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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

राजा से तंग होकर लोग लोगों ने घर छोड़ा | story of ancient kings

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राजा बुद्धिसेन हमेशा हँसता रहता था । वह जब - जब दरबार में हँसता , राजा अपने बारे में क्या सोचता था (raaja apane baare mein kya sochata tha) तब - तब दरबारियों को भी राजा का साथ देने के लिए हँसना पड़ता था । कभी - कभी हँसा का दौर दरबार में पूरे - पूरे दिन भी चलता रहता । अतः राजा , उसके मंत्री और दरबारियों को राज्य के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं होती थी ।  राजा का आदमी को क्या प्रस्ताव था (raaja ka aadamee ko kya prastaav tha) इतना ही नहीं , राजा के सिपाही नगर - नगर , गाँव - गाँव घूमते । उन्हें रास्ते में काम करते हुए , घूमते हुए या बैठे हुए जो लोग मिलते , वे उन्हें जबरन हँसने के लिए कहते । न हँसने पर उन्हें मारते । इससे तंग आकर कुछ लोग राज्य छोड़कर जाने लगे । तब राजा बुद्धिसेन ने उन्हें दरबार में बुलवाया ।  राजा ने उस आदमी के साथ क्या किया था (raaja ne us aadamee ke saath kya kiya tha) उसने सिपाहियों से उन लोगों को रात - दिन हँसाते रहने के लिए कहा । सिपाही उन लोगों को गुदगुदी करके हँसाते । गुदगुदी बर्दाश्त नहीं कर पाने से लोग बेहाल हो जाते । प्रजा में डर छा गया । लोग सिपाहियों के घ

राजा बने अगिया बेताल के मित्र | story of betal

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महाराज महेन्द्रसिंह को अपनी प्रजा से बहुत प्यार था । वह पेड़ - पौधों तथा पशु - पक्षियों से भी बहुत प्यार करते थे । महाराज महेन्द्र बचपन से ही महल के चारों ओर लगे बाग - बगीचों और फुलवारी के फूलों की खूब देखभाल करते थे।  राजमहल के चारों ओर फैले बाग में पक्षियों का चहचहाना सुनकर महेन्द्र खाना - पीना सब भूल जाते । घूम - घूमकर बाग के पक्षियों का फुदकना देखते । राजकाज संभालने के बाद भी उनके प्रकृति प्रेम में कोई कमी नहीं हुई ।  पशु - पक्षियों से तो उन्हें इतना प्यार था कि राजगद्दी पर बैठते ही उन्होंने शिकार पर रोक लगा दी । धीरे - धीरे सारी प्रजा में पशु - पक्षियों तथा पेड़ - पौधों के प्रति लगाव उत्पन्न हो गया । हर आदमी अपने घर के आसपास पेड़ - पौधे , फलों और फूलों को उगाने लगा ।  प्रजा में पशु - पक्षियों तथा पेड़ - पौधों के प्रति प्यार बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष महाराज किसानों तथा जंगल में रहने वाली जन जातियों का सम्मेलन भी करते । उन्हें पुरस्कार भी देते । महाराज महेन्द्र कभी - कभी अकेले घोड़े पर बैठकर दूर तक निकल जाते ।  वह देखते कि कहीं कोई किसी अभाव से दुखी तो नहीं है । गर्मी की तपती दोपहरी

