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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

अर्द्धरात्रि में काली पूजा, दीपावली में काली पूजा क्यों होता है? जानिए इसके महत्व और काली पूजा के लाभ | kali mata story in hindi

काली पूजा को हिन्दू धर्म में मां काली की पूजा के रूप में मनाया जाता है। काली पूजा का आयोजन विभिन्न तिथियों पर किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश लोग इसे अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाते हैं। यह तिथि भारतीय पंचांग के अनुसार होती है और साल के अलग-अलग महीनों में पड़ती है।


काली पूजा के लिए विशेष समय भी निर्धारित किया जाता है, जिसे "रात्रि विद्या" कहा जाता है। रात्रि विद्या का समय रात के 10 बजे से पूर्व समय माना जाता है। यह समय काली माता की ऊर्जा और शक्ति के साथ जुड़ा होता है और इसलिए इस समय पूजा करने से मां काली की कृपा प्राप्त होने की मान्यता होती है।


काली पूजा के दौरान पूजा स्थल को धूप, दीप, फूल, बेल पत्र, अर्चना सामग्री आदि से सजाया जाता है। पूजा के दौरान मां काली के मंत्र, चालीसा और भजन गाए जाते हैं और विशेष भोग भी चढ़ाए जाते हैं। विधि और तिथि की अधीनता के लिए स्थानीय पंडित या पूजारी से संपर्क करना उचित होगा, क्योंकि वे स्थानीय आदतों और परंपराओं के अनुसार अनुशासित होते हैं।

काली की पूजा करने से क्या होता है (What happens by worshiping Kali)

काली की पूजा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पूजा है जो मां काली को समर्पित होती है। काली मां शक्ति की देवी के रूप में जानी जाती है और उनकी पूजा से भक्तों को उनकी कृपा मिलती है।

काली की पूजा करने से आप अनेक लाभ प्राप्त कर सकते हैं जैसे कि:

आध्यात्मिक उन्नति: काली की पूजा आध्यात्मिक उन्नति में मदद करती है। यह पूजा आपकी मनोदशा को स्थिर रखने में मदद करती है और आपको शक्ति के साथ अपने जीवन के मुश्किल समयों से निपटने में मदद करती है।

शुभ प्रभाव: काली की पूजा से शुभ प्रभाव प्राप्त होता है। यह पूजा आपको खुशहाल जीवन और आरोग्य के लिए बढ़िया सलाह मिलती है।

सुरक्षा: काली की पूजा से आपको भय के महसूस होने से बचाने में मदद मिलती है। यह पूजा आपको अपने जीवन के दुश्मनों से बचाने में मदद करती है और आपको सुरक्षित रखती है।

समृद्धि: काली की पूजा से आपको धन समृद्धि मिल सकती है। यह पूजा आपको अपने सफलता की राह खोल देती है.

काली पूजा कब करनी चाहिए (When should Kali Puja be performed)

काली पूजा कई तरह से की जा सकती है जैसे नवरात्रि के दौरान, अमावस्या के दिन, जब भी आपको इच्छा हो आदि। यह आपके व्यक्तिगत उद्देश्यों और विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

काली पूजा अमावस्या के दिन अधिक फलदायी मानी जाती है, इसलिए अमावस्या के दिन काली मां की पूजा करना उत्तम माना जाता है। कुछ लोग नवरात्रि के दौरान काली पूजा करते हैं, जो वर्ष में दो बार होता है। इसके अलावा, आप जब भी महसूस करें कि आपको काली मां की आवश्यकता है, आप कभी भी उनकी पूजा कर सकते हैं।

लेकिन, यदि आप काली मां की पूजा करने जा रहे हैं, तो इससे पहले आपको इसके बारे में अधिक जानकारी हासिल करनी चाहिए और स्थानीय पंडित से सलाह लेनी चाहिए।

काली की पूजा कैसे करनी चाहिए (How to worship Kali)

काली माँ की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाना चाहिए:

अपने मन को शुद्ध रखें: काली माँ की पूजा से पहले अपने मन को शुद्ध रखना बहुत आवश्यक है। आप इसके लिए ध्यान योग या प्रार्थना कर सकते हैं।

पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को धुले हुए और साफ सुथरे रखें। एक पूजा मंडप बनाएं और उसमें काली माँ की मूर्ति रखें।

