उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय
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पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। इस बार rukmini ashtami 27 दिसंबर को मनाई जा रही है। रुक्मिणी मां लक्ष्मी का अवतार हैं। वह श्रीकृष्ण की प्रमुख पत्नियों में से एक थीं और विदर्भ के राजा भीष्मक की बेटी थीं। krishna rukmini और राधा जी का भी जन्म अष्टमी को हुआ था। यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं में अष्टमी को शुभ माना जाता है।
rukmini maitra
कृष्ण रुक्मिणी विवाह
रुक्मिणी के पिता भीष्मक चाहते थे कि उसका विवाह शिशुपाल से हो, लेकिन rukmini devi ने श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। शिशुपाल से विवाह के दिन रुक्मिणी पूजा के लिए मंदिर गई थीं, जहां से श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर उन्हें अपने रथ में द्वारका ले गए और देवी से विवाह किया। श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कामदेव बने, इसलिए अष्टमी के दिन उनकी पूजा करें।
महत्व:
rukmini ashtami के दिन देवी की पूजा करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति की वृद्धि होती है। संतान का जन्म भी होता है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के साथ देवी की पूजा करने से जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
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पौराणिक शास्त्रों में rukmani को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी रुक्मणी भगवान कृष्ण की आठ पत्नियों में से एक थीं। वह विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। वह लक्ष्मी की वास्तविक अवतार थीं। रुक्मणी का भाई चाहता था कि वह शिशुपाल से शादी करे, लेकिन देवी रुक्मणी श्रीकृष्ण की भक्त थीं, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को अपना सब कुछ स्वीकार कर लिया था।
जिस दिन उसका विवाह शिशुपाल से होने वाला था, उस दिन देवी रुक्मिणी अपनी सहेलियों के साथ मंदिर गई और पूजा करने के बाद, जब वह मंदिर से बाहर आई, तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उसे अपने रथ में बिठा लिया और द्वारका के लिए रवाना हुए। और उससे शादी कर ली।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था, राधा जी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ था और रुक्मणी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ था। इसलिए अष्टमी तिथि को हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। यह व्रत घर में धन-धान्य की वृद्धि और रिश्तों में प्रगाढ़ता लाता है और संतान को सुख भी देता है। प्रद्युम्न कामदेव के अवतार थे, वे श्रीकृष्ण और रुक्मणी के पुत्र थे। इस दिन उनकी पूजा करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
1. अष्टमी के दिन प्रातः स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी की मूर्ति को किसी स्वच्छ स्थान पर स्थापित कर दें।
2. दक्षिणावर्ती शंख में स्वच्छ जल भरकर अभिषेक करें।
3. इसके बाद कृष्ण जी को पीले वस्त्र और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
4. कुमकुम से तिलक करें और हल्दी, इत्र और फूल आदि से पूजा करें।
5. अभिषेक करते समय कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करते रहें।
6. दोनों को तुलसी मिश्रित खीर खिलाएं।
7. गाय के घी का दीपक जलाएं, कपूर से आरती करें। शाम को फिर पूजा-आरती के बाद फलाहार ग्रहण करें।
8. रात्रि जागरण करें और लगातार कृष्ण मंत्रों का जाप करें।
9. अगले दिन नवमी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत पूर्ण करें और फिर स्वयं ही पारन करें।
10. रुक्मणी अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के साथ देवी रुक्मणी की पूजा करने से जीवन सुखी होता है और जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
1. rukmini ashtami के दिन: जल्दी उठने वाला व्रत व्रत और संकल्प लें।
2. चौकी पर रखवाली करने वाले और श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें।
3. पूजा में दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर प्रार्थना करें। श्री कृष्ण रंग और लाल रंग को स्पर्श करें।
