संदेश

जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Featured post

उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

चित्र
  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

बंदर राक्षस गोपाल की कहानी | बंदर के कारनामे

चित्र
उसका नाम था गोपाल । उसके पिता मामूली नौकरी करते थे । घर में माँ के अतिरिक्त दो छोटे भाई - बहन और थे । गोपाल एक पाठशाला में पढ़ता था । समय मिलता तो घर में माँ का हाथ बंटाता । गोपाल की उम्र थी कोई दस वर्ष । वह हंसमुख था । गली - मुहल्ले वाले कहते - ' बच्चा हो तो ऐसा , सदा मुसकराता रहता है । ' उसे देखकर दूसरों की उदासी भी भाग जाती थी ।  एक दिन गोपाल को उसकी माँ ने कहीं काम से भेजा । गोपाल चला जा रहा था , तभी उसकी नजर एक बंदर पर पड़ी । बंदर के गले में एक रस्सी बंधी थी । रस्सी का दूसरा सिरा एक खंभे से बंधा हुआ था । गोपाल के कदम रुक गए । उसे लगा कि बंदर को इस तरह बांधकर रखना गलत है । उसने इधर - उधर देखा , फिर आगे जाकर खंभे से बंधी रस्सी खोल दी । फिर उसके गले में बंधा सिरा भी निकाल दिया ।  बंदर मुक्त होते ही पेड़ पर चढ़ गया । इतने में ही बंदर वाला वहाँ आ गया । उसने बंदर को न देखा , तो चिल्लाने लगा- " मेरा बंदर कहाँ गया ? तभी उसी पेड़ पर बैठा बंदर खों खों चीखने लगा   जैसे लग रहा था उसे देखकर चिढ़ रहा हो । फिर वह आदमी उस बंदर को पकड़ने के लिए उसी पेड़ पर चढ़ने लगता है । तब तक बंदर एक

सोनप्यारी शेखू और लेखू की कहानी | पेड़ मत काटो

चित्र
  सोनप्यारी के दो बेटे थे , शेखू और लेखू । दोनों अभी बहुत छोटे थे । सोनप्यारी मेहनत कर बेटों का पेट पाल रही थी । एक बार सोनप्यारी बहुत बीमार हो गई । उसका काम पर जाना बंद हो गया । दवाइयों की बात तो दूर रही , भूखों मरने की नौबत आ गई । शेखू और लेखू पर जिम्मेदारी आ गई । शेखू को भूख से अधिक माँ की चिंता थी ।  वह चाहता था कि उसे कहीं से कुछ रुपए उधार मिल जायें तो वह माँ का इलाज करवा ले । पर उसे किसी ने एक फूटी कौड़ी भी उधार नहीं दी । वह बहुत परेशान था कि आखिर क्या करे ? शेखू से माँ की हालत देखी नहीं जा रही थी । उधर लेखू का भूख के मारे बुरा हाल था । माँ का शरीर तवे की तरह तप रहा था । तेज बुखार में वह ऊल - जलूल बड़बड़ा रही थी ।  वह दौड़कर पड़ोसी रम्मत चाचा के घर गया । वहाँ जाकर दुःखी मन से उसने कहा- " चाचा , घर चलकर देखो , माँ की हालत ठीक नहीं है । " रम्मंत चाचा तुरन्त दौड़कर शेखू के घर आए । बोले- " बेटे , तेज बुखार है । ठण्डे पानी की पट्टियाँ सिर पर रखो । फिर किसी डाक्टर को दिखाओ । " दोनों भाइयों ने मिलकर ठण्डे पानी की पट्टियाँ चढ़ाई । बुखार तनिक हल्का हुआ तो माँ को होश आ