सामग्री का अर्पण: काली माँ की पूजा के लिए लाल फूल, धूप, दीप, अक्षत, फल आदि की सामग्री का अर्पण करें।

पूजा आरंभ करें: पूजा आरंभ करने के लिए अपने मन में शुद्धता के साथ काली माँ की आराधना करें। धूप जलाएं और दीपक रोशन करें।

मंत्र जप करें: काली माँ की पूजा के दौरान उनके मंत्रों का जप करना बहुत महत्वपूर्ण है। "ॐ क्रीं कालिकायै नमः" यह मंत्र काली माँ के मंत्रों में सबसे प्रसिद्ध है। आप इसे जप कर सकते हैं या फिर काली माँ के दूसरे मंत्रों का भी जप कर सकते हैं।

प्रसाद बांटें: पंडित को भोजन कराये.

काली पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है (What is the auspicious time for Kali Puja)

काली पूजा के लिए शुभ मुहूर्त तिथि और समय के आधार पर अलग-अलग होते हैं। अक्टूबर या नवंबर में आने वाले अमावस्या को काली पूजा के लिए शुभ माना जाता है।

अगले कुछ वर्षों में काली पूजा के शुभ मुहूर्त के तिथि निम्न हैं:

2023 में, काली पूजा 29 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

2024 में, काली पूजा 16 नवंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

2025 में, काली पूजा 6 नवंबर, गुरुवार को मनाई जाएगी।

इसके अलावा, पूरे वर्ष में मासिक अमावस्या के दिन भी काली पूजा के लिए शुभ माना जाता है। इसलिए, काली पूजा करने से पहले आपको पंचांग या ज्योतिषी की सलाह लेना चाहिए, ताकि आप शुभ मुहूर्त और तिथि के बारे में जान सकें।

अमावस्या काली पूजा (Amavasya Kali Puja)

अमावस्या को काली पूजा के लिए शुभ माना जाता है। अमावस्या के दिन काली पूजा करने से काली माँ अपनी कृपा बनाए रखती हैं और भक्तों के मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अमावस्या के दिन यह पूजा करने से भी उतनी ही फलदायी होती है, जितनी किसी अन्य दिन।

काली पूजा के दौरान भक्त श्मशान में जलती हुई लकड़ियों से भव्य आवरण तैयार करते हैं जिसे "पंच-मकार" कहते हैं। यह आवरण लकड़ियों, मशालों, ताम्बे के दिए, ताम्बे की पात्रियों, खुर्चियों और सूखे फूलों से बना होता है।

इसके अलावा, काली पूजा के दौरान धूम्रपान, दीपदान और कपूर धुनने का भी प्रचलन होता है। भक्त चावल, पूरी, हलवा, स्वीट्स और फल का भोग भी लगाते हैं।

अमावस्या के दिन काली पूजा करने के लिए आपको पूजा सामग्री, मंत्र और अनुष्ठान के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए। आप अपने शुभचिंतक, परिवार के सदस्यों या पंडित जी से भी सलाह ले सकते है.

काली पूजा सामग्री (Kali Puja Ingredients)

काली पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की जरूरत होती है:

काली मूर्ति - काली माँ की मूर्ति पूजन के लिए आवश्यक होती है।

धूप और दीप - काली माँ की पूजा में धूप और दीप लगाने की परंपरा होती है। धूप के लिए कपूर और गुग्गुल जलाया जाता है और दीप के लिए तेल या घी का उपयोग किया जाता है।

पंचामृत - पंचामृत भक्तों को पूजा के दौरान चढ़ाया जाता है। पंचामृत का उपयोग दूध, दही, शहद, घी और तुलसी के पत्तों से बनाया जाता है।

फूल - काली माँ की पूजा में फूल लगाए जाते हैं। कुछ प्रमुख फूल जैसे की गुलाब, चमेली, मोगरा और शंखपुष्प इस पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं।

फल और स्वीट्स - काली माँ को भोग लगाने के लिए फल और स्वीट्स का उपयोग किया जाता है।

पंचमकार - पंचमकार के रूप में शंख, मछली, मांस, ज्ञान और विनियोग की पदार्थों का उपयोग किया जाता है।

इसके अलावा, कुछ लोग अपने योग किया करते है.