4. को कुमकुम और देवी को सिंघ्य और सभी रोगाणु, रोगाणु और फूल रोग।
5. पूजा में तुलसी व खीर का दीपक जलाएं और कर्पूर की आरती करें। शाम के समय: पुरु-आरती द्वारा फलाहार लें।
6. इस रात रात्रि जागरण। अगले दिन नवमी को व्रत पूर्ण करें, तत्पश्चात व्रत का पारण करें।
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रुक्मिणी की पूजा:
रुक्मिणी देवी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं और कृष्ण भगवान की पत्नी थीं। हिंदू धर्म में रुक्मिणी देवी की महिमा का वर्णन भगवत पुराण में भी किया गया है। इसके बावजूद, रुक्मिणी देवी की पूजा बहुत कम होती है और यह इस बात से नहीं है कि उनकी महत्वता कम होती है।
इसके बजाय, रुक्मिणी देवी को कृष्ण भगवान की पत्नी के रूप में पूजा जाता है। भगवान कृष्ण की पूजा विभिन्न तरीकों से की जाती है, जिसमें रुक्मिणी देवी की उपस्थिति भी होती है। इसलिए, रुक्मिणी देवी की पूजा वैदिक धर्म में नहीं होती, लेकिन वे भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में महत्वपूर्ण हैं और उन्हें भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
रुक्मिणी का जन्म महाभारत काल में हुआ था। वह विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक की कन्या थीं। भगवान कृष्ण ने उसकी सुंदरता के बारे में सुना था और उन्हें देखने के लिए उनके साथ अपने दोस्त बलराम जी के साथ विदर्भ राज्य गए। वहां पहुंचकर वे रुक्मिणी से मिलने के लिए उसके समीप गए और उससे प्रेम करने लगे। रुक्मिणी भी उन्हें पसंद करती थी लेकिन उसके पिता ने उसकी शादी अपनी मरजी से फिरोजाबाद नामक राजकुमार सिशुपाल से कर दी।
कृष्ण ने इसके बाद रुक्मिणी को उस रात के अंत में भगवान विष्णु के मंदिर में मिला लिया था और उन्होंने उसे भगवान कृष्ण के साथ शादी करने के लिए भागने के लिए कहा था। रुक्मिणी ने उसके कहने पर उसके साथ भागने का फैसला किया और उन्होंने एक रथ पर बैठकर भागना शुरू कर दिया। भगवान कृष्ण और उनके दोस्त बलराम जी ने उन्हें रथ से उतारा और उन्हें अपनी पत्नी बनाया था। इसी तरह से, रुक्मिणी और कृष्ण का मिलन हुआ था.
रुक्मिणी और राधा दोनों ही हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण वैष्णव स्त्रियाँ हैं। दोनों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं:
रुक्मिणी: रुक्मिणी महाभारत काल में विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक की कन्या थीं और भगवान कृष्ण की पत्नी थीं। भगवान कृष्ण ने उनसे उनके स्वयंवर में मिलने की इच्छा जाहिर की थी लेकिन उन्हें सिशुपाल नाम के राजकुमार से विवाह कर दिया गया था। भगवान कृष्ण ने उन्हें भगवान विष्णु के मंदिर से भगा लिया था।
राधा: राधा कृष्ण की विशिष्ट भक्त और साथी थीं जो उन्हें उनकी बल और भक्ति के प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। वे भगवान कृष्ण के साथ वृंदावन में रहतीं थीं और उन्होंने अपनी पूरी जीवन का समर्पण भगवान कृष्ण को किया था। उनके नाम से अनेक कथाएं, कविताएं, और संगीत गए गए हैं।
यद्यपि दोनों के बीच कुछ अंतर हैं, लेकिन वे दोनों ही भगवान कृष्ण की प्रिय स्त्री हुयी.
रुक्मिणी और राधा दोनों ही हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण वैष्णव स्त्रियाँ थीं।
रुक्मिणी महाभारत काल में विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक की कन्या थीं और भगवान कृष्ण की पत्नी थीं। भगवान कृष्ण ने उनसे उनके स्वयंवर में मिलने की इच्छा जाहिर की थी लेकिन उन्हें सिशुपाल नाम के राजकुमार से विवाह कर दिया गया था। भगवान कृष्ण ने उन्हें भगवान विष्णु के मंदिर से भगा लिया था।
वहीं, राधा कृष्ण की विशिष्ट भक्त और साथी थीं जो उन्हें उनकी बल और भक्ति के प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। वे भगवान कृष्ण के साथ वृंदावन में रहतीं थीं और उन्होंने अपनी पूरी जीवन का समर्पण भगवान कृष्ण को किया था। उनके नाम से अनेक कथाएं, कविताएं, और संगीत गए गए हैं।
