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मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

राजकुमार ने ली राज - काज शिक्षा | Shandilya and the giant temple in the forest

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  आज से लगभग तेईस सौ साल पहले की बात है । आर्यव्रत में एक राज्य था कंचन प्रदेश । काफी सुखी - सम्पन्न लोग थे वहाँ । इसकी मुख्य वजह यह थी कि वहाँ के राजा किंशुक बहुत अच्छी तरह राज - काज चलाते थे । राजा किंशुक न्यायप्रिय और प्रजा के हितैषी थे ।  उनका एक पुत्र था , राजकुमार अंशुमन । राजकुमार अंशुमन जब गुरुकुल की शिक्षा प्राप्त कर चुका , तो राजा किंशुक ने उसे राज - काज संभालने के लिए शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से महान गुरु शांडिल्य के पास भेज दिया । शांडिल्य जंगलों में बने एक विशालकाय मंदिर में रहते थे । दो साल तक राज - काज की शिक्षा देने के बाद , एक दिन गुरु शांडिल्य ने राजकुमार को बुलाया । कहा- " पुत्र , अब तुम्हारी यहाँ की शिक्षा पूर्ण हुई । लेकिन राज्य का कार्यभार संभालने के लिए , तुम्हें एक अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी । "  ऐसा कहकर गुरु ने राजकुमार को घने जंगलों में अकेले एक वर्ष रहने के लिए भेज दिया एक वर्ष के बाद जब राजकुमार वापस गुरु के पास पहुँचा , तब गुरु ने उससे पूछा- " तुमने जंगल में क्या सुना और समझा ? " राजकुमार ने कहा- “ मैंने चिड़िया के गाने की आवाज स

सोमधर की कमाई मंदिर के खजाने में | Mystery of Rudra Devta Temple

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 बहुत दिन हुए , विपुला राज्य में व्यापारी सोमधर रहता था । वह बड़ा कंजूस और चालाक था । राज्य के कर्मचारियों से सांठ - गांठ कर , उसने बहुत धन कमाया था । एक बार पड़ोसी राजा ने विपुल पर आक्रमण कर दिया । अब सोमधर की पांचों अंगुलियां घी में थीं ।  सेना की रसद में गोलमाल करके उसने धन बटोरना शुरू कर दिया । जैसे - जैसे उसकी तिजोरियां भरती गई , वैसे - वैसे उसे एक चिंता सताने लगा - ' यदि विपुला का राजा हार गया , तो शत्रु के सैनिक उसकी सारी सम्पत्ति लूट लेंगे । '  बहुत सोच - विचार के बाद उसने अपने धन को सुरक्षित रखने के लिए एक उपाय सोचा । नगर के बाहर रुद्र देवता का एक टूटा - फूटा मंदिर था । कोई भी वहां पूजा करने नहीं जाता था । सोमधर एक रात अपनी सारी सम्पत्ति लेकर गया । मंदिर के पीछे उसने एक गड्ढा खोदा । अपनी सम्पत्ति उसमें दबाकर चुपके से वापस आ गया ।  अब वह निश्चित था । जब भी उसके पास कुछ धन इकट्ठा होता , उसी गड्ढे में दबा आता । वह सोचता - ' अब चाहे राजा हारे या जीते , मेरा धन सुरक्षित रहेगा । जब जरूरत होगी , तब खोदकर निकाल लूंगा । ' संयोग की बात । युद्ध में विपुला का राजा जीत गया

