा , फिर नदी में घुसा और उसे जल्दी - जल्दी पार करने लगा ।  अचानक उसने नदी के साफ पानी में अपनी परछाई देखी । अपनी परछाई के मुंह में आधी रोटी दबी देखी । बस , उसने लोभ किया । उसके आनन्द की सीमा न रही । उसको समझ में एक ही बात आई । पानी के भीतर कोई दूसरा कुत्ता मुंह में आधी रोटी दबाए चला जा रहा है ।  यदि मैं उस पर हमला कर दूँ और उससे यह आधी रोटी छीन लूं कितने मजे में रहूँगा । आधी रोटी के बदले एक पूरी पा जाऊँ , फिर वह रोटी खूब मजे ले - लेकर चबाऊँ खाऊँगा । उसमें यह विचार आते ही कुत्ता अपनी परछाई पर झपट पड़ा और आँखें निकालकर गुर्रा उठा - भौं भौं ... भौं … ... । परन्तु यह क्या ? कुत्ते ने गुर्राने के लिए ज्योंहि अपना मुंह खोला , त्यों ही वह आधी रोटी भी उसके दाँतों की पकड़ से छूटकर नदी के पानी में जा गिरी और गिरते ही रोटी धार

एक चोर की कहानी | Kutte ki wafadari Story in Hindi

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चोर की कहानी एक चोर बहुत ज्यादा चालाक था । वह एक रात को किसी गृहस्थ के घर चोरी करने लगा । गृहस्थ ने एक कुत्ता पाल रखा था । कुत्ता बड़ा स्वामीभक्त था । वह रात - रात भर जागता कुकुर निदिया सोता और घर की रखवाली करता था ।  चोर को देखते ही उसने जोर - जोर से गुरांना और भौंकना शुरू कर दिया । चोर ने सोचा - पहले कुत्ते का मुख बन्द करना चाहिए , नहीं तो वह भौक - भौंक कर घर वालों को जगा देगा और मुझे यहाँ से खाली हाथ रफू - चक्कर होना पड़ेगा ।  बस उसने चतुराई और चालाकी से काम लिया और लगा कुत्ते को बार - बार पुचकारने तथा उसके सामने मांस के टुकड़े फेंकने । कुत्ता भी कुछ कम अक्लमंद नहीं था । वह लगा जल्दी - जल्दी मांस के टुकड़े निगलने और चोर को जली - कटी सुनाने लगा । तुमको देखते ही मुझे सन्देह हो गया था कि तुम भले आदमी नहीं हो तभी तो मुझे फुसलाने के लिए पुचकारते हो और मांस के टुकड़े भी खिलाते हो ।  परन्तु मैं जानता हूँ कि रिश्वत के लोभ से काम निकलवाने वाला आदमी भला नहीं होता । अच्छा है तुम मुझे पुचकारते जाओ मांस के टुकड़े भी खिलाते जाओ । परन्तु मैं अपने कर्त्तव्य से मुख नहीं मोडूंगा । लगातार शोर करूँगा औ

पूछ कटे सियार की कहानी | story of the clever jackal

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Siyar ki kahani in Hindi शिकारी ने फंदा लगाया और अचानक एक सियार उसमें फंस गया अब तो सियार बहुत घबड़ाया उठा और फंदे से छूटने के लिए  उछल - कूद मचाने लगा, परन्तु उसकी उछल - कूद ने कुछ काम न दिया वह फंदे से न छूट सका । इतने में शिकारी आ पहुँचा और सियार को मारने के लिए तैयार हुआ । सियार ने रो - रोकर उससे प्रार्थना की । भला मेरे प्राण लेने से आपको क्या फायदा होगा ? कृपा कर मुझे छोड़ दीजिए । मैं जिन्दा रहूँगा तो आपका उपकार मानूँगा ।  सियार के रोने - गिड़गिड़ाने पर शिकारी को दया आ गई । उसने सियार को छोड़ तो दिया परन्तु उस सियार की पूंछ काट ली । सियार पूंछ खोकर वहां से भागा और दुःखी होकर मन में सोचने लगा । पूंछ कट जाने से मेरी सारी सुन्दरता नष्ट हो गई । अब मैं कैसे अपने जाति भाईयों के सामने जाऊंगा और कैसे उन्हें मैं अपना मुख दिखाऊंगा ।  जब वह मुझसे पूछेंगे कि अरे तेरी पूंछ कहां गई तो मैं उनको क्या उत्तर दूंगा । हाय हाय ! इससे तो यही अच्छा था कि शिकारी मुझे जान से मार डालता । आखिर सियार की समझ में एक आइडिया सूझी। यदि मेरे साथ जाति भाई अपनी - अपनी पूंछ कटवा लो तो कैसा रहेगा ? वाह , तब तो सबकी सु

