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उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय

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  उत्तर प्रदेश का सामान्य परिचय ,उत्तर प्रदेश भारत का एक राज्य है जो उत्तरी भारत में स्थित है। यह भारत का सबसे आबादी वाला राज्य भी है और गणराज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इसके प्रमुख शहरों में लखनऊ, आगरा, वाराणसी, मेरठ और कानपूर शामिल हैं। राज्य का इतिहास समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर है, और यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश का पहला नाम क्या है ,उत्तर प्रदेश का पहला नाम "यूपी" है, जो इसे संक्षेप में पुकारा जाता है। यह नाम राज्य की हिन्दी में उच्चतम अदालत के निर्देशन पर 24 जनवरी 2007 को बदला गया था। उत्तर प्रदेश की विशेषता क्या है ,उत्तर प्रदेश की विशेषताएं विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक स्थलों, और बड़े पैम्पस के साथ जुड़ी हैं। यह भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में अहम भूमिका निभाता है और कई प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का घर है, जैसे कि वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, और प्रयागराज। राज्य में विविध भौगोलिक और आधिकारिक भाषा हिन्दी है। यह भी भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है जो आबादी में अग्रणी है। इसे भी जाने उत्तर प्रदेश की मु

ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है | जगन्नाथ मंदिर का रहस्य क्या है

 जगन्नाथ मंदिर भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित है। यह मंदिर हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और भारत भर में प्रसिद्ध है।

इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर का आकार 400 फीट लंबा, 300 फीट चौड़ा और 200 फीट ऊँचा है। मंदिर के भीतर एक महान दीवार है, जो लगभग 20 फीट ऊँची है और इसमें 4 मुख्य द्वार हैं।

जगन्नाथ मंदिर के भीतर एक मंदिर है जो "विमान" के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है, जो लगभग 6 फीट ऊँची है। इसके अलावा, मंदिर में बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ भी हैं।

जगन्नाथ मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव रथ यात्रा है, जो हर साल जुलाई या अगस्त में मनाई जाती है। इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को रथ पर बैठाकर निकाला जाता हैं.

 अमरनाथ इतना प्रसिद्ध क्यों है अमरनाथ गुफा का रहस्य के बारे में 

  मान्यता है कि जब भगवान विष्णु अपने चारों लोकों में तीर्थ यात्रा पर जाते हैं तो वे हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने बद्रीनाथ में स्नान करते हैं।  पश्चिम में, वे गुजरात के द्वारका में कपड़े पहनते हैं।  पुरी में दोपहर का भोजन करें और दक्षिण में रामेश्वरम में विश्राम करें।  द्वापर के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पुरी में निवास किया और जगत के नाथ यानी जगन्नाथ बने।  पुरी जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है।  भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ यहां निवास करते हैं।

  हिंदुओं के 7 प्राचीन और पवित्र शहरों में से पुरी उड़ीसा के तट पर स्थित है।  जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार भगवान कृष्ण को समर्पित है।  बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर पूर्वी भारत में स्थित पवित्र शहर पुरी, उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है।  आज का उड़ीसा प्राचीन काल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था।  यहाँ देश के समृद्ध बंदरगाह थे, जहाँ जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और कई अन्य देश इन बंदरगाहों के माध्यम से व्यापार करते थे।

  पुराणों में इसे पृथ्वी का वैकुण्ठ कहा गया है।  यह भगवान विष्णु के चार निवासों में से एक है।  इसे श्री क्षेत्र, श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, शक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरी और श्री जगन्नाथ पुरी के नाम से भी जाना जाता है।  यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने विभिन्न लीलाएं कीं।  ब्रह्मा और स्कंद पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने यहां पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया और सबर जनजाति के सर्वोच्च देवता बन गए।  सबर के आदिवासी देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का स्वरूप आदिवासी देवताओं से मिलता जुलता है।  पहले आदिवासी लकड़ी से अपने देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते थे।  जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति के पुजारी के साथ-साथ ब्राह्मण पुजारी भी हैं।  ज्येष्ठ पूर्णिमा से लेकर आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी के सभी कर्मकांड किए जाते हैं।

पुराणों के अनुसार नीलगिरी में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है।  यहां पुरुषोत्तम हरि को भगवान राम का अवतार माना जाता है।  सबसे पुराने मत्स्य पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला हैं और यहां उनकी पूजा की जाती है।  रामायण के उत्तराखंड के अनुसार, भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ की पूजा करने के लिए कहा।  पुरी के श्री मंदिर में आज भी विभीषण वंदना की परंपरा जारी है।

