Featured post
पराक्रमी महाराजा रणवीर सिंह एक कहानी | Aag Ne Kaha
- लिंक पाएं
- ईमेल
- दूसरे ऐप
जामगढ़ के राजा थे रणवीर सिंह । बहुत से योग्य और पराक्रमी । प्रजा के लिए प्राण देने को तैयार रहते थे । दुश्मन जब सामने आता तो काल बन जाते थे । उनका एक ही पुत्र था - आलोक सिंह । जामगढ़ का पड़ोसी राज्य था बानागढ़ । वहाँ का राजा महादेवसिंह था । वह समृद्ध जामगढ़ को अपने राज्य में मिला लेना चाहता था । |
उसने कई बार जामगढ़ पर आक्रमण किया , परन्तु रणवीर सिंह की वीरता के सामने उसकी एक न चली । आखिर महादेव ने निश्चय किया कि अगली बार पूरी तैयारी के साथ वह हमला करेगा । महादेव ने चुपचाप अपनी सेना को संगठित किया । युद्ध की तैयारियों से संतुष्ट होने के बाद उसने जामगढ़ पर आक्रमण कर दिया ।
रणवीर सिंह को इतनी जल्दी फिर आक्रमण होने की आशंका न थी , परन्तु वह युद्ध के लिए तैयार हो गये । मोर्चे पर जाने से पहले उन्होंने मंत्री यशराज को बुलाया । रणवीर सिंह ने देखा , मंत्री यशराज युद्ध में जाने के लिए तैयार होकर आया था । उसकी कमर पर तलवार बंधी थी ।
यह क्या मंत्री जी , क्या तुम भी लड़ाई में जा रहे हो रणवीर सिंह ने पूछा । जी महाराज ! इस बार मैं भी युद्ध के मैदान में अपना कर्त्तव्य पूरा करूंगा । " - यशराज ने जोश में भरकर उत्तर दिया । " नहीं , नहीं , तुम्हें युद्ध में भेजने से महत्वपूर्ण काम है मेरे पास । " - रणवीर सिंह बोले । ' आज्ञा महाराज । " - मंत्री यशराज ने आदरसहित कहा । मैं युद्ध में जा रहा हूँ । इस बार का युद्ध कोई भी मोड़ ले सकता है ।
अतः यहाँ की पूरी जिम्मेदारी तुम संभालो । तुम्हें राजकुमार आलोक का ध्यान रखना है । तब जाकर रणवीर सिंह जी ने अपनी गंभीर स्वर में बोले पड़े हे महाराज ! आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? आप विजयी होकर लौटेंगे । यहाँ की आप जरा भी चिंता न करें " " पिताजी ! आप मुझे भी आज्ञा दीजिए । में युद्ध में जाऊंगा । ' तभी आलोक ने वहाँ आकर तलवार निकालते हुए कहा है नहीं बेटा ! मुझे विश्वास है
इस युद्ध को मैं अकेला ही जीन लूँगा । तुम्हारे लिए और बहुत से अवसर आयेंगे । " - रणवीर सिंह ने मुसकराते हुए उत्तर दिया । रणवीर सिंह सेना के साथ युद्ध भूमि में जा पहुँचा । भयंकर बुद्ध छिड़ गया । बानागढ़ की सेना पूरी तरह तैयार होकर आई थी । अतः दोनों पक्षों में घमासान लड़ाई हुई , लेकिन रणवीर सिंह की वीरता के सामने महादेव की एक न चली । उसे मैदान छोड़कर भागने के लिए विवश होना पड़ा । रणवीर चाहते तो आगे बढ़कर बानागढ़ पर कब्जा कर लेते , परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया ।
युद्ध जीततर रणवीर सिंह लोटे । वह बहुत घायल थे क्योंकि सबसे आगे रहकर अपनी तलवार के जौहर दिखाये थे । राजवैद्य ने इलाज किया परन्तु कोई फायदा न हुआ । दूर - दूर से चिकित्सक बुलाये गये । धीरे - धीरे स्वास्थ्य बिगड़ता गया । अपना अंत निकट जान , उन्होंने मंत्री यशराज को बलाया । कहा- " अब समय आ गया है कि आलोक को राजा बना दिया जाए । इसके राजतिलक की तैयारी की जाए ।