तिमि मछली और कौशिकी का किस्सा | Story of Kaushiki Aunty and Timi Fish

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 तिमि मछली  माँ , क्या हम सचमुच तिमि मछली देखने जायेंगे ? जायेंगे तो । सचमुच , मौसी ने टिकट मंगा ली है । छोटी - सी कौशिकी की उत्तेजना देखते ही समझ में आती थी । इस जीवन में तिमि माछ देख पायेंगे , इसे क्या वह जानती थी । अमरीका पहुँचकर मानो कौशिकी स्वप्न - लोक पहुँच गई । बोस्टन के विज्ञान संग्रहालय से बाहर निकलने का रत्ती भर भी मन नहीं था ।  मौसी के पास वह घूमने आई है । मौसी यहाँ कालेज में पढ़ाती हैं । मोटरगाड़ी खुद चलाकर नियाग्रा प्रपात घुमाने ले गई थीं । कौशिकी ने यह भी नहीं सोचा था कि वह कभी भी नियाग्रा प्रपाल या न्यूयार्क की एम्पायर स्टेट बिल्डिंग देख पाएगी । जिस दिन तिमि मछली देखने जाना था , उस दिन मौसी ने सुबह ही कहा- " चलो , चलो ! जल्दी से तैयार हो जाओ । आधे घंटे में न निकले , तो पानी का जहाज मिलना मुश्किल होगा । " -  जहाज में बैठकर तिमि मछली देखने जायेंगे , मौसी ? " - " हाँ रे , जहाज से ही अच्छी दिखाई पड़ती हैं । नहीं तो पीटर और जान की तरह भुगतना पड़ता है । कायाक ( सील की खाल वाली नाव ) में बैठकर जो तिमि मछली की फोटो लेने गया था , अलास्का में । " " छो

उत्तरी हवा और बच्चा डायमंड की कहानी | miraculous north wind and baby diamond

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एक था डायमंड । वह अपने माता - पिता के साथ अस्तबल के ऊपर बने छोटे - से घर में रहता था । एक रात डायमंड गहरी नींद में सोया हुआ था । अचानक तेज , शीतल हवा के झोंके से उसकी नींद खुल गई । उसने सुना , कोई उसका नाम लेकर पुकार रहा है- "  डायमंड ! डायमंड ! उठो ! " “ कौन ? " - डायमंड ने आंखें मलते हुए पूछा । – “ मैं हूँ उत्तरी हवा । ” “ उत्तरी हवा ! " - डायमंड ने आश्चर्य से पूछा । - " हाँ , क्या तुम मेरे साथ घूमने चलोगे ? ” " जरूर ! पर मेरे गरम कपड़े तो माँ के कमरे में हैं । " “ उनकी जरूरत नहीं । तुम्हें ठंड नहीं लगेगी । मैं सारा इंतजाम कर दूँगी । " -  आवाज आई । " तो ठीक है , उत्तरी हवा ! तुम बहुत भली हो । ” " तो फिर चलो मेरे साथ । " उत्तरी हवा ने कहा । डायमंड बिस्तर के बाहर निकल आया और उत्तरी हवा के साथ चल पड़ा -एक अनजान यात्रा पर उत्तरी हवा की पीठ पर सवार डायमंड उड़ने लगा । तभी अपने पिता के मालिक कोलमैन का घर नजर आया । उत्तरी हवा की पीठ से उतरकर वह उस तरफ बढ़ा । डायमंड ने खिड़की से देखा । घर के सब लोग गहरी नींद में हैं । तभी कोई आवाज सुनकर उ

अनपढ़ घर जमाई की कहानी | story of illiterate son-in-law

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डाकिया आया है । डाकिया आया है । " बच्चे चिल्लाते हुए साइकिल के पीछे भाग रहे थे । पीले रंग के घर के सामने डाकिया रुक गया । बंद दरवाजे के नीचे वह एक छोटा - सा सफेद लिफाफा डाल गया । चिट्ठी आई थी । लेकिन उस घर में किसी को भी पढ़ना - लिखना नहीं आता था ।  अनपढ़ घर जमाई की कहानी,अनपढ़ पति की कहानी घर के सदस्यों ने वह चिट्ठी घर जमाई को दी । परन्तु कोई यह नहीं जानता था कि जमाई बाबू भी अनपढ़ थे । सब यही सोचते थे कि जमाई बाबू बहुत पढ़े - लिखे व्यक्ति हैं । चिट्ठी हाथ में पकड़े जमाई बाबू बहुत देर तक उसी को देखते रहे । न जाने उन्होंने क्या सोचा , उनकी आँखों से झर - झर आँसू बहने लगे । सभी डर गए कि कोई बुरी खबर ही होगी ।  उनके ससुर जी बोले- “ दामाद जी , खबर चाहे कुछ भी हो , सीने को पत्थर बना कर कह डालिए । " लेकिन यह कहकर वह खुद रो पड़े । उनका रोना था कि घर की सभी महिलाएँ रोने लगीं । इतना शोर सुनकर पड़ोसी आ गए । बेचारे वे भी अनपढ़ थे । सबको रोते देख , वे भी रोने लगे ।  सबने तो जैसे आसमान ही सिर पर उठा लिया था । घरजमाई को बहुत शर्म महसूस होने लगी । प्रार्थना की- " हे भगवान ! इस चिट्ठी में