सांढ़ की चतुराई शिक्षादायक कहानी | Inspirational story of bull

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सिंह की नजर सांढ़ पर पड़ी । उसके मुंह में पानी भर आया । वह सोचने लगा । जैसे बने इस सांढ़ को मारकर खाना चाहिए । परन्तु यह खूब तगड़ा , खूब मजबूत है । इसे मारना सरल नहीं है मैंने इस पर हमला किया और कहीं यह मुझसे भिड़ गया मुझ पर कहीं अपने लम्बे - लम्बे सींग चला बैठा तो शायद मुझे ही लेने के देने पड़ जायेंगे .  फिर करना क्या चाहिए ? आखिर सिंह को एक उपाय सूझा । वह सांढ़ के पास पहुंचा और मुस्कुराकर बोला - सांढ़ भाई ! आज मैंने जंगल के पशुओं को निमंत्रण दिया है । आप भी पधारने की कृपा कीजिए । यही कोई दो घण्टे बाद । मैंने तरह - तरह के भोजन तैयार करवाये हैं । उनमें कुछ व्यंजन ऐसे भी हैं जो आपने कभी नहीं खाये होंगे ।  इसलिए आप दावत में अवश्य पधारिये , देखिये - भूलिए नहीं । सांढ़ ठीक समय पर सिंह के यहाँ पहुंचा , तो देखता क्या है कि सामने कोई थाल मौजूद है । जिसमें से कुछ खाली है और कुछ दूब , घास , दाने आदि पदार्थों से भरे हैं ।  सांढ़ पर नजर पड़ते ही सिंह बहुत प्रसन्न हुआ और मुस्कुराते - मुस्कुराते बोला - आइए विराजिए भोजन तैयार है आप खाना शुरू कर दीजिए । मैं अभी इन खाली - थालों में नए - नए पदार्थ परोसत

भेड़िहार की कहानी | Har Cheej Kaam Aatee Hai

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गड़ेरिये के पास बहुत सी भेड़ें थीं । उनकी रखवाली के लिए उसने कुछ कुत्ते भी रख छोड़े थे । उन भेड़ों को दिन भर जंगल में चराता रहता था । शाम होते - होते उनको लेकर घर लौट पड़ता था और मड़ई में उनको बन्द कर देता था । फिर उनकी जरा भी खबर न लेता , परन्तु उन कुत्तों के आराम का पूरा - पूरा ख्याल रखता था ।  उनको बड़ी सावधानी से खिलाता पिलाता और भूलकर भी कुत्तों को भूखा ना रहने देता था । यह सुनकर भेड़ों को बड़ा दुःख हुआ करता था । एक दिन उन्होंने गड़ेरिये से जाकर बोला की समस्या है सरकार ! हम हर तरह से निहचिंत होकर आपके काम आते हैं । फिर भी आप हमारी कोई खबर नहीं लेते ?  परन्तु कुत्ते आपके किसी काम नहीं आते । फिर भी आप उसको खूब खिलाते - पिलाते हो और हर तरह के आराम पहुंचाते हैं । देखिए , आप सदा हमारी बाल काटकर ऊन बनाते हैं जिससे उसके कम्बल बनाये जाते है और उन्हें बेच - बेचकर आप रुपये कमाते हैं । इसके सिवाय , आप हमारा दूध भी पीते हैं और पिलाते हैं ? फिर आप इतनी रखवाली से कुत्तों का करते हो और क्यों उनकी रखवाली करते हैं ?  यह सुनकर गड़ेरिया तो कुछ न बोला , परन्तु एक कुत्ता चुप ना  रह सका । उसने चट से उत्त