यह कहानी पुराणों में मिलती है। एक दिन, माता लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु के पास गए और उनसे पूछा कि उनकी यह धरती पर नाम की प्रतिष्ठा कैसे सुधारी जा सकती है। भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि अगर वह उनकी विशिष्ट भक्त राधा को श्राप दे देती हैं तो उनका प्रतिष्ठा कम हो जाएगा। इसके बाद, माता लक्ष्मी ने राधा को एक श्राप दे दिया कि वह जन्म-जन्मांतर में मनुष्यों की वस्तुओं का उपभोग नहीं कर सकेंगी।
यह एक उपमहापुराण की कथा है जो विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी उल्लेखित है। इस कथा से स्पष्ट होता है कि भगवान के अधीन होने से भी भक्त का जीवन दुःख से मुक्त नहीं होता है और कुछ भगवत धर्म के शाखाओं में राधा को मानव जीवन से ऊपर माना जाता है।
हाँ, भगवान कृष्ण रुक्मिणी से प्यार करते थे। भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी के स्वयंवर में उसे हरण कर लिया था और फिर उसे अपनी पत्नी बनाया था। रुक्मिणी कृष्ण भक्त थी और उनकी भक्ति ने कृष्ण का मन जीत लिया था। इसके अलावा, रुक्मिणी कृष्ण की भक्ति भी थी और वह उनकी दिव्य लीलाओं में लीन रहती थी।
चलनी में अमृत एक हिंदी धारावाहिक है जो स्टार प्लस चैनल पर प्रसारित हुआ था। इसमें रुक्मिणी एक फिक्शनल कैरेक्टर है जो कि धारावाहिक की मुख्य नायिका का नाम है। रुक्मिणी का चरित्र एक संयुक्त परिवार की बहुत अमीर बेटी को दर्शाता है जो अपने विवाह के बाद संजय राज के घर में शादी के रिश्ते को खत्म करने के लिए आती है।
रुक्मिणी और भगवान कृष्ण के पुत्र का नाम प्रद्युम्न था। प्रद्युम्न भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे और उनके अन्तर्जात वध के बाद उन्होंने पुन: जन्म लिया था। प्रद्युम्न अपने महाबली रूप और अस्त्र-शस्त्र के प्रवीणता के लिए भी जाने जाते हैं। वे महाभारत काल में एक महत्वपूर्ण राजनायिक थे और द्वापर युग में उनकी भविष्यवाणियों का भी उल्लेख किया गया है।
हिंदू धर्म के अनुसार, सत्यभामा भगवान कृष्ण की पत्नी थीं और उनकी अष्टभयों में से एक थीं। वेद-पुराणों के अनुसार, सत्यभामा भूमि की राजकुमारी थीं और उन्होंने भगवान कृष्ण के साथ विवाह किया था। सत्यभामा भगवान कृष्ण की प्रिय पत्नी भी थीं और वे द्वारका में रहते थे। उनके पिछले जन्म के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है।
रुक्मिणी अष्टमी भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के अभिषेक के रूप में मनाई जाने वाली एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है। यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की अष्टमी को मनाया जाता है।
रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के मंदिरों में भक्तों द्वारा अभिषेक किया जाता है। भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी की मूर्तियों को बहुत सारे फूलों से सजाया जाता है और उन्हें खुशबूदार धूप दी जाती है। इस त्योहार के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और कथाओं का पाठ किया जाता है और भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है।
रुक्मिणी अष्टमी का उत्सव भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के अभिषेक के रूप में मनाया जाता है। अभिषेक भगवान के प्रतिमा को स्नान कराकर उसे सुगंधित तेल, दूध, चांदनी, फूल, दीपक आदि से सजाकर किया जाता है।
इस उत्सव को मनाने का मुख्य कारण यह है कि रुक्मिणी अष्टमी को भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के विवाह जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भगवान कृष्ण के जीवन के एक महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भक्तों को भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी का आशीर्वाद मिलता है और उन्हें धन, सुख, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है।
रुक्मिणी अष्टमी भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी के विवाह जयंती के रूप में मनाई जाती है। यह उत्सव भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष (2023) रुक्मिणी अष्टमी दिनांक 18 सितंबर को मनायी जाएगी।
रुक्मणी भगवान कृष्ण की पत्नी थीं और वे भीष्मक नाम के राजा उद्धवपुरी की बेटी थीं। भगवान कृष्ण ने रुक्मणी को अपनी पत्नी बनाया था जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं।
