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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

तुलसी माता की कथा | story of tulsi mata

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  नमस्कार दोस्तों, कहानी की इस श्रंखला में हम आपको तुलसी माता की कहानी बताने जा रहे हैं।  इस कहानी में आपको बुजुर्ग महिला और तुलसी माता जी के बारे में विस्तार से जानने को मिलेगा।  कृपया इस कहानी को अंत तक पढ़ें। तुलसी माता की क्या कहानी है?   एक बार की बात है एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी।  वह बहुत पूजा करती थी।  वह प्रतिदिन तुलसी माँ की पूजा करती थी और वह बुढ़िया प्रतिदिन तुलसी माँ से कहती थी, “हे तुलसी माँ, आप मुझे सीधी-साधी बहू दे दो। उसे मीठी मीठी बातें दें।  स्वर्ग में वास दो।  कोई त्वरित तरकीब बताएं।  पातक की मौत दे दो।  चंदन दें।  मुझे रानी के समान शासन दो।  दाल चावल का भोजन दें।  ग्यारस की मृत्यु दो और कृष्ण जी जैसा कंधा देने वाला नाती दो। तुलसी विवाह के पीछे की कहानी क्या है?   वह बुजुर्ग महिला कार्तिक मास में नित्य तुलसी माता की पूजा करती थी और नित्य उनके बिड़ला को सींचती थी।  बुजुर्ग महिला की बात सुनकर तुलसी माता धीरे-धीरे सूखने लगी।  तभी भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि तुलसी माता सूख रही है और फिर एक दिन भगवान श्री कृष्ण तुलसी माता जी के पास प्रकट हुए और भगवान श्री कृष्ण जी ने