कुमार के प्रहार से तारक हुआ धराशायी | सिर पर गदा

चित्र
प्राचीन समय में वज्रांग नाम का एक महाबली दैत्य था । दैत्य होते हुए भी वह शांतिप्रिय था । एक दिन वह अपनी पत्नी वरांगी के साथ तप करने वन में चला गया । वज्रांग जब तपस्या में लीन था , तो देवराज इंद्र ने वरांगी को अनेक यातनाएँ दीं । वज्रांग की समाधि टूटी , तो वरांगी ने पति को इंद्र की यातनाओं के बारे में बताया ।  वह प्रार्थना करने लगी- " नाथ , आप इंद्र से मेरे अपमान का बदला लीजिए । " वज्रांग बोला- " प्रिये , धैर्य रखो । समय पर सब ठीक हो जाएगा । " समय बीता । एक दिन वरांगी ने पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम तारक रखा गया । वज्रांग ने पुत्र को अस्त्र - शस्त्र चलाने की विद्या सिखाई । तारक शक्तिशाली बन गया ।  सभी दैत्य उसकी शक्ति का लोहा मानने लगे । दैत्यों ने उसे अपना राजा बना लिया । एक दिन वरांगी ने तारक से कहा- " पुत्र , अब समय आ गया है कि तुम अपनी माँ का अपमान करने वाले से बदला लूंगा माता आपको अपमानित किसने किया हम  उस दुराचारी आततायी का सिर काटकर आपके चरणों में डाल दूँगा । गुस्से से तारक बोला ।" बेटा , तुम्हारा शत्रु देवराज इंद्र है । उस पर विजय पाने के लिए तुम्हे

सूरज और पानी एक कहानी | Sooraj Ka Naya Ghar

चित्र
 घटना हजारों साल पुरानी है । उन दिनों सूरज और पानी एक साथ रहते थे । वे पक्के दोस्त थे । रोज मिलना होता । उठना - बैठना होता । हमेशा सूरज ही पानी के घर जाता । एक दिन सूरज पानी से कह उठा- " बुरा न मानो , तो एक बात पूछू ? " पानी बोला- “ बेखटक पूछो । मैं तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता ।  सूरज ने पूछा- " प्यारे भाई ! तुम कभी भी मेरे घर क्यों नहीं आते  पानी ने जवाब दिया- " मेरा परिवार बहुत बड़ा है । इतना बड़ा कि अगर हम सब लोग तुम्हारे यहाँ आ गए , तो तुम्हें अपना घर छोड़ना पड़ जायेगा । " सूरज बोला- " तुम इसकी चिंता मत करो । मैं एक बहुत बड़ा - सा घर बनवा लूँगा । " पानी ने जवाब दिया- “ इतना कष्ट करने की क्या जरूरत है ? तुम मेरे घर आए या में तुम्हारे घर गया , इसमें क्या फर्क पड़ता है बोला- " में बहुत दिनों से नया घर बनवाने की सोच रहा था । पर किसी न किसी वजह से यह काम अब तक टलता ही रहा । अब में फौरन नया घर बनवाना शुरू करूँगा । " पानी ने कहा- प्यारे दोस्त ! मेरा एक सुझाव सुन लो । जब अपना नया घर बनवाओ , तब उसका अहाता बहुत बड़ा रखना । " सूरज ब

राजा विचित्रसेन की कहानी | Munh Maanga Enaam

चित्र
  एक था राजा विचित्रसेन । था भी वह बहुत विचित्र । ऊटपटांग बातें सोचता और आदेश दे डालता । उसकी सनक की कोई थाह न थी । एक बार उसने ढिंढोरा पिटवाया- " जो आदमी राज्य के सबसे बड़े मूर्ख को दरबार में लाएगा , उसे मुँहमाँगा इनाम मिलेगा । " यह सुनकर लोगों में होड़ लग गई । लोगों का मूखों को लेकर दरबार में आना शुरू हो गया ।  राजा उनकी कारगुजारी सुनता  हँसता लोटपोट होता । लेकिन रटा हुआ निर्णय सुनाता- यह तो सामान्य सी मूर्खता हुई । भाग जाओ यहाँ से  लोग मन मसोस कर लौट जाते थे । एक दिन एक साधु दरबार में आया । राजा उसे देखकर हँसा बोला- क्या तुम्हीं मूर्ख हो और खुद अपनी कारगुजारी सुनाओगे नहीं महाराज  मैं तो कारगुजारी सुनाने आया हूँ ।  मूर्ख को साथ क्यों नहीं लाए  राजा बोला । साधु ने उत्तर दिया वह मूर्ख यहीं है महाराज  उसका नाम आपको एक शर्त पर बताऊँगा ।  क्या शर्त है तुम्हारी  मूर्ख की कारगुजारियाँ सुनने के बाद ही आप कोई निर्णय लेंगे  मुझे मंजूर है । बताओ कौन है वह मूर्ख और सुनाओ उसके कारनामे । साधु बोला-  वह मूर्ख कोई और नहीं  स्वयं आप हैं  मैं ! तुमने मुझे मूर्ख कहा  राजा की आँखों से चिंगारिय