वैष्णव धर्म के अनुयायियों के अनुसार, राधा और रुक्मिणी दोनों ही भगवान कृष्ण की पत्नियां थीं। हालांकि, राधा को वैष्णव संप्रदाय की अधिपत्य देने वाले लोगों के अनुसार, वे भगवान कृष्ण की आध्यात्मिक शक्ति की प्रतिनिधि हैं। उनका जीवन भगवान कृष्ण के साथ उनकी आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी के संबंध में, रुक्मिणी को भगवान कृष्ण की पत्नी और लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।
भगवान कृष्ण की असली पत्नी रुक्मणी थीं। उन्होंने रुक्मणी से विवाह किया था और उनके साथ सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया था। हालांकि, कुछ पुराणों और कल्पनाओं में लिखा गया है कि भगवान कृष्ण ने अन्य भी कई पत्नियों से विवाह किए थे, जैसे सत्यभामा, जंबवती, कालिंदी, रुचिरा आदि।
रुक्मिणी माता को भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में स्वीकार किया जाता है और उन्हें अधिक सम्मान की जाती है। हालांकि, कुछ स्थानों पर रुक्मिणी माता की पूजा नहीं होती है। इसके पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, जैसे उनके स्थानीय महत्व की कमी, कुछ स्थानों पर रुक्मिणी माता की उपस्थिति के विवाद आदि। हालांकि, यह भी समझना जरूरी है कि हिंदू धर्म में हर देवी-देवता का अपना महत्व होता है और वे सभी समान रूप से पूजे जाते हैं।
रुक्मिणी और राधा दोनों ही भगवान कृष्ण की प्रिय पत्नियां थीं, लेकिन उनके पूजन में अंतर है।
रुक्मिणी भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी थीं, जो उनसे विवाह करने के लिए उन्हें भाग्यशाली बना दी थी। वे उत्तर प्रदेश के बटेरे गांव से थीं। रुक्मिणी माता को महाभारत काल से भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
वहीं, राधा भगवान कृष्ण की आध्यात्मिक प्रेमिका थीं, जो उनकी प्रेम लीलाओं और रासलीलाओं के बारे में जानती थीं। राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। राधा की पूजा मुख्य रूप से उत्तर भारत में होती है और उन्हें भगवान कृष्ण की परम प्रेमिका के रूप में पूजा जाता है।
रुक्मणी के पूर्व जन्म के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। रुक्मणी भगवान कृष्ण की पत्नी थीं और उन्हें विवाह के लिए भाग्यशाली बना दी गई थी। वे उत्तर प्रदेश के बटेरे गांव से थीं। रुक्मणी माता को महाभारत काल से भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
कृष्ण ने रुक्मिणी से शादी की उनके प्रेम के कारण। रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को देखा था और उनसे प्यार कर बैठी थी। उन्होंने अपने पिता भीष्मक से अपने विवाह के लिए भगवान कृष्ण का चुनाव किया था। लेकिन उनके भाई रुक्म कृष्ण से बैर रखते थे इसलिए रुक्मिणी को उनसे भागकर कृष्ण के पास जाना पड़ा था। भगवान कृष्ण ने उनकी सहायता की और उनसे शादी कर ली। इसीलिए रुक्मिणी को भगवान कृष्ण की पत्नी कहा जाता है।
राधा जी की जाति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। हिंदू धर्म में राधा जी भगवान श्रीकृष्ण की प्रियतमा थीं जिनके साथ उनकी अनंत लीलाएं हुआ करती थीं। राधा जी का जन्म स्थान वृंदावन माना जाता है। उन्हें पूरे भारत में देवी की तरह पूजा जाता है और उनकी लीलाओं के गाने और कथाएं लोगों को प्रेरणा देती हैं।
सुदामा जी हिंदू धर्म के एक महान भक्त थे जिनकी कहानी भगवान श्रीकृष्ण के साथ गुरु-शिष्य के रूप में जानी जाती है। उनका जन्म महाराष्ट्र के जोनार नामक गांव में हुआ था। वे बहुत गरीब थे और एक भिखारी के रूप में जीवन यापन करते थे। सुदामा जी के बहुत सारे उपदेश हैं जो आज भी मानवता के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं।
राधा एक पौराणिक व्यक्ति हैं जो हिंदू धर्म में विशेष रूप से कृष्ण भगवान के साथ संबंधों का प्रतीक हैं। यह सामान्य मान्यता है कि राधा शादीशुदा नहीं थीं, और कृष्ण के साथ उनके रिश्ते भावुक और आध्यात्मिक थे।
हिंदू धर्म के अनुसार, कृष्ण भगवान अनंत सत्य, अनंत ज्ञान और अनंत अनंद के स्रोत हैं, और उनके संबंधों का एक आध्यात्मिक रूप है। राधा भक्ति का प्रतीक होती हैं, जो उन्हें कृष्ण के समीप लाती हैं।
इसलिए, सामान्य रूप से माना जाता है कि राधा शादीशुदा नहीं थीं।