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पचीस गाँव की कहानी जब बौद्धधर्म का बोलबाला था
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देवव्रत ने महंत को प्रलोभन दिया था कि मगध पर उसका अधिकार होते ही , वह एक चौथाई भाग उन्हें दे देगा । भद्रबाहु इससे अनजान थे । वह बौद्धधर्म के महंतों और प्रचारकों को पूरा सम्मान देते इसके विपरीत माधवाचार्य दबी जबान से भद्रबाहु को धर्मनाशक कहने लगे थे । पड़ोसी राजा देवव्रत की प्रशंसा करके अपने अनुयाइयों को भड़काने लगे थे ।
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एक दिन उन्होंने मगधपति के पास पत्र भेजा ' महाराज , आप मुझे पचीस गाँव भेंट में दें , ताकि वहाँ की आय से मठ और धर्म की रक्षा की जा सके । ' " धर्म की रक्षा करना सिर्फ मठाधीशों का काम नहीं , राजा का भी काम होता है । अतः एक गाँव भी नहीं दिया जा सकता ।
पचीस गाँव देकर हम अपने ही राज्य में एक छोटे राज्य का निर्माण नहीं होने देना चाहते । " - कुमार प्रियदत्त ने राजा भद्रबाहु को परामर्श दिया । मगधपति का यह उत्तर पाकर , महंत माधवाचार्य बिगड़ उठे । उन्होंने अपने शिष्यों , अनुवाइयों और धर्माध जनों से तोड़ - फोड़ करने और लगान न देने को कहा । भद्रबाहु रक्तपात न होने देने के डर से महंत की बात मानने को तैयार हो गए ।
किंतु कुमार प्रियदत्त ने उनके इस निश्चय का विरोध किया । कहा " पिता श्री , आज आप भयभीत होकर एक मठाधीश की बात मानने -जा रहे हैं , जिसका चरित्र संदिग्ध है । कल अन्य मठाधीश भी अलग अलग भूखंडों की माँग करने लगें , तो राज्य टुकड़ों में बँट जाएगा ।
हमें धर्म को मानना है , पर धर्म के पीछे इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए कि स्वयं को कमजोर कर लिया जाए । अगर हम मजबूत होंगे , तभी हमारा धर्म फैलेगा । हम कमजोर होंगे , तो धर्म हमसे छिन जाएगा । " " तो पुत्र , तुम राज्य में शांति की स्थापना करो । " राजा ने कहा । राजकुमार प्रियदत्त कुछ सैनिकों के साथ पूर्वी अंचल की ओर चल पड़ा । वहाँ पहुँचकर वह दंग रह गया । महंत माधवाचार्य अपने शिष्यों के साथ पड़ोसी राजा देवव्रत के संरक्षण में खड़े थे । देवव्रत के सैनिक मगध की ओर बढ़ना चाहते थे ।
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देवव्रत ने दूत भेजकर कहलाया " प्रियदत्त , अगर तुम अहिंसा को मानते हो , तो बिना रक्त - पात व युद्ध के , मुझे पचास गाँव देकर लोट जाओ । उसमें से बारह गाँव में महंत माधवाचार्य को धर्मप्रचार हेतु दे . दूँगा । ” प्रियदत्त ने कहला भेजा ' अहिंसा और धर्म के नाम पर तुम मगध पर अधिकार नहीं कर सकते । ' प्रियदत्त की सेना आगे बढ़ी ।
उसका रणकौशल देख , देवव्रत की सेना पीछे हट गई । महंत माधवाचार्य पकड़े गए । - राजा भद्रबाहु ने महंत से कहा ' मुझे दुःख है कि आप धर्म के नाम पर देश को कमजोर करने में लगे हुए थे । धर्म और अहिंसा के नाम पर देश को टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता । " माधवाचार्य लज्जित होकर क्षमा माँगने लगे । राजा भद्रबाहु ने राजकुमार प्रियदत्त को उसके साहस पर बधाई दी ।
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