  स्कंद पुराण में पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन मिलता है।  स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक दक्षिणी बेसिन खोल की तरह है और यह 5 कोस यानी 16 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है।  इसका लगभग 2 कोस बंगाल की खाड़ी में डूबा हुआ माना जाता है।  उनका पेट समुद्र की सुनहरी रेत है, जो महोददी के पवित्र जल में नहाया हुआ है।  महादेव द्वारा संरक्षित, पश्चिम में हेडलैंड है।  श्रोणि के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है।  माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का सिर महादेव के तट से चिपक गया था और यहाँ गिर गया था, तब से यहाँ महादेव की ब्रह्मा के रूप में पूजा की जाती है।  शंख के तीसरे क्षेत्र में मां विमला और पूंछ में रथ के सिंहासन पर भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं।

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मंदिर का इतिहास।  इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है।  कहा जाता है कि साबर जनजाति के विश्ववसु ने सबसे पहले नेलमाधव के रूप में उनकी पूजा की थी।  पुरी के मंदिरों में आज भी कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।

  राजा इंद्रद्युम्न ने यहां मंदिर बनवाया था।  इंद्रद्युम्न मालवा के राजा थे जिनके पिता का नाम भरत और माता का नाम सुमति था।  इंद्रद्युम्न ने सपने में जगन्नाथ के दर्शन किए थे।  कई ग्रंथों में इंद्रद्युम्न और उनके यज्ञ के बारे में विस्तार से लिखा गया है।  उन्होंने यहां एक बहुत बड़ा यज्ञ किया और एक सरोवर का निर्माण किया।  एक रात भगवान विष्णु ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और बताया कि नीलांचल पर्वत की गुफा में मेरी एक मूर्ति है, वह नेलमाधव कहलाती है।  एक मंदिर बनवाओ और उसमें मेरी इस मूर्ति को रख दो।  राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज के लिए भेजा।  उनमें से एक थे ब्राह्मण विद्यापति।

  विद्यापति ने सुना था कि सबरी कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की एक गुफा में छिपा दिया था।  वह यह भी जानता था कि साबर वंश के प्रमुख विश्ववसु नीलमाधव के उपासक थे और उन्होंने मूर्ति को एक गुफा में छिपा दिया था।  चतुर विद्यापति ने मुखिया की पुत्री से विवाह किया।  अंत में वह अपनी पत्नी के माध्यम से नीलमाधव गुफा तक पहुँचने में सफल रहा।  वह मूर्ति चुराकर राजा के पास ले आया।

अपने देवता की मूर्ति की चोरी से विश्ववसु को गहरा दुख हुआ।  भगवान भी अपने भक्त के दुख से दुखी हुए।  भगवान गुफा में लौट आए, लेकिन साथ ही राजा इंद्रद्युम्न से वादा किया कि वह एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे, इस शर्त पर कि वह एक दिन उनके लिए एक विशाल मंदिर का निर्माण करेंगे।  राजा ने मंदिर बनवाया और भगवान विष्णु को मंदिर में बैठने को कहा।  भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैरता एक बड़ा टुकड़ा ला रहे हो जो समुद्र में तैरता हुआ द्वारका से पुरी आ रहा है।  राजा के सेवकों को उस पेड़ का टुकड़ा मिल गया, लेकिन सब लोग मिलकर उस पेड़ को नहीं उठा सके।  तब राजा को एहसास हुआ कि उन्हें नीलमाधव के अनन्य भक्त सबरी कबीले के प्रमुख विश्ववसु की मदद करनी होगी।  विश्ववसु जब भारी लकड़ी उठाकर मंदिर में ले आए तो सभी हैरान रह गए।


  अब लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनाने की बारी थी।  राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश की, लेकिन कोई भी छड़ी पकड़ न सका।  तब तीनों लोकों के स्वामी विश्वकर्मा एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए।  उसने राजा से कहा कि वह नीलमाधव की मूर्ति बना सकता है, लेकिन साथ ही अपनी शर्त रखी कि वह 21 दिन में मूर्ति बना देगा और वह अकेला ही बना देगा।  इन्हें बनते हुए कोई नहीं देख सकता।  उनकी शर्त मान ली गई।  लोगों ने लगातार आरी, ब्लेड, हथौड़े की आवाज सुनी।  राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडिचा से रहा नहीं गया।  जब वह दरवाजे के पास पहुंचा तो उसे कोई आवाज नहीं सुनाई दी।  वह घबरा गया.  उसने जाना कि वह बूढ़ा कारीगर मर चुका है।  उसने तत्काल इसकी जानकारी राजा को दे दिया ।  अंदर में कोई भी आवाजे सुनाई नहीं दे रही थी, उस वक्त राजा को भी ऐसा ही लगा था। सारी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार कर दिए राजा ने जब कमरे का दरवाजे को खोलने के लिए आदेश दिया।