भारतीय राजाओं की कहानी | King's Recipe book

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  सुनामपुर के राजा श्यामभद्र ने सबसे बड़े राजकुमार वीरभद्र का तिलक कर राजगद्दी पर बैठा दिया । वीरभद्र राजा बन गए । राजा बनते ही जहाँ बधाई देने वालों का तांता लग गया , वहीं दूसरी तरफ तरह - तरह की सलाह देने वाले भी आने लगे । इन्हीं सलाह देने वालों में हकीम देवराज भी थे ।  उन्होंने नए राजा साहब को स्वास्थ्य के बारे में ऊँच - नीच समझाई । फिर एक पुस्तक भेंट की , जिसमें राजसी खान - पान के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन था । उन्होंने हिदायत दी कि राजा साहब इसी पुस्तक के अनुसार खान - पान करें । हकीम जी के जाने के बाद राजा वीरभद्र को उत्सुकता हुई कि आखिर पुस्तक में ऐसा क्या लिखा है ? उन्होंने पुस्तक पढ़ना आरम्भ की । शुरुआत में ही पुस्तक में एक हिदायत मिली - ' राजा को खरबूजा खाने के बाद दूध नहीं पीना चाहिए । ' '  आखिर खरबूजा खाकर दूध पीने से क्या होगा ? ' - राजा के मन में तरह - तरह के विचार उठने लगे । राजा इन विचारों में खोए थे । तभी दरवाजे से एक चरवाहा गुजरा । वह भेड़ों को हांकते हुए ले जा रहा था । उसे देख , राजा को लगा - ' क्यों न पुस्तक में लिखी हिदायत को परखा जाए । ' 

एक चित्रकार और बिल्ली की अनसुनी कहानी | the story of the painter and the cat

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  जापान के किसी कस्बे में एक गरीब चित्रकार रहता था । एक दिन उसकी पत्नी खाने - पीने का सामान लेने बाजार गई । जैसे ही उसने पत्नी को आते देखा , वह खुशी से झूम उठा । उसके हाथ में टोकरी थी । " इस टोकरी में क्या है ? उसने पूछ लिया । बीबी ने बताया - " हे रंजू के पापा ! पिछले काफी दिनों से हम घर में अकेलापन महसूस कर रहे थे , इसलिए { " - " अकेलापन तो आने - जाने वाले अतिथियों से दूर होता है ।  सोचो , क्या है हमारे पास ? हम उन्हें खिलाएँगे क्या ? बीबी चुप सी रह गयी । वह सोच में डूबा रहा कही  चाल का केक होता । और मैं मित्रों के साथ बैठा गर्म - गर्म चाय की चुस्कियाँ ले रहा होता । पर कोई एक छोटी - सी तस्वीर भी मुझसे नहीं खरीदता । ' · पत्नी बोली- “ सुनो , मैं रात में चूहों के डर से सो नहीं पाती , इसलिए .... " चित्रकार ने हंसते हुए कहा- " चूहे हमारे जैसे लोगो के घर में रहकर  क्या करेंगे ? क्या तुम खाने के लिए कुछ भी नहीं लाई हो ? " - हाँ , मैं कुछ नहीं लाई । " - " क्या तुम बिल्ली लाई हो ? " चित्रकार चीखते हुए बोला- " यहाँ भूख से जान निकल रही ह

गरीब की किस्मत हिंदी कहानी | Lazy father.