एक दूसरे की मदद करने वाली कहानी | Sab Kaam Sahayog Se Chalate Hain

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 एक बार ऐसा हुआ जब शरीर के पैर , हाथ , मुंह , दांत आदि सभी अंगों ने मिल जुलकर पेट से बोला- मिया ! आप कुछ करते - धरते हो नहीं केवल बैठे - बैठे ही चरते रहते हो ? एक हम हैं जोकि काम करते - करते थके जा रहे हैं और एक तुम हो कि माल चरते - चरते रुकते भी नहीं  इस तरह से काम अब नहीं चलेगा । कुछ करते - धरते होते तो ऐ दिन नहीं देखना पड़ता । आज से हम सब का रास्ता अलग है , तुम्हारा रास्ता अलग । - तब पेट ने उत्तर दिया- कैसी बातें करते हो भाईयों ? क्या तुम समझते हो कि मैं कुछ करता - धरता नहीं हु केवल  बैठे - बैठे माल ही चखता रहता हूँ ।  पेट का यह उत्तर सुनकर पैरों ने अन्य दूसरे अंगों से बोला- क्या जानते हो तुम लोग ? ये मियां करेंगे धरेंगे तो कुछ भी नहीं । बस बात ही बनायेंगे और माल चाटेंगे । भाई हम तो आज से इस पेट के लिए कुछ खाना पीना बटोरने कहीं नहीं जायेंगे । अब तुम्हारे जी मैं जैसा आये वैसा ही करो ।  हाथों ने कहा - ऐ तुम हमें क्या समझते हो ? हम भी आज से इसके लिए उंगलियाँ हिलाने वाले नहीं । - मुंह ने कहा - तो तुम हमें क्या समझते हो ? और मैं कभी इसके लिए कोर निगलूँ तो मेरे मुँह पर थूक देना । दाँतों ने

रामू सरजू सगे भाई की कहानी | भाई भाई का प्यार | सेर को सवा सेर in Hindi

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  ललितपुर गांव में एक सरजू नाम का किसान रहा करता था । एक बार ऐसा भी हुआ जब भारी अकाल पड़ने के बाद में जब बारिश का मौसम आया तो सरजू अपनी पत्नी से बोला - भागवान ! बरसात का मौसम आ गया है , किसी भी वक्त वारिश हो सकती है ।  लेकिन हमारे पास न तो बुआई के लिए बीज है और न जोतने के लिए बैल हैं । मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं बीज और बैलों का बन्दोबस्त कहाँ से और कैसे करूं । उसकी पत्नी कुछ सोचकर बोली - आप जेठ जी के पास चले जाइये और उन्हें अपनी मजबूरी से अवगत कराइये । मुझे पूरा विश्वास है कि वे हमारी अवश्य मदद करेंगे ।  ठीक है ! मैं कल ही भइया के पास कासिमपुर चला जाता हूँ । और सुनिये हमारे पास अब कुछ ही दिनों का और अनाज शेष है । अतः जेठ जी से एक बोरी अनाज भी लेते आना । ठीक है । दूसरे दिन वह कासिमपुर अपने भाई के घर पहुँचा । राम राम भाभी ! जीते रहो भईया ! कहो अचानक कैसे आना हुआ ? रूपवती और बच्चे कैसे हैं सरजू ? भगवान के कृपा से सब कुछ अच्छा चल रहा हैं भाभी ! अरे हां ! रामू भइया कहां हैं भाभी । वह सोचने लगी कुछ दिन पहले वे ठीक ही कह रहे थे कि सरजू की हालत अच्छी नहीं है और वह किसी भी समय मदद मांगने यह

एक कुल्हाड़ी दो राहगीर की कहानी | Friend is the one who gives enjoyment of his happiness