एक चित्रकार की कहानी | Bada Kaun

चित्र
चित्रकार को क्यों घमंड हुआ  ग्रीस में ज्यूक नाम का एक प्रसिद्ध चित्रकार रहता था । वह फल फूलों के इतने सजीव चित्र बना दिया करता था कि देखने वाले धोखा खा जाते थे । एक बार उसने सेबों के चित्र बनाए । वे इतने ज्यादा सजीव लगते थे कि देखने वाले पहचानने में गलती कर बैठते ।  यहाँ तक कि बाहर से चिड़िया उड़कर अंदर आई और उन्हें सचमुच का सेब समझ , चोंच मारकर खाने की कोशिश करने लगी । यह देख ज्यूक खुशी से फूला न समाया । अन्य सभी लोगों ने भी उसकी खूब प्रशंसा की । कहा कि उसने एक अद्भुत चित्र बनाया है ।  अपने चित्रों की इतनी तारीफ सुनकर , धीरे - धीरे ज्यूक घमंडी होता चला गया । वह समझने लगा कि संसार में उससे ज्यादा अच्छा चित्रकार न कभी था , न है , और न होगा । उसी शहर में परस नामक एक अन्य चित्रकार भी रहता था । वह भी बहुत सुंदर व सजीव चित्र बनाता था , परन्तु उसे अपनी चित्र - कला पर कोई घमंड नहीं था ।  ज्यूक की चित्र - कला एवं उसके घमंड के विषय में भी परस ने सुन रखा था । ने ज्यूक ने स्वयं को संसार का सर्वश्रेष्ठ चित्रकार मान रखा है , यह सुनकर परस ने निश्चय किया कि वह भी एक चित्र बनाएगा । फिर ज्यूक को अपना च

पराक्रमी महाराजा रणवीर सिंह एक कहानी | Aag Ne Kaha

चित्र
जामगढ़ के राजा थे रणवीर सिंह । बहुत से योग्य और पराक्रमी । प्रजा के लिए प्राण देने को तैयार रहते थे । दुश्मन जब सामने आता तो काल बन जाते थे । उनका एक ही पुत्र था - आलोक सिंह । जामगढ़ का पड़ोसी राज्य था बानागढ़ । वहाँ का राजा महादेवसिंह था । वह समृद्ध जामगढ़ को अपने राज्य में मिला लेना चाहता था ।  उसने कई बार जामगढ़ पर आक्रमण किया , परन्तु रणवीर सिंह की वीरता के सामने उसकी एक न चली । आखिर महादेव ने निश्चय किया कि अगली बार पूरी तैयारी के साथ वह हमला करेगा । महादेव ने चुपचाप अपनी सेना को संगठित किया । युद्ध की तैयारियों से संतुष्ट होने के बाद उसने जामगढ़ पर आक्रमण कर दिया ।  रणवीर सिंह को इतनी जल्दी फिर आक्रमण होने की आशंका न थी , परन्तु वह युद्ध के लिए तैयार हो गये । मोर्चे पर जाने से पहले उन्होंने मंत्री यशराज को बुलाया । रणवीर सिंह ने देखा , मंत्री यशराज युद्ध में जाने के लिए तैयार होकर आया था । उसकी कमर पर तलवार बंधी थी ।  यह क्या मंत्री जी , क्या तुम भी लड़ाई में जा रहे हो  रणवीर सिंह ने पूछा ।  जी महाराज ! इस बार मैं भी युद्ध के मैदान में अपना कर्त्तव्य पूरा करूंगा । " - यशराज