काली पूजा मंत्र (Kali Puja Mantra)

काली माँ की पूजा में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण किया जाता है:

काली मंत्र: "ॐ क्रीं कालिकायै नमः" (Om Kreem Kalikayai Namah)

काली बीज मंत्र: "ॐ ह्रीं कालिकायै नमः" (Om Hreem Kalikayai Namah)

काली कवच मंत्र

काली कवच हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध मंत्र है जो देवी काली की स्तुति एवं रक्षा करता है। यह कवच विभिन्न विधियों से उच्चारित किया जाता है जो देवी काली की कृपा को प्राप्त करने के लिए होता है।

यहां नीचे काली कवच का एक उदाहरण दिया गया है:

ॐ ह्रीं कालिकायै नमः। ओं जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते। ॐ महा काल्यै च विद्महे स्मशान वासिन्यै च धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात।

इस मंत्र का उच्चारण करने से देवी काली की कृपा होती है जो हमें भयानक स्थितियों से बचाती है। यह मंत्र स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि को भी देता है और हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करता है।

काली पूजा विधि (Kali Puja Method)

काली पूजा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पूजा है जो देवी काली की पूजा एवं अर्चना करती है। काली पूजा की विधि निम्नलिखित हैं:

शुभ मुहूर्त चुनें: काली पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करें। शुभ मुहूर्त के अनुसार पूजा का समय निर्धारित करें।

स्नान करें: पूजा से पहले स्नान करें और शुद्ध हो जाएं।

पूजा स्थल की तैयारी: पूजा के लिए एक स्थान चुनें जहां शांति हो। स्थान को साफ-सफाई करें और देवी काली के लिए एक छत्र या अलंकार लगाएं।

पूजा सामग्री की तैयारी: पूजा के लिए विभिन्न सामग्री की तैयारी करें जैसे कि फूल, दीपक, धूप, अखंड ज्योति, नैवेद्य, पुष्प, बिल्वपत्र, हल्दी, कुमकुम, कपूर, गंगाजल आदि।

पूजा का आरंभ: पूजा का आरंभ करने से पहले देवी काली के सामने बैठ जाएँ और उसे मन से आराधना करें। फिर पूजा के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सामग्री का उपयोग करें।

आरती: पूजा काली आरती हिंदू धर्म में काली माता की पूजा के दौरान गाई जाती है। काली आरती को रोजाना पूजा के अंत में गाया जाता है। काली आरती के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:

दीपक जलाएं: पूजा के अंत में एक दीपक जलाएं।

काली माता को ध्यान में रखें: दीपक के सामने बैठकर काली माता को ध्यान में रखें।

गीत गाएं: काली आरती के गाने को शुरू करें।

थाली पर दीपक घुमाएं: काली आरती के दौरान थाली पर दीपक घुमाएं।

आरती का गाना करें: काली आरती के गाने को गाते हुए दीपक की आरती करें। आरती के दौरान भक्तजन वृंद आरती के गीत को गाते हुए थाली के चारों ओर घुमते हैं।

फूलों का अर्पण: आरती के अंत में फूलों को देवी काली के चरणों पर अर्पण करें।

दीपक बुझाएं: आरती के बाद दीपक को बुझा दें।

प्रसाद बाँटें: आरती के बाद प्रसाद बाँटें और अपने सम्पूर्ण भावों को काली माता की आराधना में समर्पित करें।

काली पूजा कब है (When is Kali Puja)

काली पूजा हिंदू धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन भगवती काली की पूजा की जाती है और उन्हें नैवेद्य और धूप-दीप चढ़ाया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन कई लोग विभिन्न विधियों से व्रत भी रखते हैं। इस दिन को काली पूजा के रूप में भी जाना जाता है जो कि काली माता के भक्तों द्वारा ध्यान और पूजा के द्वारा मनाई जाती है।

काली पूजा के लाभ (Benefits of Kali Puja)

काली पूजा करने से अनेक लाभ होते हैं। कुछ लाभों की एक सूची निम्नलिखित है:

सफलता: काली पूजा करने से सफलता प्राप्ति होती है। यह भगवती काली की अनुग्रह व आशीर्वाद से होता है।

सुख शांति: काली पूजा से सुख और शांति मिलती है। इससे अत्यधिक चिंता, तनाव और दु:खों से छुटकारा मिलता है।