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सोने की कुल्हाड़ी की एक और कहानी  दो बटोही एक साथ कहीं जा रहे थे , अचानक उनके रास्ते में पड़ी सोने की एक कुल्हाड़ी दिखाई दी । बस , पहले बटोही ने लपककर वह कुल्हाड़ी उठा ली और कहा अहा ! मेरा भाग्य जाग उठा । मुझे यह सोने की कुल्हाड़ी मिल गई है । अब जीवन भर मैं गुलछर्रे उड़ाऊँगा और चैन की वंशी बजाऊँगा ।  यह सुनकर दूसरा बटोही बोला- कैसी बात करते तो हो भाई ? यह क्या कहते हो कि कुल्हाड़ी मुझे मिली है । यह क्यों नहीं कहते कि कुल्हाड़ी हमें मिली है ? जब हम दोनों मित्र हैं और एक साथ चल रहे हैं , तब यह कुल्हाड़ी हमदोनों को मिली है और इसमें हम दोनों का बराबर - बराबर का भाग है । कुछ समझे । पहले बटोही ने हंसकर कहा- वाह अच्छे रहे ! कुल्हाड़ी पहले मैंने देखी है और मैंने ही उठाई है । फिर इसमें तुम्हारा भाग कैसे हो । गया ?  देखो भाई साफ बात है , कुल्हाड़ी मुझे मिली है । इसलिए मेरी है । मैं तुम्हें इसका कोई भाग नहीं दूंगा । । इस पर दूसरा बटोही कुछ न बोला । चुपचाप रास्ता चलने लगा इतने में कुल्हाड़ी का मालिक दौड़ता - दौड़ता वहां आ पहुंचा । उसने कसकर पहले बटोही का हाथ पकड़ा और गरजकर कहा- मेरी कुल्हाड़ी कहां

गरीब का बेटा बना फौजी | Khuda Ki Khudai

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Kisan ka beta banaa fauji प्रमोद अपने माता - पिता का बहुत ही लाडला था । दोनों ही माता - पिता उस पर जान छिड़कते थे । मां उसकी देख - रेख बड़े ही सुन्दर ढंग से किया करती थी । प्रभु परमेश्वर के प्रेम और भय में वह दिन - प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था पढ़ाई समाप्त करने के बाद वह फौज में भर्ती हो गया ।  जाते समय मां ने उसे एक बहुत ही सुन्दर बाइबिल दी थी । और कहा- बेटे इसको बराबर अपने पास रखना और इसे सदा पढ़ते रहना , कठिनाई और परेशानी में इससे तुम्हें बड़ी सहायता मिलेगी । प्रमोद माँ की शिक्षाओं पर सदा दिया । बेटे को पाकर दोनों ही बहुत खुश थे  उन्होंने उसका नाम दीपू रखा । वे बड़े नाज और प्यार से उसका पालन - पोषण करते थे । एक बार प्रमोद छुट्टियों में घर आया हुआ था कि अचानक हेड ऑफिस से सूचना आई के शत्रुओं ने बड़ा जोरदार हमला कर दिया और उसे फौरन ही अपनी टुकड़ी के साथ बॉर्डर पर पहुंचना है ।  इस खबर को सुनकर सीमा घबरा गई और रोने लगी । प्रमोद ने उसे हिम्मत दिलाई और कहा- निराश न हो सीमा ! परमेश्वर की इच्छा हुई तो हम जल्दी ही फिर मिलेंगे । तुम मेरे लिए प्रार्थना करती रहना और बेटे को देख - रेख भली प्रकार करती

रावण ने सम्पन्न कराया भगवान् राम का अश्वमेध यज्ञ | On the banks of Rameshwaram

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  श्रीराम ने लंका अधिपति राक्षसराज को समाप्त कर विभीषण को लंका का राजा बना दिया । वे खुद सीता और लक्ष्मण को लेकर पुष्पक विमान से अयोध्या आ गए । अयोध्यावासियों ने उनके आने की खुशी में घर - घर में दीपक जलाए । अगले दिन भरत जी ने श्रीराम को उनका राज्य सौंप दिया ।  राज्याभिषेक के बाद श्रीराम अपनी प्रजा के हर सुख - दुख का ध्यान रखने लगे । एक बार दरबार का सारा काम - काज समेट वे अपने शयनकक्ष में आए । विश्राम करने के लिए जैसे ही वे लेटे , सीताजी उनके पैर दबाने लगीं । लेटे - लेटे श्रीराम सोचने लगे- " मैं रावण , कुम्भकर्ण और ब्राह्मणों की हत्या की है , यद्यपि एक औरत को उठाने जैसा घृणित कार्य उन्होंने किया था तो भी ब्रह्महत्या का पाप तो मुझे लगेगा ही । "  सीताजी ने देखा , श्रीराम के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं वे बोलीं- " प्रभो क्षमा करें । आप किस सोच में डूबे हुए हैं ? " श्रीराम अपनी पत्नी सीता से कुछ भी नहीं छिपाते थे । बोले " प्रिये , हमने - कुम्भकर्ण आदि ब्राह्मणों का वध किया था । हमें यह चिन्ता सता रही है कि हम कहीं ब्रह्म हत्या के भागी तो नहीं बन गए ? " स