एक बुढ़िया माई की कहानी | Story on village life

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सुबह के धुंधलके में दो - तीन गाँव के लोगो ने देखा , नदी की तरफ से एक बुढ़िया कमर झुकाए , कंधे पर एक कांटेदार सूखा झाड़ रखे गाँव के भीतर चली आ रही है । धीरे - धीरे चलती बुढ़िया चौपाल को पार कर आगे बढ़ गई । बुढ़िया कुबड़ी भी नहीं थी क्योंकि जब सुस्ताने के लिए वह कमर सीधी करती थी , तो कहीं कूबड़ भी नहीं दिखाई देता था ।  बुढ़िया बहुत ही दुबली - पतली थी । सिर के सफेद बाल उलझे - उलझे थे । आँखें बहुत चमकदार । उसने सफेद साड़ी पहनी हुई थी जो कई जगह से फटी हुई थी । उम्र का कुछ अंदाजा नहीं था । चौपाल से आगे निकलकर गली के नुक्कड़ के करीब वह ठिठकी । कंधे पर से झाड़ उतारा । उसने थोड़ी - सी जगर को बहारा और फिर उसी पर बैठ गई ।  अजीब बात थी कि झाड़ पर लगे कांटे भी उसे नहीं चुभ रहे थे । सूरज की रोशनी फैल गई थी । गली के नुक्कड़ पर एक विचित्र बुढ़िया को झाड़ पर बैठे देख , गाँव के लोग वहाँ जमा हो गए । बुढ़िया से पूछताछ करने लगे , लेकिन बुढ़िया ने किसी की बात का जवाब नहीं दिया ।  वह चुप बैठी रही । हाँ , उसके होंठ जरूर फड़फड़ा रहे थे । कुछ बुदबुदा रही थी , होठों ही होठों में । लेकिन सुनाई कुछ नहीं पड़ता था ।

काला देव और राजू प्रीति की कहानी

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जादू नगरी से आया जादूगर- रामगढ़ शहर के अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे जब पिकनिक मनाने के लिए शहर से दूर राधा झील के किनारे पर बैठे झील में से उठती लहरों का आनन्द ले रहे थे  तो साथ - साथ इस गाने का भी तो आनन्द आ रहा था ' जादू नगरी से आया कोई जादूगर । ' सब बच्चे मिलकर इस गाने के साथ - साथ नृत्य कर रहे थे । खुशी की यह महफिल और बच्चों का धूम - धड़ाका ...। ऐसा लग रहा था कि जैसे आज जंगल में मंगल हो गया हो ।  बच्चो को स्कूल से बाहर . आकर जब खेलने - कूदने और मौज - मस्ती की आज़ादी मिलती है तो वे एक दम से अपने आप को अपनी दुनियाँ का राजा समझने लगते हैं । वे यह सब भूल जाते हैं कि उनके पीछे भी कोई और दुनियाँ बसती है ।  जादू नगरी से आया है कोई जादूगर प्रीती और राजू दोनों दोस्त थे । इन दोनों का अधिक शोर - शराबा पसंद नहीं था , इसलिए उन दोनों ने यह सोचा कि हम इस जंगल में घूमने चलते हैं । हमारे आने तक यह शोर - शराबा भी समाप्त हो जाएगा । फिर उन्होंने यह भी सुन रखा था कि जंगल में तरह-तरह के जानवर भी रहते हैं ।  उन दोनों को जानवर देखने का बड़ा शौक था । विशेष रूप से बंदर तो उन्हें नाचता हुआ बहु

किसान और गायक दोस्त की कहानी | A farmer lived in a village

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एक गाँव में एक किसान रहता था । नाम था उसका बोलू । स्वभाव से भी अत्यन्त भोला - भाला था । उसके पड़ोस में राजगायक तेजसिंह रहता था । वह था तो भोलू का हमउम्र , लेकिन राजगायक होने के घमंड में भोलू से दोस्ती नहीं रखता था । वह नित्यप्रति सुबह - सुबह गाने का अभ्यास किया करता था ।  भोलू के कानों में जब उसके सुरीले गानों में बोल पड़ते , तो उसका दिल करता कि वह भी गाए । लेकिन उसे गाना आता नहीं था । एक दिन उसने सोचा ' क्यों न मैं तेजसिंह से गाना सीख लूँ ? जब भी मैं उदास होऊँगा , गाना गाकर मन बहला लिया करूँगा । '  यह सोचकर वह तेजसिंह के पास गया । बोला- " भाई , तुम बहुत अच्छा गाते हो । मैं भी गाना सीखना चाहता हूँ । क्या तुम मुझे गाना सिखाओगे ? " तेजसिंह उसका मजाक उड़ाते हुए बोला- “ अच्छा , तो तुम एक मामूली किसान होकर गाना सीखना चाहते हो ? "  भोलू उसका व्यंग्य समझ नहीं पाया । बोला- “ हाँ भाई , गाना सीखने की मेरी तमन्ना है । कृपया मुझे सिखा दो । " " तो ऐसा करो भोलू , वह जो तुम ऊपर पहाड़ी पर एक गुफा देख रहे हो , वहीं पर मेरे गुरुजी रहते हैं । उनके पास पाँच वर्ष रहकर मैंने