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हांस नामक आलसी बना जमींदार का दामाद |

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एक कहानी दादी सुनाती थी । कहानी है एक माँ की । अनेक वर्ष बीत गए इस बात को । उस माँ का एक ही बेटा था । वह भी बहुत आलसी । माँ उसको हांस कहकर बुलाती । वह चौदह वर्ष का हो गया था , परन्तु काम से जी चुराता । पढ़ा - लिखा न था । घर में पड़ा रहता । एक दिन उसकी माँ ने कहा " हांस , जाओ , मेरे लिए नदी से पानी भरकर लाओ । " " मेरी तबीयत ठीक नहीं है । " -  लड़के ने बहाना बनाया । माँ उसके इस आलसीपन से बहुत तंग आ चुकी थी । उसने तुरन्त एक छड़ी उठाई । उसे धमकाते हुए कहा - " यदि आज तुमने मेरा कहना न माना , तो मैं तुम्हें कड़ी सजा दूँगी । " माँ के गुस्से से हांस घबरा गया । धीरे से उसने मटका उठाया और नदी से पानी भरने चल पड़ा । उसे काम की आदत तो थी नहीं । वह रास्ते में एक जगह बैठ गया । थोड़ा आराम करने के बाद वह आगे बढ़ा , फिर बैठ गया । इस तरह रुकता - रुकता वह नदी तट पर पहुँच गया ।  नदी में मटका छोड़ , काफी देर बाद मटका नदी से बाहर निकाला । मटके में एक सुनही मछली देख , वह चकित रह गया । ' माँ खुश होगी । सोचेगी , बेटा उसके लिए ऐसी सुंदर मछली पकड़ कर लाया है । ' - हांस ने मन

वानर हुआ एक सुन्दर नारी | उत्तरकांड की कथा

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 उत्तर रामायण महर्षि अगस्त्य ने श्रीरामचंद्र के प्रश्न करने पर उन्हें बाली एवं सुग्रीव की कहानी सुनायी : मेरु पर्वत का मध्य शिखर अत्यन्त पवित्र माना जाता है । न केवल पृथ्वी पर , बल्कि स्वर्ग के देवता भी उसे अत्यन्त पवित्र मानते हैं । उस शिखर पर विशाल ब्रह्म सभा है । एक बार ब्रह्मा योगाभ्यास में रत थे ।  उस समय उनकी आँख में जो जल भर आया , उसके झरे हुए कणों में से एक वानर का जन्म हुआ । ब्रह्मा ने उस वानर को कुछ समय तक अपने पास रहने तथा मेरुपर्वत पर प्राप्त कन्दमूल - फलों पर निर्भर रहने का आदेश दिया । वानर मेरु शिखर पर रहने लगा । उसे भी प्रजापति ब्रह्मा अपने पिता समान लगते ।  वह उनकी आज्ञा मानता और विनम्र बना रहता । फिर भी , था तो वह वानर ही । वह दिन भर वृक्षों पर कूदता - फिरता और शाम होते ही सुन्दर फूल और फल लेकर ब्रह्मा के पास पहुँच जाता । इसी प्रकार बहुत काल बीत गया । एक दिन उस वानर को बहुत प्यास लगी । जल के लिए वह मेरु पर्वत के उत्तरी - शिखर पर पहुँचा । वहाँ उसे अनेक पक्षियों से भरा एक सरोवर दिखाई दिया । वानर ने अपने बदन को झटकारा और सरोवर के पास बैठकर प्यास बुझाने के लिए पानी के अन्द

सीता ने लिया चतुर्भुज काली रूप क्षणों में रावण के एक हज़ार सिर काट डाले | Sita Ravan fight