राजा की बात सुन यशराज की आँखों में आँसू आ गये । एक सादा समारोह हुआ । रणवीर ने अपने हाथों से आलोक को मुकुट पहनाया । सब अपने राजा का जय - जयकार करने लगे । लेकिन प्रजा उदास थी । इसके कुछ ही दिनों बाद रणवीर सिंह की मृत्यु हो गई । सारा राज्य शोक में डूब गया । आलोक ने शासन व्यवस्था को ठीक से संभाल लिया ।
शुरू सब ठीक चला , परन्तु जल्दी ही स्थितियाँ बदलने लगी । राज्य में उपद्रव होने लगे । लुटेरे राह चलते लोगों को लूट लेते । गाँवों पर डाकू हमला करते । लोगों को मारते । लूटकर घरों में आग लगा देते । लोगों ने इसकी शिकायत राजा से की । आलोक ने सैनिकों को भेजा , परन्तु वारदातें नहीं रुकीं । हर जगह से ऐसे ही समाचार आ रहे थे ।
एक रात आलोक महल की छत पर टहल रहे थे । उन्हें नींद नहीं आ रही थी । वह राज्य में होने वाले उपद्रवों की उलझन में उलझे हुए थे । समझ में नहीं आ रहा था कि स्थिति पर कैसे काबू पाया जाये । अचानक महल से दूर आग की लपटें उठती दिखाई दीं । थोड़ी देर बाद लपटें बुझ गई । आलोक का ध्यान उधर गया । उन्होंने देखा - कई बार लपटें उठी और फिर तुरन्त बुझ भी गई । लपटों का रहस्य आलोक की समझ में नहीं आया
उन्होंने सेनापति राजेन्द्र सिंह को बताया कहा की सामने कई बार आग की लपटें उठी और फिर बुझ गई । इसका क्या मतलब हो सकता पता करो ? 'जी महाराज मैं तुरंत जा रहा हूँ । बोलकर राजेन्द्र सिंह जी वहा निकल लेते है । सुबह होते ही सेनापति फिर से आ गए । उसके बाद उन्होंने रात में जो घटना हुयी थी उसके बारे में बताने लागे- महाराज ! मैं खुद इन्क्वारी करने के लिए गया हुआ था । कहीं कुछ नहीं था । शायद कहीं कोई यात्री दल टिके रहे हो । उन्होंने ही आग जलाई होगी । कोई खाश बात नहीं है । आलोक जी उनके इस बातो से संतुस्ट हो उठे ।
थोड़ी देर बाद मंत्री यशराज आया । उसने कहा- महाराज ! आज आपको एक ऐसी अनोखी स्थान पर ले जाना चाहता हूँ । तब राजा ने कहाँ चलना है ? उसके बाद आलोक ने पूछा महाराज यह बिलकुल न पूछें ! मैं आपको वहीं चलकर बताऊँगा तब यशराज ने हाथ जोड़कर बोले । आलोक को यशराज पर पूरा भरोसा था । वे यशराज जी के साथ चल देते है ।
सैनिक साथ थे । यशराज राजा आलोक को एक ऊँचे टीले पर ले गया । वहीं बुझी हुई लकड़ियाँ पड़ी थीं । आलोक की समझ में कुछ नहीं आया । सोच में पड़ गये । उन्होंने यशराज की तरफ देखा । मंत्री ने गंभीर स्वर में कहा " महाराज ! यहीं रात को लपटें उठी थीं । ये बुझी हुई लकड़ियाँ हमारे राज्य को जला सकती हैं । " आलोक ने आश्चर्य से पूछा- " ये लकड़ियाँ हमारे राज्य को कैसे जला सकती हैं ! यहाँ आग किसने जलाई ? यहाँ तो आस - पास कोई रहता भी नहीं है । आप मेरे साथ चलिए महाराज ! मैंने राज्य के शत्रुओं को कैद कर रखा है । आपको सब कुछ पता चल जायेगा ।