जैसे ही कमरा खोला गया, बूढ़ा गायब था, और 3 दोषपूर्ण मूर्तियाँ वहाँ पड़ी हुई पाई गईं।  भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे हाथ बने थे, लेकिन पैर नहीं थे, जबकि सुभद्रा के हाथ और पैर बिल्कुल नहीं बने थे।  इसे ईश्वर की इच्छा मानकर राजा ने इन अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया।  तभी से तीनों भाई-बहन इसी रूप में मौजूद हैं।


  वर्तमान मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था।  हालांकि इस मंदिर का निर्माण भी ई.पू.  यहां के मंदिर को तीन बार तोड़ा गया।  इसका जीर्णोद्धार ओडिशा के शासक अनंग भीमदेव ने 1174 ईस्वी में करवाया था।  मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थित हैं।

ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है (odisha mein jagannaath mandir kyon prasiddh hai)

जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है और यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु के एक रूप) को समर्पित है।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में हुआ था और इसे कई बार बनवाया गया। मंदिर में मुख्य रूप से कुछ प्रमुख भवन होते हैं जैसे कि जगन्नाथ मंदिर, बड़ा मंदिर और सुभद्रा मंदिर।

जगन्नाथ मंदिर का प्रतिष्ठापन हिंदू धर्म के चार महत्वपूर्ण धामों में से एक माना जाता है जिसे चार धाम यात्रा के दौरान दर्शाया जाता है। इसके अलावा, इस मंदिर की दीवारों में निहित रहस्यमय इतिहास और पौराणिक कथाएं भी इसे एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बनाती हैं।

जगन्नाथ मंदिर एक अद्भुत वास्तुकला का उदाहरण है जो हिंदू धर्म के विभिन्न आध्यात्मिक पहलुओं का विवरण करता है। यहाँ पर सालाना रथ यात्रा भी होती है जो देश और विदेश से आए लाखों भक्तों को आकर्षित करता हैं. 

जगन्नाथ पुरी मंदिर के पीछे की कहानी क्या है (jagannaath puree mandir ke peechhe kee kahaanee kya hai)

जगन्नाथ पुरी मंदिर के पीछे की कहानी बहुत प्राचीन है और इसके पीछे एक रोमांचक कथा है।

वैदिक काल में जगन्नाथ पुरी मंदिर के स्थान पर एक महत्वपूर्ण सन्यासी आश्रम था। उस समय, राजा इंद्रद्युम्न ने जगन्नाथ भगवान का प्रतिमा ढूंढने के लिए अपने पुरोहित बृहस्पति को भेजा था। बृहस्पति ने इस प्रतिमा को खोजने में सफलता हासिल की, लेकिन उसने एक शर्त रखी कि इस प्रतिमा को किसी व्यक्ति को देखने नहीं दिया जाएगा।

राजा इंद्रद्युम्न ने इस शर्त को मान लिया और उन्होंने भगवान विष्णु के शिलालेखों से जगन्नाथ भगवान की प्रतिमा को बनवाया। लेकिन जब प्रतिमा बनी, तो उसके आँखों में कुछ नहीं था। राजा इंद्रद्युम्न के पुरोहित बृहस्पति ने फिर एक शर्त रखी - अगले दिन सुबह तक कोई आँखों वाली प्रतिमा तैयार न होती तो उनकी सजा मृत्यु होगी।

रात के दौरान, भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ एक अद्भुत घटना हुई। 

जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं है (jagannaath mandir kee chhaaya kyon nahin hai)

जगन्नाथ मंदिर की छाया इसलिए नहीं होती है क्योंकि इस मंदिर में उपयोग की गई खंडग्रस्त स्थापत्य शैली ने इस बात का ध्यान रखा है कि सूर्य की किरणें मंदिर के भीतर तक पहुंच सकें।

जगन्नाथ मंदिर की छत पर स्थित शिखर और शिखर के नीचे स्थित छोटे-छोटे चट्टे सूर्य की किरणों को अंदर आने देते हैं और उन्हें छाँवा नहीं देते। इस मंदिर के भीतर जगन्नाथ भगवान की मूर्ति के साथ बाकी दो मूर्तियाँ होती हैं, जो बलभद्र और सुबद्रा को दर्शाती हैं। इन मूर्तियों के साथ संबंधित अन्य कई उत्सव भी होते हैं, जिसके दौरान इन मूर्तियों को बाहर निकाला जाता है ताकि उनकी छाया मंदिर के भीतर न पड़े।