सीमा-नीता और सहेली प्रभा की एक कहानी | Eershya Ka Phal

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सहेली की कहानी  शाम का समय था । मौसम बहुत ही प्यारा था । मौसम अच्छा था । किन्तु सीमा बहुत उदास थी घर में बैठी थी । उदासी के आलम में घर बैठे - बैठे उसकी तबियत बहुत ही घबड़ाने लगा और वह चाहकर भी घर में बैठी न रह सकी उसने अपने कपड़े ठीक किए और घर से बाहर सड़क पर निकल आई । सड़क पर निरूद्देश्य की घूमते - घूमते उसके कदम अपने आप ही पास में एक पार्क की ओर उठ गए । एक पेड़ के नीचे बैठकर वह अपने जीवन के विषय में सोचने लगी । अपने विचारों में इतनी लीन थी कि उसे पता नहीं चला कि कब उसकी प्रिय सहेली प्रभा धीमे कदमों से चलती हुई उसके बिल्कुल पीछे आ खड़ी हुई । वह चौंक गई जब प्रभा ने उसको पुकारा । प्रभा ने पूछा- यहां अकेली बैठी क्या कर रही हो । सीमा के पास इस प्रश्न के सिवाय उस निर्जीव मुस्कुराहट के कोई उत्तर नहीं था । प्रभा ने बैठते हुए . कहा , क्या बात है सीमा , बड़ी उदास दिखाई दे रही हो । सीमा चुप रही । प्रभा ने फिर से पूछा नीता कहां है ? मैं देख रही हूँ कि आज कल तुम दोनों बहनें बड़ी अलग - सी रहने लगी हो । इससे पहले तुम दोनों में बड़ा प्रेम था , एक - दूसरे के बिना तुम लोग न कहीं जाती थी , न अलग ही रहत

सच्चे का बोलबाला , झूठे का मुँह काला

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मनोज स्टेशन पर टिकट खरीदने के लिए एक लम्बी लाइन में खड़ा हुआ था । एक - एक करके आदमी आगे बढ़ते जा रहे थे , मनोज भी धीरे - धीरे आगे बढ़ रहा था । वह बड़े धीरज से अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । वह बेचैनी से इधर - उधर देखता और फिर चुपचाप अपनी जगह खड़ा हो जाता मनोज के समाने वाली आदमी कुछ देर तो लाइन में आगे खिसकता रहा । और फिर धीमे से लाइन से आहर निकल गया ।  मनोज ने उसको देखा और फिर जल्दी से आगे बढ़ गया । उसने देखा कि उससे आगे केवल तीन - चार ही लोग रह गए हैं और उनके बाद उसका नम्बर आ जाएगा । कुछ देर बाद उसके सामने वाले पुरूष ने एक टिकट बम्बई के लिए खरीदी और पैसे देने के लिए जेब में हाथ डाला , पर यह क्या एकदम उसका चेहरा उतर गया वह परेशान - सा इधर - उधर अपनी जेबों में हाथ मारने लगा । टिकट बाबू ने उसकी Tarph देखा उसका मुंह उतरा देखकर पूछने लगा , क्या हो गया जेब कट गई ?  उस पुरूश ने कहा- हां टिकट बाबू । टिकट बाबू ने फौरन पुलिस को फोन किया और कुछ देर के बाद ही दो सिपाही वहां पहुंच गए । उन्होंने उस आदमी से पूछा लाइन में आपके पीछे कौन खड़ा था । उस पुरुष मनोज की ओर देखा । ने पलटकर सिपाही मनोज का हाथ