एक से एक बढ़कर चतुर की कहानी | Aakash Se Gire

चित्र
  एक था तीरंदाज । उसका निशाना अचूक था । उसे अपनी निशानेबाजी पर बड़ा अभिमान था । यह साबित करने के लिए कि कितना बड़ा तीरंदाज है , हर रोज वह अपनी पत्नी की नथ में से निशाना लगाकर तीर छोड़ता था ।  परन्तु उसकी पत्नी को अब तक जरा - सी खरोंच भी नहीं आई थी । एक दिन तीरंदाज का साला अपनी बहन से मिलने आया तो देखा , उसकी बहन का चेहरा सफेद पड़ गया है । वह सूखकर कांटा हो गई है । उसने घबराकर अपनी बहन से इसका कारण पूछा । उसकी बहन बोली- " वैसे तो मुझे यहाँ कोई दुःख नहीं है , परन्तु तुम्हारे जीजाजी अपना स्किल दिखाने के लिए रोज मेरी नथ में से अपना तीर छोड़ते हैं ।  रोज मुझे यही डर सताता रहता है कि अगर निशाना जरा भी चूका , तो तीर सीधे मेरी आँख या मुँह में लग जाएगा । " भाई ने पूछा- " क्या जीजाजी तीर छोड़ने के बाद और भी कुछ कहते हैं ? " उसकी बहन ने कहा- " हाँ , आनंद और गर्व से मेरे पास आकर कहते हैं- ' मुझसे बढ़कर होशियार भी कोई और देखा है तुमने ? ' मैं कह देती हूँ - ' नहीं , मैंने तो अब तक ऐसे किसी दूसरे के बारे में नहीं सुना है । भाई ने बहन को समझाया- " अब अगर पूछे

गरीबा लोहार की कहानी | Gareeb Ka Sapana

चित्र
  बड़ी - सी फूल - पौधों की नर्सरी थी । वहीं बड़ा आलीशान घर था । बड़े - बड़े कमरे , आंगन , नौकर - चाकर और सामने बड़ा खूबसूरत बगीचा । घर के निकट बस्ती थी । सड़क के एक ओर फूल भरी नर्सरी और हमारा घर था । बस्ती की तरफ खुलने वाली खिड़की खोल लेती और सामने ही रह रहे लुहार परिवार को देखा करती । पति - पत्नी और दो पुत्र । आठ - दस वर्ष का गरीब मेरे आकर्षण का केन्द्र रहता ।  वह दिन भर कभी अपने पिता की सहायता करता , कभी घर और आसपास की सफाई करता । कभी अपने छोटे भाई को खिलाता रहता । कच्ची बस्ती से अन्य लड़कों की भाँति वह लड़ते या गाली - गलौज करते कभी नजर नहीं आते थे । रोज सुबह जब मेरे बेटे को लेने स्कूल की बस आती , तो मैं गरीबा को बस के पास खड़ा पाती । धीरे - धीरे उसकी और मेरे बेटे की जान पहचान हो गई ।  मेरा बेटा स्कूल बस में जाता और गरीबा उसका स्कूल बैग पकड़ा देता । फिर दोनों ओर से जोरदार ' बाय - बाय ' होती और स्कूल बस चल देती । एक दिन गरीबा की माँ मेरे पास आई और बताया कि गरीबा कई दिनों से कह रहा था कि भैया की मम्मी से मिलकर आना । मैंने कहा भेजतीं  तुम्हारा गरीबा अधिक समझदार है । तुम उसको स्क

स्वर्णपुरी की रानी की कहानी | Diviya Mein Kaun

चित्र
  एक राजमहल उदास था । स्वर्णपुरी की रानी रात - दिन आँसू बहाती थी । राजा भी बहुत दुखी थे । अभी तक रानी की गोद नहीं भरी थी । इसी तरह काफी समय बीत गया । रानी से कष्ट सहन न हुआ , दिन वह महल के जलाशय में डूबने चली गई । रानी ने पानी में डुबकी लगाई । तभी एक लता उसके हाथ से लिपट गई । फिर एक आवाज सुनाई दी - ' महल वापस चली जाओ । इस लता को पीसकर खा लेना । ठीक समय पर पुत्र होगा ।। भविष्यवाणी सुन , रानी प्रसन्न हो गई । जलाशय से निकली तो हाथ में लता थी । राजा को बताया । लता को पीसकर खा लिया । राजा ने अन्न - वस्त्र के भंडार खोल दिए । चारों ओर उत्सव का वातावरण छा गया । स्वर्णपुरी के दक्षिण में बरगद का विशाल वृक्ष था ।  वहाँ एक तांत्रिक ने धूनी रमा दी । उसकी उम्र कितनी थी , कोई नहीं जानता था । दिन में किसी ने उसे आँखें खोलते नहीं देखा था । लोग कहते थे , वह रात के अंधेरे में घूमता था । बच्चों को उठाकर जाने कहाँ ले जाता था । उसके डर से हर माँ अपने बच्चे को संभाल कर रखती थी ।  स्वर्णपुरी की रानी ने बेटे को जन्म दिया । उस समय भी रात थी । कक्ष में रानी की नींद आ गई । कुछ क्षणों के लिए ऐसा हुआ कि रानी के