गरीब किसान की कहानी हिंदी में | Why was the king pleased with the farmer

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  एक राजा था , शिकार का शौकीन । एक बार शिकार खेलने  गया हुआ था । जंगल में जानवर का पीछा करते - करते अपने साथियों से बिछुड़ गया । रात हो गई । भूखा - प्यासा राजा किसी तरह से एक किसान के दरवाजे पर पहुँचा । किसान राजा को नहीं जानते थे ?  लेकिन किसान ने मेहमान समझकर उसे बैठाया , पानी पिलाया। कुछ देर बाद भोजन बनाकर खिलाया । उसके सोने के लिए बिस्तर लगाया । यह सब देख राजा किसान पर बहुत खुश हुए । अगले सुबह जब राजा को जाने को हुआ , तो उन्होंने  एक पत्ता निकला। किसान के नाम साठ गाँव लिख दिए ।  यह बात जब किसान को बताया तो वह फूला न समाया । राजा को दरबार चला जाने के बाद । किसान की एक पालतू बकरी । थी वह बकरी वहाँ आई और चट से उस पत्ते को चबा-चबा कर खा गयी । किसान जब तक उसे पकड़ता तबतक , वह पत्ता बिलकुल वह पूरा पत्ता बकरी के पेट में जा चुका था ।  अब किसान करे भी तो क्या करे ? वह किसी तरह रोता -बिलकता-कलपता राजमहल में जा पहुँचा । दरबारी उस गंवार को देखकर भड़क गए उसको अंदर ही नही जाने दें रहे थे । बहुत हाथ - पाँव जोड़ने बाद राजा तक पहुँच  पाया । राजा उसको देखते ही पहचान गए  । राजा कुछ पूछते उसके पहले ही क

ईमानदारी पर छोटी कहानी With Moral

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  ईमानदारी स्लोगन रामपुर में एक लड़के का जनमदिन था । परिवार वालों ने बच्चे का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया वे- जवाहरात के व्यापारी थे सोमनाथ । उनके पोते धूमधाम से मनाया । सोमनाथ ने पोते को हीरे - मोती जड़े जूते उपहार में दिये । शाम के समय बच्चा अपने पिता के साथ सैर को निकला ।  उसके पाँव से एक जूता निकलकर कहीं गिर गया । किसी को कुछ पता न चला । जूता एक नवयुवक को मिला । उसका नाम अजीत था । वह नौकरी की तलाश में जा रहा था । उसने जूता उठाकर देखा तो चकित रह गया । सोचा - ' जूता किसी धनवान का है । कीमती भी बहुत है  इसलिए पहले इसे इसके मालिक तक पहुँचाना होगा । ' इसी उधेड़बुन में वह सड़क के किनारे बड़ी देर तक खड़ा रहा । तभी वहाँ से उसका मित्र भूषण गुजरा । उसने अजीत से पूछने लगा  " भाई साहब , इस एकन्त जगह पर तुम खड़े होकर किस सोच डूबे हुए हो ? तुम्हरी चिंता का विषय क्या है " तब जाकर अजीत बोल पड़ा की- " मुझे यहाँ पर एक कीमती जूता पड़ा मिला है , जिसमें हीरे - मोती जड़े हैं । मैं चाहता हूँ कि जिसका यह जूता है , उसे वापस दे सकूँ । " भूषण ने जूता देखा , तो उसकी आँखें फटी की फटी