अरुण की आपबीती और प्रभु यीशु का चमत्कार | Bhataka Raahee Bana Sipaahee

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अपने बचपन के बीते हुए दिनों की याद में खोया हुआ अरुण सिर झुकाए सड़क के किनारे चला जा रहा था- किस नाज किस प्यार से मेरी मां ने मेरा पालन - पोषण किया । पिताजी के मरने के बाद मां ने कहां - कहां की ठोकरें न खाई । कितनी मेहनत करके उसने मुझे पढ़ाया लिखाया । अच्छे से अच्छा पहनाया और खिलाया मुझे याद है मेरी फीस के लिए पास पड़ोस के कपड़े रात भर बैठकर सिला करती थी । उसकी आंखें कितनी कमजोर हो गई थी।  मैं कैसे उसे गले में लिपट जाया करता था । मां जब मैं बड़ा हो जाऊंगा और कहीं का अफसर बन जाऊंगा तो मैं यह सब कुछ तुम्हें नहीं करने दूंगा । मां किस प्यार से मेरी ओर देखती । प्यार की हल्की - सी , थपकी मेरे गाल पर लगाती और कहती , मेरी आंखें तो उसी दिन का इंतजार कर रही है जब मैं अपने प्यारे बेटे को कहीं का बहुत बड़ा अफसर बनते देखूंगी ।  मेरे बेटे तेरे पिताजी की यही इच्छाधी कि वह तुझे बहुत अच्छी शिक्षा दें और किसी ऊंचे पद पद देखें । वह तो अपनी इच्छा को पूरी नहीं कर सके । परन्तु मैं यह चाहती हूँ कि उनके मरने के बाद उनकी इस इच्छा को पूरी कर सकूं ।  एक दिन मां की यह मनोकामना पूरी हो गई । वह पढ़ - लिखकर एक बड़ा

चूहा और दो सन्यासी की प्रेरणादायक कहानी

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एक चूहा और और कछुआ मित्रतापूर्वक रह रहे थे । चूहा कछुए का मित्र बनकर अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझ रहा था । उसने अपने मित्र को एक बार एक कहानी सुनाई दूर एक नगर में सन्यासियों का मठ था । उन सन्यासियों का गुरु चूड़कार्ण था । चूड़ाकर्ण जब भी भोजन करता तो उसे से कुछ भोजन बच जाता ।  सन्यासी होने के कारण चूड़ाकर्ण उस भोजन को भगवान के समान समझता था । इसलिए उस भोजन को फेंकने की बजाय वह उसे थैले में डालकर एक खूटी पर टांग दिया करता था । जब मुझे ( चूहे को ) सन्यासी के उस स्थान का पता चला तो चूहे ने हर रोज वहां पर जाकर उस थैले में भोजन खाना आरंभ कर दिया ।  सन्यासी को भी पता चल गया कि मैं उस थैले में से हर रोज भोजन करता हूँ । उसने मुझे भगाने के लिए एक लाठी का प्रबंध किया । मैं समझ गया कि वह सन्यासी अब मेरे पीछे पड़ गया है , किन्तु तुम यह तो जानते ही हो हमलोगों की जीभ सबसे अधिक निर्लज्ज है । हम खाने के मामले में अपनी जान पर खेलते आये हैं ।  उन्हीं दिनों उस सन्यासी का एक मित्र उससे मिलने आया । उन दोनों ने रात को बड़े आनन्द से भोजन किया । जो भोजन बच गया उसे थैले में डालकर ऊपर लटका दिया । फिर दोनों मित्

बूढ़ा नौकर कैसे बुद्धि के बल से सपरिवार का चहेता बना | चतुर नौकर

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पुराने समय की बात है संतोषगढ़ नामक राज्य था । उस राज्य के राजा का नाम नेकचन्द था । वह रोज अपने यहां बाजार लगवाता था । शाम को बाजार उठते समय वह जाकर दुकानदारों का सारा बचा हुआ सामान खरीद लेता ।  एक शाम राजा ने बाजार में एक बूढ़े आदमी को देखा । उन्होंने उससे पूछा- बूढ़े बाबा , यहां क्या बेचने आये हो और क्यों बैठे हो । तो बूढ़ा निराश होकर बोला- ' इसका मतलब यह कि आप मुझे नहीं खरीदेंगे । ' राजा बोला- हां , मैं भी तुम्हें नहीं खरीदूंगा , पर तुम चाहोगे तो मेरे यहां नौकरी कर सकते हो ।  बूढ़े ने राजा के पैर पकड़ लिए । राजा उसे अपने साथ महल में ले गया और अच्छा भोजन कराया । राजा ने उसकी वृद्धवस्था पर दयापूर्वक विचार करते हुए कहा ‘ अच्छा तुम नन्हें राजकुमार को बग्घी में बैठाकर टहलाया करो । उसकी देखभाल करना ही तुम्हार काम है । ' बूढ़े ने हांमी भर दी । राजकुमार मात्र दो - तीन वर्ष का था । रानी सुबह राजकुमार को खिलाने के लिए अच्छा - अच्छा भोजन भी बूढ़ कर देती थी ।  एक दिन बगीचे में बग्घी रोककर बग्धीवान पेड़ के पास सुस्ताने लगा । उधर , बूढ़ा फूलों की बगिया में नन्हें राजकुमार को नाश्ता करा