सेवाराम-श्यामा और सोने के सिक्के की कहानी | Mila Varadaan

चित्र
  सेवाराम एक गाँव में रहता था । घर में वह और पत्नी श्यामा , बस , दो ही जने थे । फिर भी जीवन आराम से नहीं बीत रहा था । सेवाराम के पास न जमीन थी , न कुछ और साधन । गाँव में जो छोटा मोटा काम मिलता , उसी से जैसे - तैसे गुजर - बसर होती । श्यामा रोज मंदिर जाती , पति से कहती तो एक ही जवाब देता " तुम तो रोज मंदिर में जाती हो ! अब तक क्या मिल गया तुम्हें ? श्यामा हँसकर कहती- " मैं कुछ मांगने नहीं , भगवान की पूजा करने जाती हूँ । पूजा सच्ची मन से कर रही हु  कभी सफल भी हो जाऊँगी ।  किन्तु कभी - कभार सेवाराम भी श्यामा के साथ चला जाया करता था । उनका दिन ऐसे ही बीत रहा था । श्यामा कहती थी- " शहर जाकर कोशिश करो । शायद वहाँ कुछ काम मिल जाए । गाँव में बैठे - बैठे कुछ होने वाला नहीं है । श्यामा जी ने जब कईओ बार कहा तब सेवाराम जी ने शहर में जाने का मूड बना लेता है ।  एक दिन सुबह होते ही निकल पड़ता है । तब श्यामा ने हाथ जोड़कर मन में बोला हे भगवान् इनकी भला करना चलते - चलते दोपहर से अधिक हो गई । शहर अभी काफी दूर था । श्यामा ने रास्ते में खाने के लिए दो तीन रोटि बाँध दिया था । उस जगह सेवाराम ए

दीपा और उसकी सगी बहनों की कहानी | छूना है आकाश

चित्र
  मुझे अपनी कक्षा की सभी छात्राओं से प्यार है । मैं इन्हें पूरा समय देती हूँ । केवल कक्षा में ही नहीं , कक्षा के बाद इनके घरों में जाकर भी । मेरे दोनों बच्चों के विवाह हो गये हैं । वे दोनों यहाँ से बहुत दूर समुद्र पार रहते हैं । मेरे पति पिछले वर्ष सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं ।  एक सप्ताह पहले मुझे सूचना मिली कि दीपा बहुत बीमार है । मैं उसे देखने उसके घर गई । पता चला कि दीपा की माँ का पिछले वर्ष स्वर्गवास हो गया था । दीपा अपनी दो बड़ी बहनों के साथ रहती है । दीपा के पिता रेलवे में चपरासी हैं । रेलवे से मिले एक कमरे के क्वार्टर में ये चारों रहते हैं । दीपा मेरी कक्षा की होनहार छात्रा है । दीपा की बड़ी बहन ने मुझे बताया कि पिता को बहुत चिंता है । दीपा का बुखार नहीं उतर रहा है ।  उसने घर की दूसरी कठिनाइयों के बारे में भी - बताया । दीपा से मिलकर मैं लौट आई । एक महीना बीत जाता है दीपा स्कूल नहीं आ पाई । मैं फिर उसके घर पहुंच गई । फिर वहा से पता  चला कि दीपा को अस्पताल में भर्ती किया जा चुका है । इस वक्त दीपा की बड़ी बहन कहीं छोटी सी कही नैकरी कर ली थी । दीपा की बीमारी  दिमागी बुखार बत