परशुराम ने कार्तिवीर्य के हजार भुजाएँ काट डालीं | story of a king

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सहस्त्रबाहु का असली नाम कार्तवीर्य था। वह बहुत लड़ाकू तथा शूरवीर था। हज़ार भुजाओ के नाते उसे अर्जुन कार्तवीर्य सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना जाता था। अनूप देश में कीर्तिवीर्य नामक एक अत्यंत शक्तिशाली एवं पराक्रमी राजा राज्य करता था । उस समय कार्तिवीर्य के समान कोई बहादुर योद्धा नहीं था । पृथ्वी के सभी राजा उससे डरते थे । कार्तिवीर्य के एक हजार भुजाएँ थीं । उसने दत्तात्रेय की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था और उनसे सोने का एक विलक्षण रथ प्राप्त किया था । पवन के समान गति वाले इस रथ पर सवार योद्धा को कोई पराजित नहीं कर सकता था । महाशक्तिशाली कार्तिवीर्य इस रथ को पाकर अपने को अजेय समझने लगा । शक्ति के मद में उसने अपनी ही प्रजा को सताना आरंभ कर दिया । धीरे - धीरे उसके अत्याचार बढ़ने लगे ।  देवता , यक्ष , ऋषि , जो भी उसके सम्मुख आता , उसे वह अपने रथ से कुचल डालता । इस तरह सारी पृथ्वी और देवलोक के वासी त्राहि - त्राहि करने लगे । शक्ति के घमंड में चूर कार्तिवीर्य एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुँचा । जमदग्नि ऋषि और उनकी पत्नी रेणुका ने उसका शानदार आतिथ्य सत्कार किया तथा विश्राम करने की व्

गरीब बालक की कहानी | story of a poor family

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  How do you start a family story? महेश उस आदमी से नाराज था जो अपने को उनका सुनील चाचा बता रहा था । ' तब कहाँ थे सुनील चाचा , जब डेढ़ वर्ष पहले पिता जी हमें सदा के लिए छोड़कर चले गए थे ? तब तो खत लिखने और फोन करने के बाद भी नहीं आए थे ?  महेश यही सोच - सोचकर परेशान हो रहा था । उसके पिता गोविंदनारायण सरकारी दफ्तर में चपरासी थे ईमानदार और मेहनती । घर में थी माँ तारा , महेश और मीनू । महेश अब पंद्रह का हो चला था और मीनू दस की । गोविंदनारायण की मौत के बाद घर एकदम टूट गया था । ले - देकर एक सुनील था , गोविंदनारायण का छोटा भाई , जो बंबई में रहता था । आता  नहीं था  सोलह साल पहले घर छोड़कर बंबई चला गया था , शायद बड़ा आदमी बनने के लिए । गोविंदनारायण की मृत्यु के बाद परिवार बेसहारा हो गया था । तारा ने आसपास के घरों में काम करना शुरू कर दिया था  महेश को लगा था , अब उसे भी घर चलाने में माँ का हाथ बँटाना चाहिए । उसने माँ के सामने पढ़ाई छोड़कर कुछ काम करने की बात कही , तो वह झट बोली- नहीं बेटा , तुम पढ़ाई छोड़ने जैसे कोई बात मत करना ! क्या तू नहीं चाहता कि तेरे पिता की आत्मा शांति से रहे । उन्हें

भारवि रामायण क्या है | Man's biggest enemy is ego

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एक समय मिथिला नगरी में निमि वंश के राजा का शासन था । राजा नेक , सदाचारी और प्रजावात्सल्य थे । दरबार में विद्वानों का में जमघट लगा रहता था । शास्त्रार्थ रोज चलता था । दरबार के विद्वानों में पंडित श्रीधर का बड़ा नाम था । वे संस्कृत के विद्वान थे और शास्त्रार्थ करने में सबसे आगे थे ।  श्रीधर पंडित जी स्वभाव के नम्र और मृदुभाषी थे । मन में छोटे - बड़े का भेदभाव नहीं था । श्रीधर जी का आदर सभी लोग करते थे । इनका परिवार बहुत छोटा था । घर में पत्नी और पुत्र बस दो ही प्राणी थे । पत्नी सुन्दर , सुशील और पति की आज्ञाकारिणी थी । पुत्र भी सेहतमंद और हंसमुख था । नाम भारवि था ।  जब वह पाँच साल का हुआ तो पंडित जी उसे संस्कृत पढ़ाने लगे । पुत्र को इन्होंने अपनी सारी विद्या सिखला दी । भारवि भी अपने पिता के समान ही शास्त्रार्थ करने लगा । बड़े होकर भारवि की कीर्ति पिता से भी अधिक फैली । वह राजदरबार में भी बुलाया जाने लगा और भी होने लगा ।  पुरस्कृत मिथिला नरेश उसकी प्रशंसा करते हुए थकते न थे । दरबार के अन्य विद्वान तो शास्त्रार्थ करने में भारवि के समक्ष ठहर ही न पाते थे । सभी उसका लोहा मानने लगे । पुत्र को