इसके अलावा, एक और मान्यता भी है कि जगन्नाथ मंदिर में इतनी उच्चता नहीं होनी चाहिए जो छाया बनाने के लिए पर्याप्त हो। जगन्नाथ मंदिर की विशालकाय मूर्ति भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुबद्रा के लिए समर्पित है 

जगन्नाथ मंदिर की क्या मान्यता है (jagannaath mandir kee kya maanyata hai)

जगन्नाथ मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में स्थित है और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर की मान्यता है कि यह मंदिर भगवान जगन्नाथ के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है और इसे चार धामों में से एक माना जाता है।

इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था और यह मंदिर हिंदू धर्म के एक प्रमुख स्थल होने के साथ-साथ विश्व के सबसे बड़े रथ यात्रा और कार्तिक पूर्णिमा महोत्सवों के लिए भी जाना जाता है। मंदिर का नाम जगन्नाथ इसलिए है क्योंकि भगवान के अलावा इस मंदिर में भगवती सुभद्रा और भगवान बलभद्र भी पूजे जाते हैं।

इस मंदिर के अलावा, इसके बाहर दरगाह-ए-सलीम चिश्ती, मुक्तेश्वर मंदिर और सुंदरगोपाल मंदिर जैसे धार्मिक स्थल भी हैं।

जगन्नाथ पुरी की कहानी क्या है (jagannaath puree kee kahaanee kya hai)

जगन्नाथ पुरी ओडिशा, भारत के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां की मुख्य आकर्षण जगन्नाथ मंदिर है, जिसे भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर माना जाता है।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में हुआ था और इसे किंग अनंगभीम द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवती सुभद्रा, और भगवान बलभद्र की मूर्तियां होती हैं।

जगन्नाथ मंदिर का महत्व इस बात से जुड़ा हुआ है कि इस मंदिर में भगवान की मूर्तियों को हर साल रथ यात्रा के दौरान से नया अभिषेक करके बदला जाता है। इस रथ यात्रा के दौरान, लाखों लोग मंदिर के चारों तरफ एकत्र होते हैं और इस पर्व के दौरान जगन्नाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है।

इस प्रकार, जगन्नाथ पुरी का इतिहास धार्मिक एवं सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक आधार पर बहुत महत्वपूर्ण है और यह भारत की सबसे प्रसिद मंदिरो में से एक हैं.

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य क्या है (jagannaath mandir ka rahasy kya hai)

जगन्नाथ मंदिर के बारे में कुछ रहस्यों और कथाओं की मान्यताएं हैं, जो इस मंदिर के प्रति लोगों की रुचि और आकर्षण बढ़ाते हैं। कुछ इस प्रकार हैं:

मंदिर के प्रवेश द्वार: मंदिर के दक्षिणी दिशा में स्थित लियोन गेट नामक प्रवेश द्वार में किसी भी तरह के पशु-पक्षियों का प्रवेश नहीं होता है। इसका एक विशिष्ट कारण है कि जगन्नाथ मंदिर में पुरुष और स्त्रीयों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार होते हैं, और इस द्वार से पुरुष भक्तों का ही प्रवेश होता है।

देवताओं का भोजन: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब जगन्नाथ मंदिर के दरवाजे रात में बंद होते हैं, तो मंदिर के देवता भोजन करते हैं। इस भोजन को प्रसाद के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जिसे दर्शनार्थी लोग खाते हैं।

अदभुत स्वयंभू शिला: मंदिर में एक अदभुत स्वयंभू शिला है, जिसे देखने के लिए लोग जगन्नाथ मंदिर आते हैं। इस शिला का कहना है 

पुरी जगन्नाथ मंदिर के वैज्ञानिक रहस्य क्या हैं (puree jagannaath mandir ke vaigyaanik rahasy kya hain)

पुरी जगन्नाथ मंदिर एक धार्मिक स्थान होने के साथ-साथ एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व रखता है। कुछ वैज्ञानिक रहस्यों में शामिल हैं:

मंदिर का भव्य वास्तुकला: पुरी जगन्नाथ मंदिर का वास्तुकला अद्भुत है, जिसमें अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों और शैलियों का समन्वय है। मंदिर के वास्तुकला का विशेष रूप से शोध किया जाता है, जो उस समय के वास्तुकला के बारे में जानकारी देता है, जब यह मंदिर बनाया गया था।

विविध विद्युत चुंबकीय उत्पादन: मंदिर में उपयोग किए जाने वाले कुछ उपकरणों और उपसाधनों में विद्युत चुंबकीय उत्पादन का उपयोग किया जाता है। उनमें से एक है चामर, जिसे जगन्नाथ की पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है। चामर के रेतीसे में लकड़ी और कपड़ा शामिल होते हैं, जो उपयोग करते समय विद्युत चुंबकीय उत्पादन होता है।