राजा प्रजा और महात्मा की कहानी | अपनी खोज

चित्र
 एक राजा थे दुलारसिंह जी। नाम के अनुरूप प्रजा से बड़ा स्नेह करने वाले थे। उनकी प्रजा भी अपने राजा को बहुत चाह रही थी । एक बार उनके जीवन में ऐसा भी हुआ जब एक महात्मा जी अपने शिष्य मंडली के साथ राजधानी में पधारे । दुलारसिंह ने सबके रहने की उचित व्यवस्था करवा दी । एक दिन पुरे मंडली सहित महात्मा जी को राजमहल में आमंत्रित किया । महात्माजी पहुचे । दुलारसिंह ने परिवार सहित महात्माजी की चरण की धूलि ली । फिर उन्होंने राज - परिवार को आशीर्वाद दिया ।  दुलारसिंह ने कहा- " महात्मा जी , मेरे मन में एक प्रश्न बार - बार उठता है । मैं उसका समाधान चाहता हूँ । " महात्माजी के पूछने पर राजा ने कहा- " राजधानी में एक भव्य मंदिर है । मैं सपरिवार वहाँ रोज दर्शन - पूजन के लिए जाता हूँ । हमारे राज्य की प्रजा में भी भाव है । फिर भी मैं यह नहीं जान पाया कि भगवान का सच्चा भक्त भरपूर भक्ति कौन है ?   दुलारसिंह की बात सुन महात्मा जी हँसकर बोले- " यह जानना कठिन नहीं है । मेरे पास पवित्र हवन सामग्री है । वह तुरन्त प्रज्वलित हो उठती है , लेकिन ऐसा उसी स्थिति में होता है जब कोई सच्चा व्यक्ति उसे हाथ मे

अत्याचारी बना उदारबादी राजा | Let's have a story of Kashi

चित्र
दीपक ब्रह्मचारी था । उसने शास्त्रों में पढ़ा था , शिष्य के लिए सबसे बड़े देवता उसके गुरु होते हैं । इसी भाव को मन में रखकर दीपक अपने गुरु का आदेश पालन करता था । उसकी सेवा में लगा रहता था । दीपक के गुरु थे वेदधर्मा । उसका आश्रम गोदावरी के तट पर स्थित था । वेदधर्मा विद्वान थे । दूर - दूर से छात्र उनके आश्रम में पढ़ने आते थे ।  अपने सभी शिष्यों के लिए वेदधर्मा के मन में स्नेह भाव रहता था । वह लगन से सबको शिक्षा - दीक्षा देते थे । उनके आश्रम का वातावरण एक बड़े परिवार जैसा था और गुरु वेदधर्मा उस विशाल परिवार के मुखिया थे । सब शिष्यों में दीपक वेदधर्मा की अधिक सेवा करता था । शिक्षा में भी वह सबसे आगे रहता था । इस कारण वेदधर्मा उस पर विशेष स्नेह रखते थे ।  एक दिन वेदधर्मा ने दीपक को बुलाया , वह तुरन्त आया । उसने हाथ जोड़कर कहा- " क्या आज्ञा है गुरुदेव ? " वेदधर्मा ने एक बार इधर - उधर देखा , फिर बोले- " मेरे साथ नदी तट पर चलो । एकान्त में तुमसे एक विशेष बात कहनी है । " दीपक ने गुरु वेदधर्मा की ओर देखा । मन में आशंका ने सिर उठाया । सोचने लगा - ' ऐसी क्या विशेष बात है जिस

लुटेरे को खाली हाथ क्यों लौटना पड़ा खाली हाथ | Bhatt's wisdom

चित्र
राजपुर के ठाकुर ने सौ - सौ रुपए की तीस ढेरियाँ लगाईं , यानी तीन हजार रुपए । उन दिनों आज की तरह नोट नहीं चलते थे । लोग थैलियों तथा बोरियों में भरकर रुपए लाते , ले जाते थे । ठाकुर ने मियां फुसकी से कहा- " सुबह जल्दी आ जाइएगा । तीन हजार रुपए लेकर गोंडल गाँव जाना है । वहाँ जयराम पटेल के बेटे अशोक पटेल को रुपए देने हैं ।  मैं तभा भट्ट को भी सुबह जल्दी आने के लिए कह दिया है ।  दूसरे दिन तभा भट्ट ठाकुर की बैठक में आकर बैठ गए । मियाँ फुसकी को आने में कुछ देरी हुई । भट्ट जी ने हँसते हुए पूछा- " इतनी देर क्यों कर दी ? " मियां जी ने कमर में लटकी तलवार की तरफ इशारा किया । भट्ट जी चिढ़ गए । मियां फुसकी ने हँसकर कहा- " हमें तीन हजार रुपए लेकर जाना है । रास्ते में कोई चोर - लुटेरा मिल गया , तो आपको दो थप्पड़ लगाएगा और रुपयों की थैली लेकर भाग जाएगा ।  लेकिन मेरी तलवार देखते ही वह डर जाएगा । फिर तो पाँच पैसे भी लेने के लिए मेरी तरफ नहीं बढ़ेगा । मैं यह तलवार उसकी गर्दन पर रख दूँगा । " वे दोनों बातें कर ही रहे थे कि ठाकुर तीन हजार रुपयों की थैली लेकर आ गए । मियाँ फुसकी ने ठाकुर