हनुमान जी सीने में राम को कब और क्यों दिखाया | Shri Ram Janaki is sitting in the chest

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  श्रीराम प्रसंग उस समय का है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का राज्याभिषेक हो रहा था । देश के कोने - कोने से पधारे नरेश भगवान राम को उपहार भेंट कर रहे थे । विभीषण जी ने भी बड़े प्रेम से रत्नों की एक दिव्य मणिमाला बनाई और राज्याभिषेक के समय वही मणिमाला भक्तिपूर्वक प्रभु राम को भेंट की ।  सुरदुर्लभ उस दिव्य मणिमाला को देखकर राज्यसभा में बैठे हुए सेवकों के मन में उसे लेने की चाहत हुई । एकमात्र हनुमान जी वहाँ निष्काम थे । प्रभु ने सबके मन की बात जान ली और सोचा - ' माला एक है और चाहने वाले अनेक । लंका पर विजय मैंने वानर सेना द्वारा प्राप्त की है यदि इनमें से किसी एक को यह माला दे दूँ तो शेष सभी नाराज हो जायेंगे । '  इसलिये उन्होंने वह माला सीताजी के गले में डाल दी । सुरदुर्लभ श्रेष्ठतम मणियों की वह दिव्यमाला सीताजी के कण्ठ को भूषित कर स्वयं ही सुशोभित होकर धन्यता को प्राप्त हुई । इसके बाद प्रभु राम ने कोषागार से अपनी प्रसन्नता प्रगट करने के लिये बन्दी , नौकर - चाकर , पहरेदार आदि सेवकों को उपहार भेंट किये ।  सुग्रीव जी , विभीषण जी , जामवन्त जी और अंगद आदि को बहुमूल्य वस्त्राभूषण आद

एक पंडित की जबरदस्त कहानी | inspirational story of priest

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 बहुत पुरानी बात है । अयोध्या नगरी के समीप एक गाँव में पंडित रत्नाकर महाराज नाम के एक सम्पन्न सुशील और सदाचारी ब्राह्मण रहा करते थे । वे भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे । उनके होंठ दिन - रात राम नाम का जाप किया करते थे । उठते - बैठते  सोते जागते  हर समय वे रामजी के आराधना में ही डुबे रहते थे ।  यद्यपि पंडितजी ने वैराग्य नहीं लिया था फिर भी रहन - सहन किसी सन्यासी से कम नहीं था । तन पर भगवा परिधान मुख पर रामजी की आभा बस देखते ही बनती थी । सरल स्वभाव और मृदुल वाणी ने उन्हें और अधिक लोकप्रिय बना दिया था । दीन दुखियों की सहायता और बेसहारों को सहारा देने में उन्हें विशेष आनन्द आता था। पूजा अर्चना से उन्हें जब भी फुर्सत मिलती वे आत्मविश्लेषण और आत्मचिंतन में लीन हो जाते ।  अपनी पूजा और अपनी भक्ति का स्मरण कर वे फूले नहीं समाते । वे सोचने लगते कि इस नश्वर संसार से विदा होकर जब वे स्वर्ग सिधारेंगे तब उन की इस मेहनत और सुकर्म के फलस्वरूप ईश्वर के दरबार में उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जायेगा जिस तरह देवताओं के साथ किया जाता है  स्वर्ग की अनेक अप्सराएँ उनकी सेवा में उपस्थित रहेंगी । वहाँ उन्हे