मंत्री ने जवाब दिया । वह राजा को लेकर एक गुप्त स्थान पर पहुँचा । वहाँ कुछ लोगों को सैनिकों ने बंदी बना रखा था । मंत्री ने कहा- " महाराज , यही है लोग जो आग जलाकर महल में संकेत दे रहे थे । मैंने किले से भी ऐसे संकेत देखे थे । इसीलिए खोज करने आया था । आलोक ने पूछा- यह बात तुम महल में भी कह सकते थे .महाराज यह बात वहाँ पर बताता तो दुश्मन सतर्क हो जाते। यशराज ने गंभीर स्वर में उसका उत्तर दिया ।
उसके बाद जो हुआ गुस्से से आलोक की आँखें निकलते सूरज के जैसालाल हो गई । उन्होंने क्रोधित होकर कैदियों से पूछा- " सच - सच बताओ । तुम्हें किसने भेजा है यहाँ लपटदार आग जलाकर किले में दुश्मन किसे संदेश को देना चाह रहे थे बताओ नहीं तो अभी मृत्युदंड देता हूँ । " कैदी घबरा गये । उन्होंने जान बचाने के लिए सच बोल दिया " महाराज ! हमें क्षमा करें । हम बानागढ़ के गुप्तचर है । यहाँ हमें उपद्रव फैलाने के लिए भेजा गया था ।
हमारे राजा की योजना है यहाँ प्रजा में विद्रोह के बीज यो दें । जब प्रजा विद्रोह कर देगी , तब वह आक्रमण कर देंगे । आपके राज्य के कुछ बड़े अधिकारी हमारी सहायता कर रहे हैं । उनका नेता है सेनापति राजेन्द्र सिंह जी क्या राजेन्द्र सिंह आलोक जी को अपने ही कानों पर क्या भरोसा नहीं हुआ । जी महाराज ! इसी नाते मैं आपको इस स्थान पर लेकर आया हुआ था । तब जाकर यशराज ने गंभीर स्वर में बोला लेकिन राजेन्द्र सिंह जी ने ऐसा क्यों कर दिया आलोक ने पूछा जैसे की उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो पा रहा था ।
“ हमारे महाराज ने आपके सेनापति से वादा किया है कि उन्हें ही आपके बाद खामोश आलोक गरजकर उठे की । दुश्मन गुप्तचर अपनी बातो को पूरा नहीं कर पाया । आलोक सिंह जी के होश उड़ गए । बाद में अपने आपको संभाला । और फिर मंत्री के साथ राज महल वापस लौट पड़े । उसके बाद राजेन्द्र सिंह को आनन-फानन गिरफ्तार कर लिया गया । भांडा फूटता देख उसने और देश - द्रोहियों के भी नाम बता दिये । सबको पकड़कर कारागार में डाल दिया गया ।
आलोक सिंह ने रात को एक गुप्त बैठक बुलाई । उन्होंने राजेन्द्र सिंह की गद्दारी के विषय में बताया । फिर बोले- " जब तक बानागढ़ में महादेव सिंह का शासन है , युद्ध होते रहेंगे । षड्यंत्र चलते रहेंगे । आज तक उसने हम पर आक्रमण किया है । हम केवल बचाव करते रहे हैं । इस बार आक्रमण हम करेंगे । " हम सब आपके साथ हैं । " सारे दरबारी एक स्वर में बोले । " ठीक है ! मंत्री जी , आप सेना को तैयार होने का आदेश दीजिए ।
इस बार मैं स्वयं आगे रहकर सेना का नेतृत्व करूंगा । " आलोक सिंह दूड स्वर में बोले । रातो - रात सेना तैयार करके आलोक सिंह ने बानागढ़ पर आक्रमण कर दिया । महादेव सिंह तो षड्यंत्र रचकर ही प्रसन्न हो रहा था । उसने यह कल्पना भी नहीं की थी कि आलोक पलटकर आक्रमण कर देगा । वह आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार न था । बानागढ़ की सेना युद्ध में टिक न सकी । लड़ते - लड़ते महादेव सिंह मारा गया । बानागढ़ को आलोक ने अपने राज्य में मिला लिया ।
- लिंक पाएं
- ईमेल
- दूसरे ऐप