रावण का वध कैसे हुआ था | How did Ravana get killed

चित्र
 इंद्रजीत , रावण का परम प्रतापी पुत्र था । वह महान शिव भक्त था , जिसने अपनी घोर साधना से अनेक दिव्य अस्त्र प्राप्त कर रखे थे । युद्ध कला में तो उसका कोई सानी न था । उसके हारने की तो रावण ने कभी कल्पना तक नहीं की थी । तभी जब युद्ध क्षेत्र से आये दूत ने उसे इंद्रजीत की मृत्यु का दुखद समाचार दिया तो उसे विश्वास न हुआ ।  इंद्रजीत और लक्ष्मण के हाथों मारा जाय ! असम्भव ! पर दूत का बुझा चेहरा , झुकी हुई आँखें बता रही थीं कि असम्भव आज सम्भव बन चुका है । इंद्रजीत सबको छोड़कर जा चुका पुत्र के लिए दुःख की पीड़ा को वह परम प्रतापी भी सहसा दबा नहीं सका ।  उसका लाल - लाल आँखों से आंसू टपक पड़े । उसकी साँसें तेजी से चलने लगीं , तूफान की तरह । रह - रहकर उसका मन पुत्र के लिए चीत्कार कर उठा था , वो हमारे प्यारे बेटे हे दुर्लभ योद्धा ! तुम तो देवेन्द्र तक को हरा चुके थे , तुमसे यह कैसे जीत गया ?  पुरे लंका को मनो की साप सूंघ गया हो ।  रावण मानो अपने आप में बातें कर रहा हो , " नहीं , तुम हमें छोड़कर कैसे जा सकते हो ? मैं तुम्हारी माँ को क्या कहूँगा ? तुम्हारी प्यारी पत्नी को कैसे समझाऊँगा ? " इसी

पानी में सूरज की कहानी

चित्र
बहुत समय पहले की बात है । उस वक्त अंतरिक्ष में एक नहीं , बल्कि दस सूर्य हुआ करते थे । वे बारी - बारी से उदय हुआ करते थे जब एक आकाश में रहता बाकी सब विश्राम करते । हर कोई प्रसन्न और कांतिमय था । ये सब सूर्य , प्राची देवता के पुत्र थे । वे प्राची देवता की आज्ञा का पालन करते थे । पर थोड़े समय के बाद ऐसा हुआ कि ये सब पुत्र कुसंगति में , गए ।  उनको अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर बड़ा घमंड हो गया । बारी बारी से विश्राम करने के स्थान पर वे सब सूर्य एक साथ ही चमकने लगे । उनमें आपस में होड़ लग गई कि कौन कितना तेजस्वी है । उनके इस खेल से धरती पर रहने वालों के लिए बहुत विपत्ति खड़ी हो गई ।  सब ओर त्राहि - त्राहि मच गई । पानी के सरोवर सूख गए । फसलें जल गईं । यहाँ तक कि जमीन के अंदर उगने वाली चीजें आलू , रतालू आदि भी जल - भुन गए थे । भयंकर संकट खड़ा हो गया था ।  अपनी सम्पूर्ण प्रजा का ब्यस्था  को सुनकर देखकर उस समय  प्रतापी राजा योंग ने प्राची देवता से प्रार्थना याचना की कि धरातल की रक्षा की जानी चाहिए । वे अपने पुत्रों को आज्ञा देने कि कृपया करे ताकि केवल एक सूर्य आकाश में चमके । बाकी पुत्र विश्राम करे