मंदिर में अलग-अलग धातु का प्रयोग: मंदिर में अलग-अलग प्रकार से किया जाता हैं 

जगन्नाथ पुरी में एकादशी उल्टी क्यों लटकी है (jagannaath puree mein ekaadashee ultee kyon latakee hai)

जगन्नाथ पुरी में एकादशी के दिन उलटी लटकी हुई बड़ी बैलनी देखने को मिलती है जिसे "अनावसर्जना" या "निर्जला भंग" के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे कुछ विश्वास हैं।

एक विश्वास के अनुसार, इस दिन भगवान जगन्नाथ और उनके भक्तों की निद्रा जारी रहती है जिसे देखकर उलटी हुई बैलनी बताया जाता है। एक और विश्वास के अनुसार, यह एक आराधना का तरीका है जो भक्तों को भगवान के साथ और अधिक निकट लाता है। इस दिन भक्तों को निर्जला व्रत का पालन करना चाहिए, जिसका अर्थ होता है कि वे भोजन, पानी और सभी द्रव्यों से पूर्णतः अलग हो जाएँ। इस तरीके से, उन्हें जीवन की सारी स्वार्थी इच्छाओं से दूर रहकर भगवान के प्रति अधिक समर्पित होने का अनुभव होता है।

इस दिन को "अनावसर्जना" के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस दिन भक्त निर्जला व्रत रखते हुए अनिवार्य रूप से जल भी नहीं पीते हैं। इसलिए, उलटी बैलनी उन्हे किया जाता है. 

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पक्षी और विमान क्यों नहीं उड़ते (puree ke jagannaath mandir ke oopar pakshee aur vimaan kyon nahin udate)

जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पक्षियों और विमानों के उड़ने से बचने के लिए कई कारण हो सकते हैं।

एक संभव कारण है मंदिर के आकार और स्थान का चयन। मंदिर बहुत ऊँचा होता है और उसके चारों ओर एक बड़ा विस्तार होता है। इसलिए, पक्षियों या विमानों के उड़ते हुए मंदिर से टकराने का खतरा हो सकता है।

दूसरा संभव कारण है मंदिर की संरचना और वास्तुशास्त्र। मंदिर वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित है, जिसमें विभिन्न रूपों और मूर्तियों का उपयोग किया जाता है जो संगम और संतुलन का प्रतीक होते हैं। इसलिए, इसे शुभता देने वाले चिह्नों से सुसज्जित किया जाता है जो पक्षियों और विमानों के उड़ने से रोकते हैं।

तीसरा संभव कारण है धार्मिक या मानसिक विश्वास। जगन्नाथ मंदिर का बड़ा महत्व है और लाखों लोग इसे अपने आस-पास की शक्तियों से लगातार शुद्ध रखने का प्रयास करते हैं। इसलिए, विमान या पक्षी का उड़ना मुश्किल होता हैं. 

जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया (jagannaath mandir kisane banavaaya)

जगन्नाथ मंदिर के निर्माण के बारे में विभिन्न कथाएं उपलब्ध हैं। लेकिन सबसे अधिक मान्यता वाली कथा यह है कि मंदिर का निर्माण किंग अनन्तवर्मा तथा उनके पुत्र किंग चन्द्रादित्य महाराज द्वारा करवाया गया था।

इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था और इसका निर्माण करवाने वाले किंग अनन्तवर्मा ओडिशा के एक प्रसिद्ध राजा थे। इन्होंने अपनी राजधानी को पुरी नामक स्थान पर स्थापित किया था और जगन्नाथ मंदिर को भी इसी स्थान पर बनवाया था।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य था जगन्नाथ भगवान की पूजा-अर्चना करने वाले एक उच्च स्तर के मंदिर का निर्माण करना था। जगन्नाथ मंदिर ओडिशा की सबसे प्रसिद्ध तथा महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है।

जगन्नाथ पुरी कैसे जाये (jagannaath puree kaise jaaye)

जगन्नाथ पुरी मंदिर ओडिशा राज्य के पूर्वी तट पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए विभिन्न विधियाँ हैं।

वायुमार्ग द्वारा: नजदीकी हवाई अड्डों से पुरी तक टैक्सी या बस से जाया जा सकता है। बीजापुर, जयपुर, कोलकाता और हैदराबाद से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं।

रेलमार्ग द्वारा: पुरी रेलवे स्टेशन द्वारा संयुक्त राज्य में लगभग सभी बड़े शहरों से ट्रेन से जाया जा सकता है।

सड़क मार्ग द्वारा: पुरी जीप, टैक्सी, बस या खुद की गाड़ी से राज्य के अन्य हिस्सों से जाया जा सकता है। ओडिशा सरकार द्वारा संचालित बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से, जगन्नाथ पुरी मंदिर की यात्रा को चार धाम यात्रा में शामिल किया जाता है, जिसमें बद्रीनाथ, द्वारका और रामेश्वरम शामिल होते हैं।

जगन्नाथ पुरी मंदिर जाने से पहले, आपको आवश्यक अनुमति पत्र लेने की आवश्यकता होगी जो अपने आपराधिक और आध्यात्मिक शामिल होते हैं. 