संतान प्राप्ति: काली पूजा करने से संतान प्राप्ति में सहायता मिलती है।

रोग निवारण: काली माता की कृपा से काली पूजा करने से बीमारी और रोगों से निवारण मिलता है।

अन्य लाभ: काली पूजा करने से व्यक्ति को विवेक, बुद्धि, उत्साह, ताकत, सहनशीलता और समझदारी की अधिकता मिलती है। इसके अलावा व्यक्ति को नेतृत्व, संघर्ष, संगठन और नैतिकता की क्षमता मिलती है।

इसलिए, काली पूजा करने से व्यक्ति को बहुत सारे लाभ मिलते हैं जो उन्हें उनकी जीवन की समस्याओं का समाधान प्रदान करते हैं।

माँ काली के टोटके (Maa Kali's Tricks)

माँ काली के टोटकों का उपयोग उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ये टोटके विभिन्न प्रकार के होते हैं और कुछ अत्यंत उपयोगी होते हैं। नीचे कुछ माँ काली के टोटकों की एक सूची दी गई है:


अमुक दुख सहन न कर पाने के लिए टोटका: इस टोटके को रात्रि में ११ बजे आरती के बाद लिखकर घी से उत्तेजित करके माँ काली की मूर्ति के सामने रखें। इसे करने से अमुक दुख सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है।


काली मंत्र साधना टोटका: इस टोटके को काली मंत्र के साथ संयुक्त रूप में किया जाता है। इसके लिए व्यक्ति को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होता है जैसे मंत्र उच्चारित करते समय स्वस्थ होना चाहिए। इस मंत्र साधना के बाद माँ काली व्यक्ति को सुरक्षा और सुख देती हैं।


आज्ञा देने वाला टोटका: इस टोटके को माँ काली की आराधना के समय किया जाता है। इसके लिए व्यक्ति को माँ काली की मूर्ति के सामने बैठकर आज्ञा मंत्र का जप करना


दिवाली 2023: भारत के ज्यादातर राज्यों में दिवाली की अमावस्या के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस मौके पर मां अर्द्धरात्रि में काली पूजा की जाती है.  यह पूजा आधी रात को की जाती है।  आखिर क्यों और कैसे होती है काली पूजा, जानिए इसका महत्व।


काली पूजा क्यों करते हैं?  


राक्षसों का वध करने के बाद भी, जब महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ, तो भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए।  भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया।  इसी की याद में उनके शांत स्वरूप लक्ष्मी की पूजा शुरू हो गई, वहीं इस रात को उनके उग्र रूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है.


काली पूजा का क्या महत्व है? 


 दुष्टों और पापियों का नाश करने के लिए देवी दुर्गा ने मां काली के रूप में अवतार लिया था।  मान्यता है कि मां काली की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।  शत्रुओं का नाश होता है।  कहते हैं मां काली की पूजा करने से कुंडली में बैठे राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं. अधिकतर जगहों पर तंत्र विद्या साधना के लिए मां काली की पूजा अर्चना की जाती है।


काली पूजा कैसे की जाती है?  


1. मां काली की दो तरह से पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा।  सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है।  

2. माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेल के पत्ते और माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है।  इसके साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जियां और अन्य व्यंजन भी मां को अर्पित किए जाते हैं.  पूजा की इस पद्धति में सुबह और रात के उपवास में भोग, होम-हवन और पुष्पांजलि आदि शामिल हैं।

Kaali web series

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माँ काली की अलग-अलग बहुत सारे कहानिया पढ़ने को मिलती है। लेकिन आज उनमे से एक story ऐसा है जिनमे  पुराणों में वर्णित Maa Kali Ki Katha का वर्णन देखने को मिलता है हम उसी के बारे में बताने जा रहे है ।

काली माँ का दिन

शुक्रवार के दिन देवी काली की पूजा की जाती है जिसमे लाल या गुलाबी वस्त्र धारण करके किया भी जाता है और करना भी चाहिए। देवी के पास गुग्गल की धूप अवश्य जलाना चाहिए और पूजा में लाल गुलाब के फूल ही चढ़ाना बढ़िया माना जाता है । महा देवी काली की पूजा में लाल या काली वस्तुओं का खांस  महत्व दिया जाता है। इस नाते उनकी पूजा में चढ़ावा इस रंग का होना जरुरी होता है।



महाकाली कौन है?