अधिक धन का लोभ विनाश का कारण | Sagar's daughter

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  सेठ राम प्रसाद की शादी को जब 10 वर्ष बीत जाने पर भी कोई संतान न हुई तो दोनों पति - पत्नी को बड़ी चिंता होने लगी । " संतान के बिना तो घर खाली है । " देखने सुनने वाले और तरह तरह की बातें बनाते हैं । कोई नारी को बाँझ बोलता है तो कोई सेठजी को नपुसंक । भले ही मुँह पर कोई कुछ न कहे किन्तु पीठ के पीछे तो ऐसी बातें लोग खूब खुलकर करते हैं ।  दोनों पति - पत्नी जब रात के खाने के पश्चात् सोने के लिए लेटते तो उन्हें सबसे अधिक दुःख इसी बात का होता कि शादी के 10 साल बीत जाने पर भी उनके घर में अभी तक कोई बच्चा नहीं जो रात को सोते समय उनसे बातें करे । पिता से कहानी सुने और माँ से लोरी सुनकर सो जाए ।  दुःख तो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था । किन्तु यह दुःख तो ऐसा था जिसका कोई उपचार ही नहीं था । जो अंदर ही अंदर दीमक लगी लकड़ी की भाँति उन्हें खोखला करे जा रहा था । इसी दुःख के कारण उन्हें नींद ही कहाँ आती थी । बस लेटे - लेटे करवटें बदलते रहते ।  एक पूर्णमासी की रात थी जब सेठ राम प्रसाद की पत्नी अपनी संतान न होने के दुःख को सहन न कर पाई तो उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे । वह आँखें बंद करके सोना च

आकर्षक झील और सोने के पंख वाली परी | Queen's Lust

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  नन्दू बेचारा अभी पाँच वर्ष का ही था जब उसकी माँ का देहांत हो गया था । पिता बेचारे तो पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपने मन की शांति खो बैठे थे । अपने छोटे बच्चे को माँ के बिना तड़पते देखकर उनका मन और भी डूबने लगता । सूना घर काटने को दौड़ता।  रामलाल की बूढ़ी माँ से अपने बेटे का दुःख देखा नहीं जा रहा था । एक ओर बेटा एकांत में बैठा पत्नी की याद में रोता रहता तो दूसरी ओर पोता था जो बेचारा माँ को याद करके रोता रहता था । बूढ़ी माँ शारदा के शरीर में अब ऐसे दुःख सहन करने की शक्ति भी कहाँ थी । वह तो अपने टूटे हुए बुढ़ापे को घसीट रही थी । बेटे और पोते के गम को देखकर वह अपने सारे गम भूल गई थी । अब तो वह केवल इतना ही जानती थी कि वह माँ का फर्ज पूरा करेगी । इस बच्चे को पाल - पोसकर बड़ा करेगी फिर इसकी शादी करके बहू को घर में लाएगी ।  बहू के घर में आते ही इस घर में फिर से वही रौनक आ जाएगी । वही खुशियाँ , वही हँसी मज़ाक , वही शोर - शराबा होगा । ऐसी ही झूठी आशाओं के सहारे बूढ़ी शारदा अपना समय काट रही थी । भारतीय नारी अपने परिवार के लिए कितना त्याग कर सकती है , यह बात तो शारदा देवी को देखकर पता चलती थी । जिस

हिटलर की प्रेम कहानी | Who was Hitler's girlfriend

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  हिटलर तानाशाह क्यों बना? हिटलर वलदव विश्व इतिहास का एक आतंकमय चरित्र । एक ऐसा इन्सान , जो पृथ्वी के मानचित्र को बदलना चाहता था और शब्दकोष को दिया एक शब्द - हिटलरशी । हिटलर के डिक्सनरी में किन्तु , परन्तु और नहीं नाम का कोई शशब्द नहीं होता था ।  जर्मनी का प्राचीन नाम सैक्सनी था । यह यूनान के विद्वान टैमिली के ग्रन्थों में लिखा मिल जाता है । तब छोटे - छोटे राज्य थे । वह परस्पर लूट - मार करते थे । वह धन - धान्य और स्त्रियाँ लूट लाया करते थे ।  हिटलर कौन सी कंट्री का था?- हिटलर का जन्म किस देश में हुआ था हिटलर का जन्म जर्मनी- आस्ट्रेलिया के सीमांत प्रदेश के इन नदी के किनारे बसे एक छोटे से शहर ब्रेनों में 20 अप्रैल सन् 1889 ई . में हुआ था । हिटलर का पिता एलोय हिटलर पहले बबेरिया की चुंगी वसूली का काम किया करता था । पीछे वह म्युनिख में एक सामान्य काक का काम करने लगा ।  हिटलर का पिता एलोय अपनी मां का अवैध पुत्र था और अपनी उनचालीस वर्ष की आयु तक अपनी मां के नाम जिकल ग्रूवर के नाम से ही जाना जाता था । उस समय उसका चाचा मर गया तो एलोव ने उसका नाम स्वीकार कर लिया । वह था होल्डर । यह होल्डर शब्द अ