श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी puri, odisha (shree jagannaath mandir, puree puri, odish)

श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा राज्य का एक प्रमुख हिंदू मंदिर है जो भारत में प्रसिद्ध है। यह भारत के चार वेदिक धामों में से एक है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है, जो हिंदू धर्म के तीन महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं। इसके अलावा, इस मंदिर में भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां भी होती हैं।

यह मंदिर काफी पुराना है और उसका निर्माण 12वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर में विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं और लाखों श्रद्धालु इसे दर्शन करने के लिए आते हैं।

इस मंदिर की विशेषता उसके विभिन्न प्रवेश द्वारों में से एक है जो मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर काेई पक्षी या विमान नहीं उड़ता है। इसके अलावा, मंदिर में भोजन का आयोजन केवल शुद्ध वेज व्यंजनों से होता है और वह भी अलग-अलग भोजनालयों में होता है।

इस मंदिर को दर्शन करने के लिए, आपको जगन्नाथ पुरी जाने होंगे.

जगन्नाथ पुरी कौन से दिशा में है (jagannaath puree kaun se disha mein hai)

जगन्नाथ पुरी भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य में स्थित है। इसके समुद्र तट की ओर यह दक्षिण-पश्चिम की दिशा में स्थित है।

जगन्नाथ पुरी दर्शन (jagannaath puree darshan)

जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर श्रद्धालु भक्तों के लिए अनेक प्रकार के दर्शन के विकल्प उपलब्ध हैं।

दर्शन के लिए आपको सबसे पहले रथ यात्रा के बाद दर्शन करने के लिए अनुमति प्राप्त करनी होगी। रथ यात्रा के बाद, लोगों को मंदिर के अंदर जाने के लिए अलग-अलग दरवाजों से प्रवेश करना पड़ता है।

मंदिर में जाने से पहले, ध्यान देने वाली बात यह है कि आपके पास ठीक से पहनावा हो, जैसे धोती, साड़ी, कुर्ता और पायजामा आदि। आप बिना कोई सामान ले जा सकते हैं, क्योंकि आप मंदिर के बाहर से इसे भी ले सकते हैं।

आप मंदिर में जाने से पहले अपने शूज को उतारना होगा, इसलिए आपके पास एक पाउच या बैग रखने के लिए कुछ होना चाहिए।

जगन्नाथ पुरी मंदिर में दर्शन करने के लिए, आपको पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ जाना चाहिए। आप ध्यान रखें कि यह एक बहुत ही प्रशिद्ध मंदिरो में से एक हैं. 

जगन्नाथ मंदिर में क्या खास है (jagannaath mandir mein kya hai khaas)

जगन्नाथ मंदिर प्राचीनतम धर्मिक स्थलों में से एक है और भारत के सबसे प्रख्यात मंदिरों में से एक है। यह हिंदू धर्म के तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों (चार धामों) में से एक है।

जगन्नाथ मंदिर का सबसे खास तत्व उसकी वास्तुशिल्प है। इस मंदिर में मूर्तियों की विशिष्टता और उनकी स्थानीय परंपराओं से इसे अलग किया जाता है। मंदिर का निर्माण उबद्द है जो इसे और भी अधिक विशिष्ट बनाता है।

मंदिर में कुछ और भी खास तत्व हैं जैसे श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध अनेक प्रकार के पूजा सामग्री, उन्हें संतुष्ट करने के लिए सेवा और संसाधनों की विस्तृत व्यवस्था आदि। इसके अलावा, यह भारतीय संस्कृति, धर्म और तत्वों के एक विशाल संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है।

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पक्षी और विमान क्यों नहीं उड़ते (puree ke jagannaath mandir ke oopar pakshee aur vimaan kyon nahin udate)

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ऊपर पक्षियों और विमानों का उड़ना नहीं संभव होता है, क्योंकि इस मंदिर के शिखर के ऊपर भव्य विमानों या पक्षियों को उड़ने के लिए कोई जगह नहीं है। जगन्नाथ मंदिर के शिखर की ऊंचाई लगभग 214 फीट है और इसमें कोई विशेष खिड़की नहीं है जिससे पक्षियों या विमानों को अंदर आने का रास्ता मिल सके।