गरीबदास और महन्त धरमदास की एक कहानी | गुरु गुड़ , चेला चीनी

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दक्षिण के एक शहर में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर है । महन्त थे उस समय बाबा धरमदास जी । एक दिन एक अहीर का लड़का उनके पास आया और उनका चेला हो गया । वह माता - पिताहीन था । उसकी उम्र बारह साल की थी । वह अपने गांव में अपने काका के पास रहता था । मगर उस कौवे काका ने ऐसी कैं - कैं लगाई कि लड़के को भागना पड़ा ।  लेकिन यदि काका की कैं - कैं न होती तो न तो वह वहां से भागता और न विशाखापत्तनम के मंदिर का महंत ही बन सकता । शहर के समस्त रईस , समस्त अलंकार और समस्त भक्त नर - नारी उस मंदिर में आया करते थे और मूर्ति के साथ ही रात को भी प्रणाम करते थे ।  इसलिए यह सिद्धान्त माना गया है कि लिक की अकृपा में भी कृपा छिपी रहती है । शेष के भीतर भी रा रहता है । अस्तु , उस लड़के को नाम मिला गरीबदास । गरीबदास को दिन भर मंदिर को पांच गायें वन में चरानी पड़ती थी । दोपहर और शाम को बनी बनाई रोटी खाई और पड़कर सो रहे । यही गरीबदास की दिनचर्या थी । लिखना पढ़ना कुछ नहीं , पूजा - पाठ कुछ नहीं । दूध पानी और गायें चराना ।  एक दिन आयी एकादशी । महन्तजी ने गरीबदास से कहा- आज दोपहर को यहां मत आना । मेरा व्रत है , इसलिए भोजन शाम

सम्राट का किस्सा-कहानी | महाकाल का चक्र

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सम्राट विक्रमादित्य अन्य राजाओं की तरह विलासी नहीं थे । वे हर समय इसी चिन्ता में रहा करते थे कि प्रजा को किस - किस बात की तकलीफ है और वह किस प्रकार से दूर की जा सकती है । जिस शासक को प्रजा की चिन्ता नहीं अपनी ही चींता रहती है , वह प्रजा का रक्षक नहीं भक्षक होता है हम पहुंच एक दिन प्रातः चार बजे महाराज अपने महल से बाहर निकले ।  इस समय राजा किसान की वेशभूषा में थे । इसी वेश में .. किसी  तरह को चल दिए । चलते - चलते राजा विक्रमादित्य के पास गये । उन्होंने देखा कि एक तरफ से एक रीक्ष आया और उनके सामने वाली राह पर होकर आगे चलने लगा । उस रीछ ने महाराज को नहीं देखा था , परन्तु राजा ने देख लिया था ।  थोड़ी दूर चलकर वह रीछ जमीन पर लोटपोट हो गया और आला वाला सोलहा साल नवयुवती बनकर एक कुंए पर जा बैठी । सम्राट भी छिपकर यह निराला खेल देखने लगे । तब तक कुएं पर दो सिपाही आये । दोनों सगे भाई थे । छुट्टी लेकर घर जा रहे थे । उन्होंने मुस्कुराकर बड़े भाई से कहा- तुम्हारे पास कुछ खाने युवती को है ? बड़ा सिपाही बोला- जी नहीं । - युवती ने कटाक्ष मारकर कहा- मुझे भूख नहीं है ।  बड़ा सिपाही उस युवती पर मोहित हो ग