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  लंका में राम - रावण संग्राम के बाद जब रावण की मृत्यु हो गई तब उत्तर दिशा से वशिष्ठ , दक्षिण से आत्रेय , पूर्व से विश्वामित्र और पश्चिम से उषंग आदि अनेक ऋषि राम का अभिनन्दन करने आये । ऋषियों ने राम से कहा- " आपने कृपा करके राक्षसों का सपरिवार संहार कर जगत की रक्षा की । सीता देवी को महान दुख मिला है । यही सोचकर हमारा हृदय उद्वेलित है । " -  सीता हंस पड़ीं और बोलीं- " हे मुनियो , आपने रावण वध के प्रति जो कहा वह प्रशंसा परिहास जैसी लगती है । निस्संदेह , यद्यपि रावण दुराचारी था किन्तु उसका वध प्रशंसा के योग्य नहीं है । " इसके बाद सीताजी ने हज़ार सिर वाले एक अन्य रावण का वृत्तान्त सुनाया । अपने शौर्य को प्रामाणित करने के लिये राम अपने मित्रों सहित पुष्पक विमान में बैठकर उसे जीतने चले ।  दल - बल सहित राम को आया देखकर सहस्त्रमुख रावण को बड़ा विस्मय हुआ । उसने सोचा इन छुद्र जीवों को मारने से मुझे क्या प्राप्त होगा । यह जिस देश से आये हैं वहीं भेज देता हूँ । केवल राम और सीता पुष्पक विमान में युद्ध क्षेत्र में रहे , शेष सभी सहस्रमुख द्वारा वापस भेज दिये गये । बहुत दिनों तक य

रामायण में ताड़का वध | Tadka slaughter in Ramayana

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संध्या होने में अभी देर थी , किन्तु वन के इस घने भाग में अंधेरे का साम्राज्य स्थापित होने लगा था । मुनि विश्वामित्र ने मन में सोचा ' मात्र दो - ढाई घड़ी बाद सम्पूर्ण वन प्रांतर घुप्प अंधकार के बीच डूब जाएगा और आरंभ हो जाएगी मायावी राक्षसों की विनाश लीला । ' इतना सोच लेने के बाद भी मुनि के सौम्य और गंभीर मुखाकृति पर छाया विश्वास अटल रहा ।  जब यज्ञ की रक्षा के लिए राम - लक्ष्मण साथ आ रहे हैं तो निश्चय ही अशुभ की आवृत्ति नहीं हो पाएगी । इधर के वन्य - क्षेत्र की अशांति के मूल में रावण की महत्वाकांक्षा थी । दक्षिणापथ को अपने प्रभाव में लेने के बाद राक्षस राज रावण की दृष्टि उत्तराखंड पर जम गई थी । उसका मानना था- " यदि किसी क्षेत्र की धार्मिक संस्थाएँ , विद्या - केन्द्र और संस्कृति को नष्ट - भ्रष्ट कर दिया जाए , तो वहाँ के निवासी संस्कार हीन होकर पंगु हो जाते हैं । इनकी स्वतंत्रता की चेतना और संघर्ष की इच्छा शक्ति मर जाती है , और इनको रंच मात्र प्रयास से अपने अधीन किया जा सकता है । " यह कार्य सम्पन्न करने के लिए रावण ने ताड़का राक्षसी को चुना था । ताड़का मारीच और सुबाहु नामक

श्रीराम की अंगूठी कहानी | Shriram's ring

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  जब रामलीला समाप्त हो गयी तो अन्य दर्शकों के साथ आठ वर्ष की आयु का नन्हा पिंटू भी अपने स्थान से उठा । घर की ओर प्रस्थान करने से पूर्व उसने नित्य की भाँति मंच के निकट जाकर पर्दे में से अन्दर की ओर झांका तथा यह देखने की कोशिश की कि अन्दर क्या हो रहा है । रोजाना की तरह आज भी उसे वहाँ कुछ लोग बतियाते नजर आये । इससे अधिक वहाँ कुछ नहीं था । वह चुपचाप लौटने लगा । अचानक ही उसे मंच के नीचे एक ओर कुछ चमकती सी वस्तु नजर आई । निकट जाकर उसने उत्सुकता से उस वस्तु को उठा लिया । वह एक सोने की अंगूठी थी ।  पिंटू को याद आया कि कुछ ही देर पहले मंच से रामलीला के आयोजकों ने सूचना दी थी कि भगवान राम की सोने की अंगूठी उनकी अंगुली में से निकलकर कहीं गिर गयी है । किसी को मिले तो अवश्य लौटाने की कृपा करें । पिंटू ने सोचा कि हो न हो यह वही अंगूठी है और इसलिए उसे लौटा देनी चाहिए ।  उसके पैर उठे भी , किन्तु अगले ही क्षण उसने अपने को रोक लिया । अंगूठी उसे अच्छी लग रही थी । यद्यपि वह अंगूठी उसकी अंगुली के लिए काफी ढीली थी , फिर भी वह उसे अपने पास तो रख ही सकता था । पिंटू ने यह सोचकर भी अपने मन को दिलासा दिया कि अंग