इसके अलावा, वेदों और पुराणों में भी वर्णित है कि भव्य विमानों और पक्षियों को देवताओं की स्वर्गलोक में उड़ते हुए दिखाया गया है, जगन्नाथ मंदिर इस स्वर्गलोक से भिन्न होता है। इसलिए, इस मंदिर के ऊपर पक्षियों और विमानों का उड़ना असंभव होता है।

जगन्नाथ पुरी में हर 12 साल में क्या होता है (jagannaath puree mein har 12 saal mein kya hota hai hai)

जगन्नाथ पुरी में हर 12 साल में एक महत्वपूर्ण उत्सव मनाया जाता है जो कि रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर से पुरी नगर के दूसरे मंदिर में ले जाने के लिए होता है।

इस उत्सव के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लकड़ी के रथ को सड़कों पर निकाला जाता है जिसमें लाखों भक्त भाग लेते हैं और उन्हें यात्रा के दौरान चढ़ाई-उतारी करने का अवसर मिलता है। यह उत्सव चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की दशमी से शुरू होता है और एक पगड़ी पहनाने वाले युवक द्वारा रथ को खींचा जाता है।

इस उत्सव के दौरान, लोग दिन भर बड़ी भीड़ में महाप्रसाद खाते हैं, धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं और रथ यात्रा के दौरान गाने और नृत्य करते हैं। यह उत्सव भारत में अनेक शहरों में धूमधाम से मनाया जाता है, 

जगन्नाथ की कहानी (jagannaath kee kahaanee)

जगन्नाथ की कहानी भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी शुरुआत उत्तर भारत के ओडिशा राज्य के पूर्व में स्थित पुरी शहर से हुई थी।

जगन्नाथ भगवान को त्रिदेव का एक रूप माना जाता है। इनकी मूर्ति लकड़ी से बनी होती है और इसे 'दरु' नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ मंदिर में दो अन्य देवताओं के साथ इनकी मूर्तियां स्थापित होती हैं। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा।

जगन्नाथ की कहानी में मान्यता है कि यह भगवान अपने भक्तों के जीवन में सदैव उपस्थित रहते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ की मूर्ति को बनाने में दो लोगों की जान जान गई थी और उनके आत्माएं अब भी मूर्ति में होती हैं।

इस मंदिर में जाने से पहले, भक्तों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है। उन्हें उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों से भी गुजरना पड़ता है। जगन्नाथ मंदिर में जाकर, भक्तों को यह विश्वास होता है.

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य (jagannaath mandir ka rahasy)

जगन्नाथ मंदिर एक भारतीय हिंदू मंदिर है जो ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है और यह संस्कृति, धर्म और विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है।

जगन्नाथ मंदिर के कुछ रहस्यों में से एक यह है कि मंदिर के भीतर जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां आमतौर पर हिंदू मंदिरों में देखे जाने वाले मूर्तियों से थोड़ी अलग होती हैं। इन मूर्तियों के चेहरे नहीं होते हैं और इन्हें एक विशिष्ट तरीके से बनाया जाता है। इसके अलावा, मंदिर के भीतर एक ऐसी कमरा होती है जिसे "रत्न बेड़ी" के नाम से जाना जाता है। इस कमरे में सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र और अन्य ग्रहों के मूर्तियां स्थापित हैं।

इसके अलावा, मंदिर के अन्दर कुछ ऐसे स्थान होते हैं जहां गैर हिंदू लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं होती है। यह एक रहस्यमयी बात है

जगन्नाथ पुरी कब जाना चाहिए (jagannaath puree kab dee jaanee chaahie)

जगन्नाथ पुरी भारत के ओडिशा राज्य में स्थित है और यहां पर जगन्नाथ मंदिर है, जो एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यहां पर हर साल बड़े पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें रथ यात्रा, स्नान यात्रा और नवकल्प पर्व शामिल हैं।

यदि आप जगन्नाथ पुरी जाने की योजना बना रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि आप किसी भी बड़े पर्व के समय जाते हैं। रथ यात्रा, स्नान यात्रा और नवकल्प पर्व के समय बहुत भीड़ होती है और इस वजह से आपको अपनी यात्रा की योजना अनुकूल बनानी चाहिए।

अगर आप शांतिपूर्ण और आरामदायक यात्रा करना चाहते हैं, तो जगन्नाथ पुरी में अप्रैल से जून या अक्टूबर से दिसंबर जाना उचित होगा। इस समय जगन्नाथ पुरी में मौसम सुहावना होता है और भीड़ भी कम होती है।

अगर आप जगन्नाथ पुरी जाने की योजना बना रहे हैं, तो आपको मंदिर के नियमों और परंपराओं का समझना भी जरूरी होगा। 