उनकी त्वचा बहुत काली है, उनकी आभूषण खोपड़ी का एक लंबा हार होता है और उनके कई हाथ रहते है। उनकी जीभ गर्म खून के लिए तत पर रहती थी और बाहर लटकी हुई है।


महाकाली की उत्पत्ति कैसे हुई?


रक्तबीज नामक एक राक्षश था,उसे ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त हुआ था, जिसको यह भी वरदान मिला की युद्ध में अगर उसका शरीर कही कट जाए तो उसके गिरे हुए रक्त से भी हजारो के तादात में राछश उतपन्न हो जाते थे उसी वक्त उसको यह भी उसे बताया गया था की उसे स्त्री के आलावा कोई अन्य ब्यक्ति  मार नहीं सकता था।

 उसके खून की एक बूँद ज़मींन पर गिरे तो अनेक और रक्तबीज राक्षश उतपन्न हो जायेगे। उसने देवताओ और राजा महाराजा पर अत्याचार करके तीनो लोको में हड़कंप मचा दिया था।

देवता इस वरदान के कारण रक्तबीज को मारने में नाकाम हो जाते  थे। युद्ध के मैदान में, जब देवता उसे मारते थे, तो उसके खून की हर बूंद जो जमीन पर गिरती है, तो अनेक और अधिक शक्तिशाली रक्त बीज बन जाते है, और पूरे युद्ध के मैदान में  करोडो रक्त बीज के साथ युद्ध करना पड़ता था।

मां भवानी ने कैसे किया रक्तबीज का वध


उसके बाद निराश होकर देवताओं ने भगवन शिव से मदद के लिए गए। लेकिन भगवान शिव उस समय गहरे ध्यान में थे, देवताओं ने मद्द्त के लिए तब जाकर उनकी पत्नी पारवती की तरफ रुख किया। देवी ने तुरंत देवताओ का निवेदन सुन लिया वे उन्होंने तत्काल काली का रूप धारण किया और उस खूंखार दानव से युद्ध करने के लिए निकल पड़ती है।



महाकाली ने रक्तबीज को कैसे मारा?


माता से युद्ध करते समय जैसे ही उसे मारती तो रक्तबीज उसके शरीर से एक भी बूंद धरती पर गीरता तो एक नया शक्तिशाली  रक्तबीज उत्पन्न होने लगा था। 

उस वक्त माता ने अपनी जीभा को बड़ा कर लिया और फिर रक्तबीज का जैसे ही रक्त गिरता, तो वह माता के जीभा में गिरता, ऐसे लड़ाई करते करते रक्त बीज धीरे धीरे वह कमज़ोर होने लगा, फिर माँ ने उसका वध कर दिया।


-माँ  महा काली जी ने भगवन शिव जी के ऊपर पैर क्यों रखा था?

महाकाली रक्तबीज वध


रक्तबीज का वध करने के बाद महाकाली माता का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। जैसे की माने उसका सारा क्रोध माता के अन्दर आ गया हो उनके अति विक्राल स्वरुप के सामने आने से सब लोग डरने लगे थे और उनके सामने जो भी आता उनका विनाश तय हो जाती थी,उनको स्वयं ही नहीं पता लगता था की वह क्या कर रही थी। 

महाकाली का क्रोध कैसे शांत हुआ?


यह सब देखकर देवताओ की चिंता बढ़ने लगी की महाकाली माता का गुस्सा अब कैसे शांत किया जाय। तब जाकर सम्पूर्ण देवताओ ने  महादेव के पास  गए और उनसे विनंती करने लगे उसके बाद mahakali माता को शांत करने के मार्ग पूछने लगे। तब भगवन शिव स्वयं अनेक उपायों को आजमाने के बाद भी  पर माँ काली शांत न हो सके।

अंत में शिव जी ने खुद आगे जाकर जमींन पर लेट गए माता  काली का पैर जब भोले नाथ के ऊपर पड़ा तो जैसे ही माता को शिवजी का स्पर्श हुआ। माता शांत हो गई, और महाकाली से पारवती बन जाती है। फिर सारे देवतागण जयजयकार लगाने लगते है।

माँ काली की कहनी कैसा लगा हम आशा करते है आपको अच्छी लगी होगी यह छोटा story जानने के लिए आपका धन्यवाद।

जय माँ काली।


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