राम ने किया हनुमान की खूब बड़ाई | learn from hanuman ji

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एक दिन हनुमान की प्रशंसा करते हुए श्रीराम ने सीताजी से कहा , " देवी , लंका - विजय में यदि हनुमान का सहयोग न प्राप्त हुआ होता तो आज भी मैं सीता - वियोगी ही बना रहता । "आर्यपुत्री  सीता माता  ने पूछा , " आप हर - बार हनुमान जी की बड़ाई करते नहीं थकते हैं । कबो उनके बलो - शौर्य की , कभी तो उनके ज्ञान विद्या की , कबो उनके चातुर्य की ।  अतः आज आप एक ऐसा प्रसंग सुनाइवे , जिसमें उनका चातुर्य लंका - विजय में विशेष सहायक रहा हो । ” “ ठीक याद दिलाया तुमने । " श्रीराम बोले , " वैसे तो वुद्ध से रावण थक चुके थे । अनेक योद्धा हनुमान द्वारा मारे जा चुके थे । अब युद्ध में विजय प्राप्त करने का उसने अंतिम उपाय सोचा । देवी को प्रसन्न करने के लिए सम्पुटित मंत्र द्वारा चंडी महायज्ञ । यज्ञ प्रारंभ हो गया । चतुरशिरोमणि हनुमान बेचैन हो उठे ।  यदि यह यज्ञ पूर्ण हो जाता तो देवी द्वारा प्रदत्त बल पर रावण की विजय निश्चित थी । बस , तुरन्त हनुमान ने ब्राह्मण का रूप धारण करके रावण के यज्ञ में सम्मिलित ब्राह्मणों का काम करना प्रारम्भ कर दिया । ऐसी निस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने कहा , "

सुंदर सुंदर परियों की कहानियां और खूनी राक्षस

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 परियों के इस छोटे से देश में चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ नाच रही थीं । इस देश में न तो कोई दुःखी था और न ही कोई उदास । सब ओर परियाँ ही परियाँ थीं । नारी देश में किसी भी पुरुष को आने की अनुमति तो नहीं थी ।  हाँ कभी - कभी देवराज इन्द्र इस देश में आते थे क्योंकि देवराज इन्द्र परियों के राजा थे । इसलिए उन्हें यहाँ पर आने में किसी से आज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं थी । देवराज जब भी आते थे उस रात में नृत्य की पूरा रंग जमता था ।  पूरी - पूरी रात नृत्य एवं गाने चलते थे । हर अप्सरा अपनी कला और रूप का प्रदर्शन करके देवराज को प्रसन्न करने का पूरा प्रयास करती थीं । इस बात को तो सब परियाँ भली - भाँति जानती थीं कि यदि देवराज प्रसन्न होते हैं तो पूरा विश्व ही प्रसन्न हो जाता है ।  यदि देवराज क्रोध में होंगे तो सबसे पहले तो वर्षा नहीं होगी , वर्षा नहीं होगी तो अन्न नहीं होगा , अन्न , फल - फूल सब्ज़ियाँ , दाल , चारा यही तो जीवन को चलाने वाले हैं । इनके बिना जीवन ही कहाँ है । जीवन नहीं तो संसार नहीं , संसार नहीं तो प्रभु नहीं । यदि यह संसार नहीं होगा तो प्रभु का नाम कौन लेगा ? यह बात परियाँ भली - भाँति जा