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (jagannaath mandir ka itihaas)

जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है और यह मंदिर भारत की सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं।

इस मंदिर का निर्माण शुरू होने की तारीख विवादित है, लेकिन इसका महत्वपूर्ण भूमिका चंद्रगुप्त मौर्य के समय से ही था। उस समय से लेकर इस मंदिर का निर्माण और उसके अलग-अलग अवतरण ने इसे एक सशक्त धार्मिक केंद्र बनाया है।

मंदिर का मुख्य भवन पहली बार गुप्त युग में बनाया गया था, लेकिन ध्वस्त हो गया था। फिर इसे बनाने की प्रक्रिया महाराज अनंगभिमदेव ने 12वीं शताब्दी में शुरू की थी। इसके बाद से यह मंदिर कई बार निर्माण और नवीनीकरण की प्रक्रिया से गुजरा है।

जगन्नाथ मंदिर में बारह वर्षों के अंतराल पर रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो देश भर से लोगों को आकर्षित करता है। मंदिर में तीन मूर्तियाँ होती हैं.

जगन्नाथ पुरी यात्रा (jagannaath puree yaatra)

जगन्नाथ पुरी यात्रा भारत की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है और इसे रथ यात्रा भी कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियों को रथों में बिठाकर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उनके साथ चलती है।

यह यात्रा पूरे 9 दिनों तक चलती है, जिसमें मंदिर से रथों को लेकर एक यात्रा निकाली जाती है और फिर यह रथ यात्रा कुछ दिन तक चलती है। रथ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु इस शोभायात्रा के दर्शन करने के लिए पुरी में आते हैं।

रथ यात्रा के दौरान तीन रथों को पुलिंग के द्वारा खींचा जाता है, जिनमें से पहले रथ में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति रखी जाती है, दूसरे रथ में उनके भाई बलभद्र और तीसरे रथ में उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियां रखी जाती हैं।

रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु बाजारों के बीच से गुजरते हुए रथों को अपने हाथों से खींचते हुए जाते हैं. 

जगन्नाथ पुरी मंदिर के आश्चर्यजनक तथ्य (jagannaath puree mandir ke hairaan kar dene vaale tathy)

जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जिसे अनेक आश्चर्यजनक तथ्यों से भरपूर माना जाता है। कुछ ऐसे अनोखे तथ्य हैं जो इस मंदिर को विशेष बनाते हैं:

मंदिर का निर्माण करीब 12वीं शताब्दी में हुआ था।

मंदिर के दरवाजों का ऊँचाई लगभग 20 फीट है और इन दरवाजों के ऊपर प्रत्येक दरवाजे पर एक चालीसा लिखा होता है।

मंदिर में 6 बजे सुबह और 9 बजे रात को होने वाले भोगों का खाना सभी अधिकारियों, पुजारियों, और भक्तों को मिलता है। इस भोजन की विशेषता यह है कि इसमें कोई वांछित वस्तु नहीं होती है।

मंदिर में चार दरवाजे होते हैं, जिन्हें सिंहद्वार, अश्वद्वार, हस्तिद्वार और युगलद्वार के नाम से जाना जाता है।

मंदिर के आसपास का इलाका जगन्नाथ पुरी की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है। इस इलाके में भगवान जगन्नाथ के समक्ष तीन मंदिर हैं।

जगन्नाथ भगवान के हाथ क्यों नहीं है (jagannaath bhagavaan ka haath kyon nahin hai)

जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों के हाथ नहीं होते हैं। यह एक रहस्यमय मुद्दा है जिसके बारे में कुछ लोग अलग-अलग विचार रखते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस मांगलिक समय में जब मंदिर निर्माण हो रहा था, भगवान जगन्नाथ ने इस विशेष संसार को छोड़ दिया था।

दूसरी संस्कृति के अनुसार, यह मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति तीन भाई रत्न और भ्रमित द्वारा बनाई गई थी, और उन्होंने मूर्ति को इतनी उच्चता दी थी कि मूर्ति के हाथ नहीं थे।

तीसरी संस्कृति में, इस बिना हाथों वाले मूर्ति के पीछे एक और कथा है। इसके अनुसार, भगवान जगन्नाथ को दुर्गंध के साथ देखने वाले सभी लोगों को उनकी आँखों से प्रसन्नता मिलती है। इसलिए, मूर्ति को अपनी आंखों से देखने के लिए, भक्तों को उस ओर घुमाने की आवश्यकता नहीं होती है।

इन सभी मान्यताओं के अलावा, कुछ लोग भी मानते हैं कि मूर्तियों के हाथ नहीं होते हैं. 


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